सतरंगी सियासत

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तो राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में मतदान हो चुका और तेलंगाना में बाकी। उसके बाद 30 नवंबर शाम तक एग्जिट पोल भी आ जाएंगे।

आंकड़ेबाजी और वास्तविकता! 
तो राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में मतदान हो चुका और तेलंगाना में बाकी। उसके बाद 30 नवंबर शाम तक एग्जिट पोल भी आ जाएंगे। हालांकि अब इन्हें कोई बहुत गंभीरता से नहीं लेता। क्योंकि कई बार परिणाम ठीक इनके विपरीत भी आते रहे। लेकिन फिर भी मीडिया, नेताओं एवं राजनीतिक दलों के लिए यह चर्चा का विषय तो रहते ही। जिनके पक्ष में आए, वह इन्हें वास्तविकता बताने का दावा करते। और जिनके पक्ष में आंकड़े नहीं दिखाए जाते वह इन्हें मतगणना के दिन तक केवल मनोजंरन ठहराते। तब तक दावे और प्रतिदावे! लेकिन आंकड़ेबाजी और कयास लगाने से किसने किसको रोका? हां, कुछ सर्वे करने वाली कंपनियों की भी इसके मार्फत अच्छी मार्केटिंग और ब्रांडिंग हो जाती। जिससे उनको अगला काम भी मिल जाता। वैसे भी आजकल चुनाव पूरी तरह से प्रोफेशनल हो गए। इससे सभी दल एवं नेता वाकिफ।

समय का फेर ...
जो लोग पाक समेत विदेशों में अज्ञात शूटरों द्वारा टपकाए जा रहे। वह आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहने के चलते भारत में मोस्ट वांटेड और यह वांटेड लोग जिन संगठनों से जुड़े हुए। वह भारत में भी प्रतिबंधित। ज्यादातर का यही हाल। गजब तो यह कि पाक द्वारा भी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा रहा। हां, वहां की मीडिया और सोशल मीडिया पर जरुर चर्चा। लेकिन पाक सरकार इन घटनाओं और मौतों पर मौन। यदि कुछ भी बोला। तो वहां की फौज और आईएसएआई की क्षमता पर सवाल उठेंगे। सो, चुप रहना ही बेहतर। लेकिन भारत में राष्टÑवादी बेहद खुश। कोई टपका रहा हो। लेकिन भारत के दुश्मन और इसे तोड़ने का सपना पालने वाले उपर पहुंच रहे। बाकी जो बचे हुए। वह अब खुद अपनी जान की भीख मांगने की हालत में। दशकों बाद ऐसे हालात बन रहे!

धूर्तता!
पाकिस्तान की धूर्तता पकड़ी गई। उस पर फिलीस्तियों के खिलाफ इजराइल को गोले बेचने के आरोप। पाक यही काम पूर्व में अफगान नागरिकों के खिलाफ भी कर चुका। उसने डॉलर के बदले कई अफगानी लोगों को पकड़कर अमेरिका को सौंपा। एक ओर तो पाक की फिलीस्तीन से सहानुभूति। दूसरी ओर इजराइल को गोला बारुद बेच रहा। हालांकि जो खेफ पहुंचाई गई। वह सीधे नहीं बल्कि साइप्रस के रास्ते भेजी गई। जबकि पाक तो इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता तक नहीं देता। लेकिन फिलीस्तीन के मामले में एकदम उलट। इससे जहां पाक जनता में भारी रोष। तो मुस्लिम दुनियां में भी उसकी छिछालेदर होना तय। जबकि सउदी अरब ने हमास के हमले की निंदा करते हुए अपने यहां फिलीस्तिीन का समर्थन करने वाले प्रदशनकारियों को हिरासत में ले लिया। वहीं, ईरान ने कहा, वह हमास के लिए इजराइल से सीधे नहीं लड़ेगा।

समीकरण!
दुनिया की नजर इन दिनों रूस-यूके्रन युद्ध को छोड़कर फिलहाल गाजा में इजराइल-हमास संघर्ष पर। असल में, रूस यही चाहता। वैसे चर्चाएं कई तरह कीं। गाजा में हमास को ईरान, चीन और रूस की तिकड़ी ने उकसाया। जबकि यूके्रन को रूस के खिलाफ अमेरिका और यूरोपीय देशों ने उकसाया। ऐसा कहा जाता। अब अमेरिका को इजराइल के लिए हथियार भेजने पड़ रहे। जबकि यही काम वह यूक्रेन में भी कर रहा। यानी रूस ने अमेरिका को दो मोर्चों पर उलझा दिया। इसी प्रकार से इजराइल को हमास को साफ करने का मौका हाथ में लग गया। इससे मुस्लिम देशों की एकता भी खतरे में। सउदी अरब और दुबई समेत नौ मुस्लिम देश इजराइल के खिलाफ प्रतिबंधों की इच्छा के खिलाफ हो गए। इससे मुस्लिम वर्ल्ड में भी वर्चस्व की जंग सामने आ गई। यहां तुर्किए, सउदी को कतई पसंद नहीं। और यह टसल ऐतिहासिक!

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नजर नेतृत्व पर!
राजस्थान में मतदान हो गया। अब बेसब्री से तीन दिसंबर का इंतजार। उसके बाद चाहे कांग्रेस हो या भाजपा। राजनीति के जानकारों की नजरें इनके शीर्ष नेतृत्व पर रहने वाली। क्योंकि दोनों ही दल पीढ़Þीगत बदलाव की चौखट पर। ऐसे में अगला पावर सेंटर कौन-कौन बनेगा? यह जानने की सभी में उत्सुकता। चुनाव में कांग्रेस जीते या भाजपा। प्रदेश नेतृत्व में बदलाव की संभावना देखी जा रही। जहां अशोक गहलोत बीते 25 साल से राजस्थान में कांग्रेस का प्रमुख चेहरा। वहीं वसुंधरा राजे भी 2003 से ही प्रदेश भाजपा की राजनीति के केन्द्र में रहीं। लेकिन अब बदलाव की आहट सुनाई दे रही। यह बदलाव केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा ही किया जाएगा। वैसे अशोक गहलोत तो कह भी चुके। चुनाव बाद उनकी अगली भूमिका पार्टी आलाकमान तय करेगा। लेकिन वसुंधरा राजे ने कहा, वह यहीं रहकर राजस्थान की जनता की सेवा करती रहेंगी।

आंकड़े चौंका रहे!
राजस्थान विधानसभा चुनाव में पिछली बार से ज्यादा मतदान हुआ। यह आंकड़े दलों एवं नेताओं को चौंका रहे। हां, कांग्रेस हो या भाजपा। दोनों ही इसे अपने पक्ष में बता रहे। लेकिन तीन दिसंबर को पता चल जाएगा कि किसने किसको समर्थन दिया और क्यों? वैसे भारी मतदान तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी हुआ। इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस और भाजपा ने जनता के लिए सब कुछ कर देने का वादे कर डाले। हालांकि इन घोषणाओं का जब प्रदेश के बजट से मैच किया जाए। तो गंगा उल्टी ही बहेगी। लेकिन चुनाव तो चुनाव। जनता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ता। लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में जनता बहुत जागरुक एवं विवेकवान। उसकी निर्णय क्षमता पर जो संदेह करे। वह खुद ही अपने बारे में सोच ले। जनता अपना भला-बुरा खूब अच्छे से समझती।

-दिल्ली डेस्क (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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