भारत में नोटबंदी का एक नया रूप

भारतीय रिजर्व बैंक में साल 2018-19 में ही बंद कर दिया था

भारत में नोटबंदी का एक नया रूप

पूर्व में जब 500 व 1000 मूल्य के नोट बंद किए गए थे तब नगदी में सुविधा तथा नोट मुद्रण लागत में कमी की दृष्टि से 2000 मूल्य के नोट लाए गए थे तथा 500 मूल्य की नई मुद्रा जारी की गई थी

भारतीय रिजर्व बैंक ने नोटबंदी से संबंधित निर्णय लिया है जिसके अंतर्गत देश में चलन में रहे 2000 मूल्य के नोट भारतीय रिजर्व बैंक एवं वाणिज्यिक बैंकों द्वारा 23 मई 2023 से जनता से वापस लिए जाने की घोषणा की है लेकिन देश की जनता एक बार में केवल 20000 तक की अधिकतम सीमा तक 2000 मूल्य के नोट बदलवा सकेगी तथा 30 सितंबर 2023 तक ही नोट बदलवाने की अवधि रहेगी। इसके बाद भी 2000 मूल्य की मुद्रा कानूनी मुद्रा तो होगी, लेकिन अन्य की मुद्रा में बदली नहीं जाएगी। यह भी नोटबंदी का ही एक नया रूप है जो कि नवंबर 2016 में घोषित नोटबंदी की तुलना में भिन्न है दोनों नोटबंदी के बीच अंतर यह है कि पूर्व में नोटबंदी की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी भारतीय रिजर्व बैंक ने नहीं, लेकिन इस बार यह घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा है न कि जाकर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत की गई है। पूर्व में नोटबंदी का निर्णय अचानक लिया गया था, लेकिन इस बार पूर्व तैयारी के साथ लिया गया है। जिसके अंतर्गत 2000 मूल्य की मुद्रा एटीएम से निकलना बंद हो गया था तथा बैंकों द्वारा भी ग्राहकों को अन्य मुद्रा मूल्य में जमा राशि दी जाती थी तथा 2000 के मूल्य के नोटों का मुद्रण भारतीय रिजर्व बैंक में वर्ष दो हजार 18-19 में ही बंद कर दिया था। इसके अतिरिक्त नोट बदलवाने की सुविधा की अवधि 4 माह रखी गई है ताकि आम जनता को नोट बदलवाने या दो हजार मूल्य की मुद्रा अपने खाते में जमा करवाने में कोई असुविधा न हो।

देश में वर्ष 2023 में 2000 मूल्य के 3.6 लाख करोड़ मूल्य के नोट चलन में थे जो कि कुल चलन मुद्रा का 10.8 प्रतिशत बताया जाता है, जबकि पूर्व में नवंबर 2016 में नोटबंदी के समय 6-7 लाख करोड़ रुपए मूल्य की मुद्रा चलन में थी, जो की कुल जनसंख्या का 37.3 प्रतिशत थी जो कि घटकर मात्र 10.8 प्रतिशत रह गई।

पूर्व में जब 500 व 1000 मूल्य के नोट बंद किए गए थे तब नगदी में सुविधा तथा नोट मुद्रण लागत में कमी की दृष्टि से 2000 मूल्य के नोट लाए गए थे तथा 500 मूल्य की नई मुद्रा जारी की गई थी इससे पहले जनवरी 2014 में वर्ष 2005 से पूर्व इस मुद्रा के पूर्व में मुद्रित वापस लिया गया था। भारतीय रिजर्व बैंक का मानना है कि 2000 मूल्य की मुद्रा का उद्देश्य पूरा हो गया है इसलिए इनको बाहर निकालना आवश्यक है।
देश में नवंबर 2016 की भारत से ही मुद्रा का आकार लगातार बढ़ता जा रहा है, लेकिन सकल घरेलू उत्पाद मूल्य का आकार भी लगातार बढ़ रहा है। जब देश में जीडीपी का आकार बढ़ता है नकदी की आवश्यकता भी बढती है तो नोटों के चलन मुद्रा का आकार भी बढ़ता है। इसके अतिरिक्त मुद्रास्फीति का भी प्रभाव अधिक नकदी को रखने के लिए प्रेरित करता है। परिवारों का दैनिक व सामाजिक खर्च भी बढ़ता जा रहा है, जो कि अधिक नकदी को प्रेरित करता है लेकिन इसका तो तोड़ यह है कि आज यूपीआई व वॉलेट भुगतान की सुविधा ने नकदी रखने की आवश्यकता को कम किया है। आज डिजिटल भुगतान की सुविधा आम व्यापारियों, दुकानदारों, सब्जी वालों, किराना वालों, प्रदान की है तथा ग्राहकों द्वारा डिजिटल भुगतान किया जाता है, जो यह दर्शाता है कि आज भारत नगद विहीन समाज की तरफ तेजी से बढ़ रहा है।

पूर्व घोषित नोटबंदी का उद्देश्य नकद विहिन भुगतान व्यवस्था के अतिरिक्त काले धन, मनी लॉन्ड्रिंगए व आतंकवादी फंडिंग पर रोक लगाना था तथा जाली मुद्रा को चलन से बाहर करना था, लेकिन यह विश्लेषण का विषय है कि देश में नोटबंदी से इन उद्देश्यों की पूर्ति किस हद तक हो पाई। इसके अतिरिक्त क्या वर्तमान में 2000 रूपए के नोटों के चलन से बाहर करने का उद्देश्य भी यही है।

पूर्व नोटबंदी के समय कृषि, व्यापार, उद्योगों के लेन-देन में रुकावट आई थी आज भी रियल एस्टेट, कृषि व्यापार, खुदरा व्यापार, जेम्स एंड ज्वेलरी, शराब कारोबार, खनिज व्यापार आदि में नकदी का अधिक चलन है ग्रामीण क्षेत्र में भी नकदी भुगतान को प्राथमिकता दी जाती है जो कि सुविधाजनक व गोपनीय मानी जाती है। इसका रिकॉर्ड बैंक खातों में नहीं होता है कर बचाने एवं चोरी करने में सुविधा रहती है। राजनीतिक दृष्टि से चुनाव के समय में राजनीतिक चंदे के रूप में नकद का आदान-प्रदान चुनाव लड़ने के लिए राजनीतिक पार्टियों द्वारा किया जाता है। यद्यपि चुनावी बांड जारी किए जाते हैं, लेकिन कितने बांड्स जारी किए जाते हैं उससे अनेक गुना अधिक नकदी का हस्तांतरण व लेन-देन किया जाता है। चुनाव आयोग चुनाव के समय नकदी को पकड़ने का कार्य करता है, लेकिन उससे नकदी पर रोक ऊंट के मुंह में जीरा तक ही सीमित हो पाती है। यहां पर सवाल यह है कि क्या 2000 की मुद्रा को चलन से बाहर करने का निर्णय कालेधन, भ्रष्टाचार, आतंकवादी कोष एवं मनी लॉन्ड्रिंग लेन-देन पर प्रहार है। नोटबंदी के निर्णय से इन पर रोक लग सकेगी।            

-डॉ. सुभाष गंगवाल
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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