ट्यूशन को पढ़ाई की ताकत बनाएं न कि मजबूरी

क्या जरुरी है ट्यूशन?

ट्यूशन को पढ़ाई की ताकत बनाएं न कि मजबूरी

प्राइवेट ट्यूशन बच्चों की पढ़ाई का बोझ व तनाव दोनों ही बढ़ा रहे हैं। अच्छे से अच्छे निजी स्कूल में पढ़ने के बाद भी बच्चों को ट्यूशन व कोचिंग करने का चलन बढ़ता ही जा रहा है।

हर माता-पिता एवं अभिभावकों का सपना होता है कि वह अपनी संतान को अच्छी से अच्छी शिक्षा देकर जिम्मेदार नागरिक बनाए । बच्चों की शिक्षा के लिए उसका स्कूल का चयन एवं होने वाली शिक्षा एक महत्व घटक होती है। अभिभावक बच्चों को अच्छी तालीम देने के लिए क्षेत्र के नामी स्कूल में दाखिला करवाते हैं ताकि पढ़ाई में कोई कसर न रह जाए । परन्तु फिर भी पता नहीं उन सभी पालकों एवं अभिभावकों से क्या चूक हो जाती है कि अच्छे स्कूल में दाखिला एवं अच्छी पढ़ाई के बाद भी उन्हें बच्चों की पढ़ाई के लिए निजी ट्यूशन की आवश्यकता पड़ जाती है। अच्छा से अच्छा स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा भी ट्यूशन की बैशाखी में चलने के लिए मजबूर हो जाता है। क्या ट्यूशन बच्चों के लिए बहुत जरुरी है? 

प्राइवेट ट्यूशन बच्चों की पढ़ाई का बोझ व तनाव दोनों ही बढ़ा रहे हैं। अच्छे से अच्छे निजी स्कूल में पढ़ने के बाद भी बच्चों को ट्यूशन व कोचिंग करने का चलन बढ़ता ही जा रहा है। ये जहां बच्चों पर असर डालता है वहीं अभिवावकों की आय पर चपत भी लगाता। 18 जनवरी 2023 को जारी एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार देश के औसतन 30 प्रतिशत बच्चे ट्यूशन का सहारा लेकर अपनी पढ़ाई को जारी रखे हुए हैं । अभी पिछले 2 वर्षों में कोविड के कारण पढ़ाई में आये व्यवधान को मान भी लिया जाये तो भी यह आकड़ा पिछले कई वर्षों से देखा जा रहा है,परन्तु इस वर्ष निजी ट्यूशन में इजाफा हुआ है । मेरे एक परिचित का 10 वर्षीय बच्चा एक अच्छे सीबीएससी स्कूल में पढ़ता है, स्कूल की पढ़ाई के बारे में हमेशा तारीफ सुनाते रहते हैं,बच्चा ट्यूशन जाता है। उनके बच्चे की दिनचर्या के बारे में बताते हैं कि बच्चा सुबह उठने से लगाकर सात को सोने तक स्कूल,ट्यूशन होमवर्क आदि में इतना व्यस्त रहता है कि उसको खेलने व अन्य काम के लिए समय ही नहीं बचता । यह कहानी एक बच्चे की नहीं है, ऐसे बहुत से बच्चे देखने के लिए मिल जायेंगे जो अपनी स्कूल की पढ़ाई के बाद भी ट्यूशन के चक्रव्यूह में उलझे हुए हैं । असर 2022 रिपोर्ट के अनुसार पहली कक्षा से ही एक चौथाई बच्चों को ट्यूशन की बैसाखी पकड़ा दी जाती है और यह पैटर्न आगे की कक्षाओं में और भी मजबूत कड़ी बन जाती है । यह शिक्षा असामनता को बढ़ाने में एक बहुत बड़ी भूमिका अदा करती है। एक सक्षम परिवार ट्यूशन के बोझ को सहर्ष स्वीकार करता है परन्तु सामान्य आय वाले व्यक्ति के लिए यह अतिरिक्त बोझ के रूप में उसे दबाने का कार्य करती है । यदि वह अपने बच्चों को ट्यूशन न पढ़ाए तो उसका बच्चा अन्य ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चे से पढ़ाई में पीछे रह जाएगा और आगे की किसी भी प्रतिस्पर्धा में संघर्ष करता हुआ नजर आयेगा।

हाल ही में जारी हुई यूनेस्को की वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट में भारतीय शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी कुछ खामियां बताई गई हैं। इस रिपोर्ट में ट्यूशन को भारतीय शिक्षा के लिए एक खतरा बताया गया। रिपोर्ट के मुताबिक प्राइवेट ट्यूशन बच्चों की फीस के साथ उनका पढ़ाई का बोझ व तनाव भी पढ़ाते हैं। ये रिपोर्ट शिक्षा की असमानता को दिखाती है। रिपोर्ट के मुताबिक प्राइवेट ट्यूशन का चलन शहरी परिवारों के विकसित घरों में ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक,परिवार की कुल आय का 11 से 12 फीसदी निजी ट्यूशन पर खर्च होता है। कुछ मामलों में यह रकम 25 फीसदी तक है। शिक्षा की गिरती गुणवत्ता, लगातार बढ़ती प्राइवेट कोचिंग सेंटर की दुकानों का एक कारण यह भी है कि लगातार शिक्षा व्यवस्था का स्तर गिर रहा है। ऐसे में प्राइवेट कोचिंग ही सहारा बन रही है। अगर स्कूलों में ही सही से पढ़ाई हो तो इसकी जरूरत ही न पड़े। दूसरा मां बाप बच्चों पर अतिरिक्त दबाव डालते हैं कि उनको फलाने से ज्यादा नम्बर लाने ही लाने हैं ऐसे में वो खुद उन्हें कोचिंग की तरफ ढकेलते हैं। ऐसे में बच्चे के ऊपर तनाव बढ़ता ही जाता है और उसे सेल्फ स्टडी का समय ही नहीं मिलता जो सबसे ज्यादा जरूरी है। 

जब तक हम अपने देश की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर नहीं बनायेंगे इस स्थिति में सुधार लाना संभव नहीं है । हमें अच्छे स्कूलों का निर्माण व वहाँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के कारगर कदम उठाने की आवश्यकता है । स्कूलों में विद्वान शिक्षक द्वारा पूरे समय कवक बच्चों की पढ़ाई पर ही ध्यान केन्द्रित किया जाए । ऐसा नहीं है कि हमारे देश में विद्वान शिक्षकों की कमी है परन्तु क्या अच्छे विद्वान लोग शिक्षक के रूप में कार्य करना चाहते हैं यह एक सोचने वाला प्रश्न है । हमने देखा है कि अच्छे प्रवीण लोग डॉक्टर, इंजीनियरिंग, सिविल सर्विस आदि में चले जाते हैं तो  फिर शिक्षक बनने के लिए कितने लोग सोचते हैं । भारत में कुछ वर्षों से पुरुष छात्र-अध्यापकों की निरंतर कमी देखी जा रही है, शिक्षक बनने के लिए जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों में 80 प्रतिशत से अधिक महिला छात्र का रुझान देखा जा सकता है । शायद पुरुष छात्रों का रुझान शिक्षक के लिए कम होता नजर आ रहा है । हमें अपनी शिक्षा पद्धति में गुणवत्ता को लेकर काम करने  की आवश्यकता है। छात्र ट्यूशन को पढाई की ताकत बनाएं न कि मजबूरी ।
-श्याम कुमार कोलारे
 (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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