एसएमएस अस्पताल: 50 साल की महिला की मौत के बाद परिजनों ने स्किन की दान

एसएमएस के स्किन बैंक में हुआ पहला कैडेवर स्किन डोनेशन

एसएमएस अस्पताल: 50 साल की महिला की मौत के बाद परिजनों ने स्किन की दान

डॉ. जैन ने बताया कि किसी भी डोनर से जब स्किन लेते हैं तो उसे पांच साल तक कैमिकली ट्रीट करके सुरक्षित रखा जाता है। एक डोनर से ली गई स्किन से बर्न के 3-4 मामलों में मरीज की जान बचाई जा सकती है।

ब्यूरो/नवज्योति, जयपुर। सवाई मानसिंह अस्पताल में सोमवार को पहला कैडेवरिक स्किन डोनेशन हुआ। यहां एक 50 साल की महिला की मौत के बाद उसके परिजनों की सहमति से उसके शरीर से स्किन रिसिव करके उसे स्किन बैंक में रखा है। मृतक महिला की ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट के बाद उसकी डोनेट की गई स्किन को गंभीर बर्न केस पीड़ित मरीज को लगाई जाएगी। एसएमएस हॉस्पिटल के प्लास्टिक सर्जरी एंड बर्न डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. आरके जैन ने बताया कि वैशाली नगर निवासी 50 वर्षीय महिला अनिता गोयल का रविवार देर शाम एक प्राइवेट हॉस्पिटल में उपचार के दौरान निधन हो गया था। महिला की मौत के बाद उसके परिजनों ने उसकी स्किन डेनोट करने की इच्छा जताते हुए एक एनजीओ से संपर्क किया था। एनजीओ ने जब हम से संपर्क किया तो हमारी टीम तुरंत वहां पहुंची और उनसे बातचीत की। इसके बाद उन्होंने जब सहमति दी तो टीम ने स्किन रिसिव करने का प्रोसेस किया।

स्किन पांच साल रहेगी सुरक्षित
डॉ. जैन ने बताया कि किसी भी डोनर से जब स्किन लेते हैं तो उसे पांच साल तक कैमिकली ट्रीट करके सुरक्षित रखा जाता है। एक डोनर से ली गई स्किन से बर्न के 3-4 मामलों में मरीज की जान बचाई जा सकती है। हालांकि ये बर्न केस पर निर्भर करता है कि मरीज को कितनी स्किन की जरूरत है। उन्होंने बताया कि महिला के दोनों पैर और पीठ के हिस्से से स्किन ली गई है।

70 डिग्री सेल्सियस तापमान में रखते हैं स्किन
डॉ. जैन ने बताया कि स्किन बैंक में आने वाली स्किन को सुरक्षित रखने के लिए -70 डिग्री सेल्सियस तक की कूलिंग वाले फ्रिज रखे हैं, जिनमें स्किन को रखा जाता है। करीब छह महीने पहले एसएमएस के सुपर स्पेशिलिटी विंग में ये बैंक खोला था, जो राजस्थान का पहला स्किन बैंक है। जलने वाले ऐसे केस जिसमें व्यक्ति के शरीर की स्किन 60 फीसदी या उससे ज्यादा जल जाती है तो उस कंडीशन में मरीज को असहनीय दर्द होता है। ऐसे मरीज की स्किन जलने के बाद उसे न तो पट्टी की जाती है और न ही ढका जाता है। खुला रहने पर इंफेक्शन का खतरा ज्यादा रहता है। इन दो कारणों से मरीज की अक्सर मौत हो जाती है। स्किन बैंक से ऐसे मरीज को अगर स्किन मिल जाती है तो उसकी जान जाने का खतरा 90 फीसदी तक कम हो जाता है। खात बात यह भी है कि स्किन डोनेट करने वाले और रिसिवर के लिए कोई ब्लड गु्रप मैच करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।

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