सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

तमिलनाडु में भाजपा से एआईएडीएमके की राजनीतिक खटपट। तो कर्नाटक में जद-एस से उसका गठबंधन हो गया। केरल में भाजपा के पक्ष में मतदान पिछले चुनावों के मुकाबले लगातार बढ़ रहा।

नई संसद...
नई संसद से विधायी कामकाज आरंभ हो गया। वैसे भी पीएम मोदी राजनीतिक संकेत एवं संदेश देने में माहिर। सो, गणेश चतुर्थी के दिन नए संसद भवन में प्रवेश और पहले विधेयक के रूप में महिला आरक्षण लाकर महफिल तो लूट ले गए। वहीं, पांच दिन के सत्र को एक दिन पहले ही खत्म करके उन सभी आशंकाओं पर विराम लगा दिया। जिसमें विपक्ष ने एजेंडा सार्वजनिक करने के बावजूद छुपे एजेंडे का दावा किया। लेकिन सिर्फ एक ही विधेयक आया। सो, आधी आबादी की मानो चांदी। फिर मौसम चुनावी। तो फसल भी पीएम मोदी ही काटेंगे। ऐसा हो भी क्यों नहीं? आखिर 2010 में यह विधेयक राज्यसभा से पारित होने के बाद किसी ने सुध नहीं ली। यह लागू भले ही 2029 में होगा। लेकिन यह तय। महिलाओं की विधानसभाओं और लोकसभा में अब संख्या बढ़ेगी। यानी नई राजनीतिक प्रतिभाओं का आगमन होगा।

मुलाकात का परिणाम?
जी- 20 बैठक से वापसी करते ही कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रुडो ने खालिस्तान को लेकर रंग दिखा दिया। असल में, कनाडा में बड़ी संख्या में सिख वोटर। जिनको साधना वहां के राजनीतिक दलों एवं सरकारों की मानो मजबूरी। लेकिन कनाडा में ही खालिसान का आंदोलन क्यों? भारत में तो ऐसी कोई मांग नहीं। फिर खुद कनाडा ही अपने यहां एक खालिस्तान ईजाद क्यों नहीं कर देता? असल में, यही समझने वाली बात। सारी योजना ही भारत को कमजोर एवं अपमानित करने की। खुसरफुसर यह कि जो भी हो रहा। उसका कारण ट्रुडो की भारत यात्रा। जहां जी- 20 शिखर सम्मेलन से इतर उनकी मुलाकात पीएम मोदी से हुई थी। बस इसके बाद से ही सीन एकदम बदल गया। यह चर्चा कनाडाई मीडिया में। पीएम मोदी ने बेहद सख्त एवं कड़े लहजे में साफ-साफ अपनी बात रखी। जिससे ट्रुडो खासे असहज हो गए।

सस्पेंस!
राजथान में विधानसभा चुनाव से पूर्व गजब का सस्पेंस बना हुआ। शायद ही पहले ऐसा कभी हुआ हो। दोनों ओर से जीत के दावे। लेकिन अगुवा कौन होगा? इस बारे में मौन। इससे जमीन कार्यकर्ता असमंजस में। इस बीच, शनिवार को मल्लिकार्जन खड़गे एवं राहुल गांधी। तो सोमवार को पीएम मोदी जयपुर दौरे पर रहेंगे। सो, राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ। दोनों ओर के कार्यकर्ता चार्ज हो गए। नेता उनमें जोश एवं उत्साह भर गए। पूर्व सीएम वसंधुरा ने अपने ही गृह जिले में परिवर्तन संकल्प यात्रा से दूरी बनाई। जिसकी चर्चा दिल्ली तक। हां, यात्राओं में भीड़ जुटने के भी तरह-तरह के दावे। वहीं, कांग्रेस में सीएम और पूर्व डिप्टी सीएम के बीच चुनावी बेला में बर्फ तो पिघल रही। लेकिन उम्मीद के अनुरूप नहीं। सो, कार्यकर्ता समझ ही नहीं पा रहे। कारवां किधर बढ़ेगा? इससे वह अपनी दिशा तय नहीं कर पा रहे।

