सरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट : तिलहन उत्पादन में भारत आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर

सरसो के उत्पादन में वृद्धि के लिए द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और सॉलिडेरिडाड की पहल

सरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट : तिलहन उत्पादन में भारत आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर

द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया(एसईए) और सॉलिडेरिडाड द्वारा वर्ष 2020-21 में प्रारंभ किए गए सरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट, भारत में सरसो उत्पादन वृद्धि में सहायक सिद्ध हो रहा है।

जयपुर। द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया(एसईए) और सॉलिडेरिडाड द्वारा वर्ष 2020-21 में प्रारंभ किए गए सरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट, भारत में सरसो उत्पादन वृद्धि में सहायक सिद्ध हो रहा है। कार्यक्रम के तहत अब तक 5 राज्यों में 3500 से अधिक सरसो मॉडल फार्म स्थापित किए गए हैं, जिससे 122500 से अधिक किसान सीधे रूप में लाभान्वित हुए हैं। सरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट के अंतर्गत किए गए प्रयासों, अनुकूल मौसम और सरसों के मूल्य के परिणामस्वरूप, भारत में प्रतिवर्ष सरसो के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है। वर्ष 2020-21 में 8.6 मिलियन टन, 2021-22 में 11.00 मिलियन टन एवं 2022-23 में 11.35 मिलियन टन सरसो का उत्पादन दर्ज किया गया है। इसके अलावा प्रतिवर्ष सरसो की बुआई के क्षेत्रफल में भी विस्तार हुआ है, वर्ष 2020-21 में इसे 6.70 मिलियन हेक्टेयर दर्ज किया गया था, वहीं 2022-23 में यह बढ़कर 8.80 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया। वर्ष 2023-24 सीज़न में सरसो का उत्पादन 12.0 मिलियन टन (एमटी) एवं 10.0 मिलियन हेक्टेयर (एमएच) क्षेत्र में बुआई के सर्वकालिक उच्च स्तर को छूने की संभावना है, जिससे खाद्य तेलों की घरेलू आपूर्ति में वृद्धि संभव है। 

सरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट वर्ष 2020-21 में राजस्थान के 05 जिलों में 400 मॉडल फार्म के साथ प्रारंभ किया गया था। 2021-22 में, परियोजना को 500 अतिरिक्त मॉडल फार्म के साथ राजस्थान और मध्य प्रदेश में विस्तारित किया गया। 2022-23 में, 1234 मॉडल फार्म विकसित किए गए हैं। इस वर्ष राजस्थान और मध्यप्रदेश के साथ ही परियोजना का विस्तार अयोध्या (उत्तर प्रदेश) और संगरूर (पंजाब) में भी किया गया। वर्ष 2023-24 में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) और कर्नाटक में सरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट प्रारंभ किया गया है। इस प्रकार, 05 राज्यों में अब तक 3500 से अधिक मॉडल फार्म स्थापित किए जा चुके हैं।

भारत दुनिया में खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक है। भारत में खाद्य तेल की खपत की वर्तमान दर घरेलू उत्पादन दर से अधिक है। इसलिए, देश को मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। वर्तमान में, भारत अपनी खाद्य तेल की मांग का लगभग 60% आयात के माध्यम से पूरा करता है। द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) द्वारा जारी  नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 2022-23 (नवंबर-अक्टूबर) के दौरान भारत ने 16.47 मिलियन टन खाद्य तेलों का आयात किया, जिसका मूल्य रु. 1.38 लाख करोड़ (16.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर) है। यह आंकड़ा खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर जोर देता है।

आयातित खाद्य तेल पर देश की निर्भरता चिंता का विषय है और इस चुनौती से निपटने के लिए, भारत को महत्वपूर्ण फसलों यानी सरसो सहित तिलहन फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के तरीकों और साधनों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। भारत में, प्राथमिक उत्पादित खाद्य तेल का लगभग एक तिहाई हिस्सा रेपसीड और सरसों का है, जो इसे देश की प्रमुख खाद्य तिलहन फसल हैं। खाद्य तेल आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरसो सबसे आशाजनक तिलहन फसल है। इसके अलावा, यह फसल कम लागत और सिंचाई के लिए कम पानी की आवश्यकता के साथ अधिक उत्पादन प्रदान करती है। वर्ष 2023-24 (अप्रैल-मार्च) के दौरान 22.00 लाख मीट्रिक टन सरसों खली का निर्यात कर लगभग रुपये 5000 करोड़ की आय में भी सहयोग हुआ है। 

