जानिए राजकाज में क्या है खास

जानिए राजकाज में क्या है खास

सूबे में इन दिनों फटकार चंद की चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यों ना, फटकार चंद जी सामने वालों को फटकार लगाने में कोई कसर जो नहीं छोड़ रहे।

चर्चा में फटकार चंद 
सूबे में इन दिनों फटकार चंद की चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यों ना, फटकार चंद जी सामने वालों को फटकार लगाने में कोई कसर जो नहीं छोड़ रहे। हाथ वाली पार्टी से ताल्लुक रखने वाले फटकार चंद की चर्चा सरदार पटेल मार्ग पर स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर भी हुए बिना नहीं रहती। राज का काज करने वालों में भी चर्चा है कि शेखावाटी के लक्ष्मणगढ़ की धरती पर जन्मे फटकार चंद जी न तो जगह देखते हैं और न ही समय। जब भी मूड होता है, मंच पर भी तोलिया लहरा कर फटकार लगाना चालू कर देते हैं। पहले तो सामने वाले भाई लोग उनको हल्के में ही लेते थे, लेकिन पांच महीने पहले सूबे के राज के लिए हुई जंग के बाद गंभीरता से लेने लगे हैं। चर्चा है कि जिस तरह फटकार चंद की चाल-ढाल बदली है, तब से कइयों की नींद उड़ी हुई हैं। भाईसाहब भी कम नहीं हैं, लीलण की आड़ में ठुमका लगा कर कम से कम दस सीटों का दावा कर अपना काम करके रवाना हो जाते हैं।

नजर अपनों की तरफ
भगवा वाले एक खेमे के लोग इन दिनों दुविधा में फंसे हुए हैं। उनको समझ में नहीं आ रहा कि उनकी तीखी नजरें किस तरफ रखी जाए। भगवा वालों के ठिकाने पर आने वालों में खुसरफुसर है कि इस खेमे को लोगों को हाथ वालों से नहीं, बल्कि अपनी ही पार्टी के लोगों से खतरा ज्यादा दिखता है। लोगों को दिखाने के नाम पर वैसे तो वे राज के खास नजदीक हैं, लेकिन हकीकत उसकी उलटी है। आज के जमाने के हरकारे जब भी अपनी पर आते हैं, तो भाई लोगों का शक अपने ही लोगों की तरफ जाता है। अनजान डर से डरे हुए इन भाई लोगों को कौन समझाए कि राजनीति में जो होता है, वह दिखता नहीं है और जो दिखता है, वह होता नहीं है। 

परेशान लेजी ब्यूरोक्रेट्स
सूबे में बड़े साहब की वर्किंग स्टाइल से कई लेजी ब्यूरोक्रेट्स परेशान हैं। उनकी रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा हुआ है। वे न तो ठीक से खा पा रहे हैं और न ही पी पा रहे हैं। साहब भी कम नहीं है, जब से बड़ी कुर्सी संभाली है, तब से कोई ना कोई फरमान जारी करने में न तो आगा सोचते है और नहीं पीछा। औचक इंस्पेक्शन तक तो बात ठीक थी, लेकिन अब रिपोर्ट कार्ड बनाना दूसरे साहब लोगों के गले नहीं उतर रहा। जिनका रिपोर्ट कार्ड ग्रीन है, वो तो साहब के गुणगान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे, लेकिन रेड कार्ड वाले एट पीएम बाद पानी पी पीकर कोस रहे हैं। अब साहब लोगों को कौन समझाए कि 57 साल पहले वैलेंटाइन डे को लखनऊ की धरा पर जन्मे भाईसाहब ने ऐसे ही धौले थोड़े ही लिए हैं, उनको राज का काज करने वालों का नस-नस का पता है, सो काम कर रिजल्ट देने में भलाई है।

एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि चापलूस और वफादारों को लेकर है। जुमला है कि जब भी कोई बड़ा आदमी बन कर राज में बड़ी कुर्सी पर बैठता है, तो उनको चापलूस पूरी तरह अपने घेरे में लेने की कोशिश करते हैं और वे सफल भी हो जाते हैं। सालों से वफादारी निभाने वाले लोग चापलूसों की भीड़ में बड़े आदमी को भी दिखाई नहीं देते। इन दिनों दोनों बड़े दलों में पार्टी के हार्ड कोर वर्कर्स भी इस दौर से गुजर रहे हैं। अब इन बड़े लोगों को कौन समझाए कि राजघराने हो, या चाहे लोक शाही हो, चापलूसों ने वफादारों को निपटाया है। अब इसे समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।

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-एल एल शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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