चर्चा में उदयनिधि...
आजकल तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि मारन अपने बयानों को लेकर चर्चा में। असल में, वह डीएमके प्रमुख और राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के सुपुत्र भी। सो, मामला करेला और नीम चढ़ा जैसा। सनातन को लेकर जब उनके एक से ज्यादा बयान आए। तो यह तय। वह अनजाने में तो नहीं बोले रहे। बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत बयानबाजी कर रहे। वैसे भी डीएमके का प्रभाव केवल तमिलनाडु एवं पुड्डुचेरी में ही। जहां से कुल जमा 40 लोकसभा सीटें। लेकिन मुसीबत गठबंधन सहयोगी कांग्रेस की। कांग्रेस का आज भी अखिल भारतीय स्वरूप। सो, उदयनिधि मानो गले की हड्डी बन रहे। न निगलते और न उगलते बन रहा! हां, यह संभव कि द्रविड़ आंदोलन की भूमि रहे तमिलनाडु में डीएमके के लिए उदयनिधि के बयान राजनीतिक रुप से मददगार हों। इसीलिए पीछे हटने के बजाए वह और उकसाने वाली बातें कर रहे।

महिला आरक्षण...
महिलाओं को राज्यों की विधानसभाओं एवं संसद के निचले सदन लोकसभा में 33 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित हो गया। अब पहले देशभर में जनगणना होगी और उसके बाद सीटों की डि-लिमिटेशन की प्रक्रिया। वैसे विपक्ष द्वारा सवाल उठाना स्वाभाविक। सो, वह हुआ। लेकिन संसद में मतदान के जरिए विरोध करने का दुस्साहस कोई नहीं कर सका। क्योंकि अगले साल आम चुनाव। हालांकि मोदी सरकार के इस कदम को चुनावी लाभ से जोड़कर देखना विपक्ष का हक। लेकिन राज्यसभा में यह बिल साल 2010 में ही पारित हो चुका। ऐसे में उनकी सरकारों ने क्यों नहीं किया? यह भी पूछा गया। लेकिन मोदी सरकार ने कर दिखाया। मतलब केन्द्रीय योजनाओं के लाभार्थियों के बाद पीएम मोदी के खाते में पहले से ज्यादा महिला मतदाताओं का खड़े होना सुनिश्चित हो गया। फिर सोशल मीडिया के दौर में वोट देने के मामले में इतना अविवेकी कोई नहीं!

बदलते समीकरण!
तमिलनाडु में भाजपा से एआईएडीएमके की राजनीतिक खटपट। तो कर्नाटक में जद-एस से उसका गठबंधन हो गया। केरल में भाजपा के पक्ष में मतदान पिछले चुनावों के मुकाबले लगातार बढ़ रहा। हां, उसे मिलने वाले वोट सीटों में तब्दील नहीं हो रहे। तमिलनाडु में डीएमके जिस प्रकार से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के बयानों का प्रतिवाद कर रही। उससे स्पष्ट कि भाजपा जमीन पर अपना फैलाव कर रही। भले ही कर्नाटक में कांग्रेस सत्तारूढ़। लेकिन जद-एस से गठबंधन करके भाजपा आम चुनाव में बढ़त में रहेगी। ऐसी संभावना। आंध्र में जगनमोहन रेड्डी उसके लिए खतरा नहीं। तो तेलंगाना में भाजपा विपक्ष के रूप में कांग्रेस को पीछे छोड़ चुकी। यह सीएम केसीआर के बयानों से लगता। यानी आम चुनाव से पहले दक्षिण की हवा बदल रही। यह जरुरी नहीं कि भाजपा को इसका लाभ मिलेगा। लेकिन ग्राफ  नीचे जा रहा। यह कोई नहीं मानेगा।  

पैंतरे...
आम चुनाव से पहले बना आईएनडीआईए गठबंधन पीएम मोदी और भाजपा से दो-दो हाथ करने को आमादा। इसकी पटना, बेंगलुरु एवं मुंबई में बैठकें हो चुकीं। इसको शुरुआती आकार देने में नीतीश कुमार की भूमिका महतवपूर्ण रही। लेकिन घटक दलों को उन पर पूरा विश्वास अभी भी नहीं। समय-समय पर उनके भाजपा के साथ जा मिलने की अफवाहें उड़ती रहतीं। यही हाल एनसीपी नेता शरद पवार का भी। भले ही मुंबई बैठक की अगवानी शिवसेना (यूटीबी) के उद्धव ठाकरे ने की। लेकिन शरद पवार की चर्चा न हो। यह कैसे संभव? लेकिन साथियों को उन पर अभी भी पूरी तरह विश्वास नहीं। बल्कि नीतीश कुमार एवं शरद पवार के पैंतरे काबिले गौर। वैसे दोनों वरिष्ठ और राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी भी। कब क्या निर्णय कर लें। यह कोई नहीं कह सकता। हां, दोनों में एक बात और समान। अब इनकी लगभग अंतिम राजनीतिक पारी!

-दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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