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इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और सॉलिडेरिडाड द्वारा शुरू किए गए सरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट में नवीन कृषि पद्धतियों, उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग और किसानों को विस्तृत सहायता प्रदान कर सरसो की उपज बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। सरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट के तहत, सरसो के मॉडल फार्म विकसित किए जाते हैं, जिसमें खेत की तैयारी, बीज तैयार करने, बुवाई प्रबंधन, पोषक तत्व प्रबंधन, उर्वरक, पौधों के विकास प्रबंधन, सिंचाई का समय निर्धारण और कटाई आदि में किसानों को सहायता दी जाती है। यह मॉडल फार्म आसपास के सभी किसानों के लिए एक आदर्श के रूप में काम करते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से किसानों को सरसों के उत्पादन में उन्नत एवं वैज्ञानिक तकनीक को समझने में मदद मिलती है जिससे फसल उत्पादन में वृद्धि संभव होती है।  

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तकनीकी-आर्थिक सहयोग के अतिरिक्त परियोजना के तहत किसानों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए प्रत्येक ब्लॉक में किसान फील्ड स्कूल की व्यवस्था भी की गई है। यह किसान फील्ड स्कूल एक सशक्त सामुदायिक संस्था के रूप में कार्य करते हैं जहां किसान एक दूसरे के साथ अपनी समझ को साझा करते हैं। किसान फील्ड स्कूल के माध्यम से किसानों में कृषि से संबंधित तकनीकी ज्ञान और समझ को विकसित करने के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण उत्पादन प्राप्त करने और मार्केट लिंक के माध्यम से आय में वृद्धि भी सुनिश्चित की जाती है। इसके अतिरिक्त किसानों को डिजिटल एप्लिकेशन-आधारित कृषि प्रणाली से भी जोड़ा गया है, ताकि पर्यावरण परिवर्तन के कारण फसलों को होने वाले नुकसान से बचाव किया जा सके। 

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द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अजय झुनझुनवाला ने कहा कि- सरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट की सफलता आंकड़ों से स्पष्ट है, जो सरसो के उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि को दर्शाता है। इस प्रोजेक्ट ने न केवल सरसो उत्पादन वृद्धि में सहयोग किया है बल्कि पूरे देश में किसानों की आजीविका बढ़ाने का मार्ग भी प्रशस्त किया है। हम सकारात्मक परिणामों से प्रोत्साहित हैं और इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो भारत में कृषि क्षेत्र की समृद्धि में योगदान देती है।

एसईए रेप-मस्टर्ड प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष  विजय डाटा ने कहा कि- सरसों घरेलू खाद्य तेल उत्पादन बढ़ाने और किसानों की आय और आजीविका को बढ़ाने के साथ-साथ भारत को खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। हमें विश्वास है कि सरसों मॉडल फार्म प्रोजेक्ट कृषि की उन्नत तकनीक को महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ाएगी और किसानों की आय और आजीविका में योगदान देगी, आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए खाद्य तेल पूल बढ़ाएगी और घरेलू खाद्य तेल उद्योगों के विकास को बढ़ावा देगी।  

डॉ सुरेश मोटवानी, महाप्रबंधक सॉलिडरीडाड एशिया ने कहा कि – यह प्रोजेक्ट भारत की आयात तेलों पर निर्भरता कम करने और खाद्य सुरक्षा में योगदान देने में सहायक सिद्धह हो रहा है। हम सरसों मॉडल फार्म के लिए भारत सरकार के सरसो अनुसंधान केंद्र भरतपुर द्वारा प्रदान किए गए तकनीकी सहयोग की सराहना करते हैं और हम संस्थान से निरंतर सहयोग और समर्थन की आशा करते हैं। 

डॉ. बी. वी. मेहता, कार्यकारी निदेशक द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने इस परियोजना के विषय में कहा कि - "खाद्य तेल आयात पर निर्भरता कम करने के हमारे प्रयास में रेपसीड और सरसो सबसे आशाजनक तिलहन फसलों में से एक हैं। यह जरूरी है कि हम तिलहन उत्पादकों को मजबूत समर्थन प्रदान करें, विशेष रूप से कृषि की नवीन तकनीक को अपनाने के लिए किसानों को जागरूक करना आवश्यक है।

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