वृक्षारोपण से जरूरी है लगे हुए वृक्षों को बचाना
आज आवश्यकता इस बात की है आप लाखों करोड़ों पौधों को भले ही न रोपें, आप चाहे एक ही पौधे को लगाए पर वो एक पौधा वृक्ष बनने तक जीवित रहना चाहिए।
जैसे ही मानसून की वर्षा शुरू होती है, पूरी धरती हरियाली से चहक उठती है। मरू भूमि भी, भीष्ण गर्मी में तपने के बाद चैन की सांस लेती है। यह सब प्रकृति की देन है और प्रकृति का अपना एक चक्र है। मनुष्य ने अपनी असीमित लालसाओं के वशीभूत होकर अंधाधुंध वृक्षों की कटाई कर डाली, जिसके कारण जंगलों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया। भारतीय पादप विज्ञानी जगदीश चंद्र बसु जिन्होंने सबसे पहले यह सिद्ध किया कि पेड़-पौधे हमारी तरह श्वसन करते हैं। वो भी हमारी तरह दर्द और खुशी महसूस करते है, उन्हें भी भूख और प्यास की अनुभूति होती है। हिंदू धर्म ग्रंथों और शास्त्रों में भी वृक्षों की महिमा का उल्लेख मिलता है। बड़, पीपल, तुलसी आदि पेड़-पौधों को पूजनीय माना जाता है। पीपल को वृक्षों का राजा कहते हैं। इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए- मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु, सखा शंकरमेवच। पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम, वृक्षराज नमस्तुते।
आज जिस तरह का पारिस्थितिक असंतुलन देखने को मिल रहा है, जिस तरह से निरंतर पृथ्वी के तापमान में वृद्धि दर्ज की जा रही है, प्राकृतिक चक्र असंतुलित होते जा रहे हैं, इन सबका कारण है घटती वृक्षों की संख्या। वृक्ष, पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मानसून के आरंभ होने के साथ ही वन महोत्सव कार्यक्रम भी जोर-शोर से शुरू हो जाते है। राजनीतिक दल, सामाजिक संस्थाएं और वन विभाग के बीच ज्यादा से ज्यादा पौधों को रोपे जाने की एक होड़ सी लग जाती है। रोपे जाने वाले पौधों की संख्या सैकड़ों हजारों तक सीमित नहीं रहती बल्कि यह संख्या लाखों करोड़ों में पहुंच जाती है। मुझे इन आंकड़ों को देखकर आश्चर्य होता है कि हमें तो घर के छोटे से गार्डन में लगे दस से बीस पौधों की देखरेख करने में पसीने छूट जाते हैं। ऐसी स्थिति में इन लाखों करोड़ों रोपे गए नए पौधों की देखरेख कौन करता होगा?
परंतु वास्तविकता इससे से कोसों दूर है। प्राय: देखा गया है कि संस्थाएं और दल वन महोत्सव के दौरान पौधा रोपण का कार्यक्रम आयोजित करते हैं, मुख्य अतिथि को आमंत्रित किया जाता है, पांच दस पौधे सांकेतिक रूप से रोपे जाते हैं, फोटो खींची जाती है, थोड़ा भाषण आदि होता है यह बताने लिए की वृक्ष हमारे लिए क्या करते हैं। बचे हुए पौधे, कार्यक्रम में आए अन्य लोगों के रहमों-करमों पर छोड़कर, आयोजक वहां से विदा हो जाते हैं। अब बचे हुए पौधों में से कितने पौधे लगाए गए और कितने रोपे जाने के अभाव में वहीं पड़े-पड़े मर गए,इसका कोई लेखा-जोखा किसी के पास नहीं होता। अगले दिन समाचार पत्रों में यह पौधारोपण कार्यक्रम समाचारों की सुर्खियां बन जाता है।
यह तो बात हुई कार्यक्रम स्थल पर मर जाने वाले पौधों की, अब अगर बात की जाए की पौधों को रोपे जाने के पश्चात कितने पौधों की उचित देखभाल की गई? शायद इसका आंकड़ा किसी के पास उपलब्ध नहीं होगा। हमारे शास्त्रों में वृक्षों को माता-पिता तुल्य माना गया है। ऐसे में हमारी लापरवाही से मरने वाले पौधों की हत्या का जिम्मेदार किसे माना जाए? एक पौधे को वैसी ही देखभाल की आवश्यकता होती है जैसे एक बच्चे को होती है। जब बच्चा बड़ा हो जाता है तब उसकी माता-पिता पर निर्भरता कम हो जाती है। उसी तरह जब एक पौधा बड़ा होकर वृक्ष बन जाता है तो उसको भी देखरेख की उतनी आवश्यकता नहीं पड़ती। बस इतना ध्यान रखना होता है कि कोई उसको काटे नहीं या नुकसान न पहुंचाए। परंतु हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम इन बेजुबान वृक्षों की भाषा समझ ही नहीं पा रहे हैं। हम इन्हें जीवित मानने को ही तैयार नहीं है।
आज आवश्यकता इस बात की है आप लाखों करोड़ों पौधों को भले ही न रोपें, आप चाहे एक ही पौधे को लगाए पर वो एक पौधा वृक्ष बनने तक जीवित रहना चाहिए। तभी पौधे लगाने का वास्तविक पुण्य मिलता है। नए पौधों को लगाने से अधिक बड़ी जिम्मेदारी, लगे हुए वृक्षों को बचाने की है। वन महोत्सव के दौरान लगाए जाने वाले नए पौधों की देखरेख की जिम्मेदारी, आयोजकों को सौंपी जानी चाहिए। पौधा रोपण से पूर्व आयोजकों के लिए वन विभाग से कार्यक्रम आयोजन और कार्यक्रम विवरण के आधार पर स्वीकृति लेनी अनिवार्य की जानी चाहिए। आयोजकों से लगाए गए पौधों की देखभाल की जिम्मेदारी के संदर्भ में एक शपथ पत्र भी वन विभाग को अनिवार्य तौर पर लेना चाहिए ताकि कोई इन बेजुबान नवजात पौधों की हत्या न कर सकें। पिछले वर्ष यूपी सरकार ने इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाते हुए ऐसी समितियां बनाने की घोषणा की है जो स्थानीय स्तर पर रोपे गए पौधों के देखभाल करने का कार्य करेंगी। अन्य प्रदेशों को भी ऐसी पहल करनी चाहिए। यह देश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वृक्ष लगाने के साथ-साथ वृक्षों की देखभाल करने का नजरिया विकसित करें, तभी सही मायनों में वन महोत्सव कार्यक्रम सफल और सार्थक हो पाएगा।
-राजेंद्र कुमार शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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