एस्ट्रोटर्फ तो दूर, शहर में नहीं हॉकी मैदान,कैसे तैयार होंगे ध्यानचंद
मैदान के बिना खिलाड़ी नहीं कर पा रहे अभ्यास
संसाधनों का अभाव फिर भी खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने का सपना संजोए हुए हैं।
कोटा । भारत का राष्ट्रीय खेल होने के बावजूद शहर में खिलाड़ियों के लिए एक ढंग का हॉकी मैदान तक नहीं मिल पा रहा है। एस्ट्रो टर्फ जैसी आधुनिक सुविधा की बात करना तो दूर, अभ्यास के लिए भी मैदान उपलब्ध नहीं हो पा रहा। परिणामस्वरूप, प्रतिभाशाली खिलाड़ी संसाधनों के अभाव में अपनी क्षमता का पूरा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। यह शहर के हॉकी खिलाड़ियों के लिए किसी विडंबना से कम नहीं है। शहर के हॉकी कोच दीपक नीनामा ने बताया कि वे कच्चे मैदानों या साझा खेल परिसरों में अभ्यास करने को मजबूर हैं, जहां न तो मानक मापदंड पूरे होते हैं और न ही सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था। बारिश के दिनों में मैदान की हालत और बदतर हो जाती है, जिससे अभ्यास बाधित होता है। कई बार चोटिल होने का खतरा भी बना रहता है। इसके बावजूद, खिलाड़ियों का उत्साह कम नहीं हुआ है। वे सीमित संसाधनों में भी राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने का सपना संजोए हुए हैं।
खिलाड़ी अन्य शहरों की ओर रुख करने को मजबूर
उन्होंने बताया कि हॉकी को बढ़ावा देने के लिए सरकार और खेल संघों द्वारा समय-समय पर घोषणाएं जरूर होती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अलग ही तस्वीर पेश करती है। शहर में न तो स्थायी कोचिंग व्यवस्था है और न ही नियमित प्रतियोगिताओं का आयोजन। नतीजतन, खिलाड़ी अन्य शहरों की ओर रुख करने को मजबूर होते हैं, जहां बुनियादी ढांचा अपेक्षाकृत बेहतर है। इससे न केवल स्थानीय प्रतिभा का पलायन होता है, बल्कि शहर की खेल पहचान भी प्रभावित होती है। खेल प्रेमियों और अभिभावकों का कहना है कि यदि शहर में एक मानक हॉकी स्टेडियम और एस्ट्रो टर्फ मैदान विकसित किया जाए, तो यहां से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी निकल सकते हैं। स्कूल-कॉलेज स्तर पर हॉकी को प्रोत्साहन देने, प्रशिक्षित कोच उपलब्ध कराने और नियमित लीग प्रतियोगिताएं शुरू करने की भी आवश्यकता है। यह निवेश केवल खेल सुविधा नहीं, बल्कि युवाओं के भविष्य में निवेश होगा।
हॉकी भारत की पहचान
ठोस योजना बनाकर समयबद्ध तरीके से काम शुरू करें। हॉकी भारत की पहचान रही है और यदि शहर में इसे सम्मान नहीं मिला, तो यह केवल खिलाड़ियों का नहीं, पूरे खेल तंत्र का नुकसान होगा। उम्मीद है कि जिम्मेदार अधिकारी जल्द जागेंगे और शहर के हॉकी खिलाड़ियों को उनका हक मिलेगा।
- दीपक नीनामा, कोच, कोटा
अलग से हॉकी का मैदान जरूरी
कोटा शहर शिक्षा के साथ-साथ खेलों में भी अपनी पहचान बना रहा है। वहीं राष्ट्रीय खेल हॉकी को बढावा देने के लिए अलग से मैदान भी जरूरी है, ताकि प्रतिभवान खिलाड़ी तैयार हो सके।
- सुधीर कुमार, खिलाड़ी कोटा
इनका कहना है
शहर में हॉकी खिलाड़ियों के लिए उपयुक्त और आधुनिक ग्राउंड का अभाव आज भी एक कड़वी सच्चाई है। बेहतर सुविधाओं के बिना प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को लगातार कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हमारा दृढ़ प्रयास है कि खेलो इंडिया जैसी राष्ट्रीय योजना के माध्यम से शहर को एक अत्याधुनिक एस्ट्रो टर्फ हॉकी मैदान की सौगात मिले, जिससे स्थानीय प्रतिभाओं को नया मंच और नई पहचान मिल सके। यह सपना लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की पहल से ही साकार हो सकता है, जो शहर के खेल भविष्य को नई दिशा देगा।
- वाई बी सिंह, जिला खेल अधिकारी

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