पारिस्थितिकी तंत्र पर प्लास्टिक प्रदूषण से संकट

पारिस्थितिकी तंत्र पर प्लास्टिक प्रदूषण से संकट

बेहतर हो कि हम कपड़े के थैलों, इको फ्रेंडली उत्पादों का अधिक से अधिक उपयोग करें एवं सभी को इसके लिए प्रेरित करें। 

तमाम बड़े शहरों, गांव, पर्यटन स्थलों, जल स्रोतों,जंगलों में सिंगल यूज प्लास्टिक अपशिष्ट के ढेर दिखाई देते हैं। इस सिंगल यूज प्लास्टिक का कुप्रभाव शहरों गांवों तक की सीमित नहीं रहा है बल्कि यह कचरा नदी- नालों से होता हुआ समुद्र में पहुंच रहा है। आंकड़ों के अनुसार केवल 15 प्रतिशत सिंगल यूज प्लास्टिक भूमि पर रहता है, बाकी 85 प्रतिशत किसी ने किसी माध्यम से बहता हुआ समुद्र में पहुंच जाता है। प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर में सर्वाधिक प्लास्टिक कचरा है। इन समुद्रों की सतह पर दो तरह से प्लास्टिक का कचरा तैरता है। एक पॉलिथीन और दूसरा पॉलिप्रोपिलीन। यह समुद्र में पहुंचते हैं तो छोटे और कठोर टुकड़ों में टूट कर समुद्र की सतह पर पहुंच जाते हैं। जहां पर समुद्री जीव एवं पक्षी इन्हें खाने की चीज समझ कर निगल लेते हैं। करीब 90 प्रतिश समुद्री जीव-जंतु किसी न किसी रूप में प्लास्टिक को खा रहे हैं और यह प्लास्टिक उनकी आंतों में इकट्ठा होता रहता है। अंतत: उन जीवों की शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है। शोध के अनुसार वर्ष 2050 तक समुद्र में 850 मिलियन मीटिक टन प्लास्टिक कचरा इकट्ठा हो जाएगा जो आकार में समुद्री जीवों से भी कई गुना बड़ा होगा।

भारत के संदर्भ में बात करें तो 7500 किलोमीटर की समुद्री तटीय रेखा के साथ यह देश की जीवन रेखा भी है। मुंबई ,चेन्नई, कोलकाता सहित कई बड़े महानगर समुद्री रेखा पर बसे हैं, जिनकी बड़ी आबादी के रोजगार, भोजन व पोषण का माध्यम यह समुद्र है। इन महानगरों से निकलने वाला प्लास्टिक समुद्र में प्रदूषण का प्रमुख कारक भी है। कुल प्लास्टिक कचरे में 40 से 50 प्रतिशत सिंगल यूज प्लास्टिक का योगदान होता है , जिसका दोबारा उपयोग नहीं होता एवं उसे फेंक दिया जाता है। हर मिनट एक मिलियन प्लास्टिक बोतलें खरीदी जाती हैं , जिसमें से केवल 14 प्रतिशत ही रीसाइकिल वाली होती हैं। नदी- नाले प्लास्टिक अपशिष्ट के कारण अवरुद्ध रहते हैं इस कारण पानी का समुचित निकास नहीं हो पाता। यह मलेरिया जैसी बीमारियों और दुर्गंध का कारण बनता है। 

भारत प्राचीन समय से ही धार्मिक आस्था वाला देश रहा है एवं हमारे यहां गाय को मां का दर्जा दिया गया है, लेकिन खुले में विचरण करने वाली गायों की मौत पेट और आंतों  में सिंगल यूज प्लास्टिक फंसने के कारण हो रही है। अक्सर यह देखा गया है कि गायों की मृत्यु के बाद गिद्ध जैसे जीव उनके शरीर को खा जाते हैं । उनके पेट में फंसा प्लास्टिक का कचरा महीना तक वैसे ही पड़ा रहता है और यह डी-कंपोज भी नहीं होता। आज हमारा समूचा पारिस्थितिकी तंत्र प्लास्टिक से प्रदूषित हो चुका है।  हवा- पानी के माध्यम से माइक्रो प्लास्टिक के कण हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं जो कई गंभीर बीमारियों के कारण भी हैं। आने वाले समय में प्लास्टिक की खपत निरंतर बढ़ेगी, ऐसी स्थिति में इसका व्यवस्थित प्रबंधन एवं रीसाइकलिंग बहुत जरूरी है। प्लास्टिक का संग्रहण असंगठित क्षेत्र के कामगारों के माध्यम से होता है एवं 50 माइक्रोन से काम की सिंगल   प्लास्टिक बहुत हल्की होती है।  इस कारण कचरा बिनने वाले इसे इकट्ठा नहीं करते हैं और यही कचरा भयावह स्थिति पैदा करता है। आज हम स्वच्छ- स्वस्थ परिवेश की कल्पना नहीं कर सकते हैं, क्योंकि हर जगह प्लास्टिक के ढेर है और यह आसानी से निस्तारित डी-कंपोज नहीं होता। प्लास्टिक की थैली 20 साल में, प्लास्टिक का टीन  200 साल में और प्लास्टिक की बोतल कभी निस्तारित नहीं हो सकती। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट अनुसार हर साल 34 लाख टन से भी अधिक प्लास्टिक निकलता है। जिसका एक बार प्रयोग होने के बाद ऐसे ही छोड़ दिया जाता है । प्लास्टिक बैग के निर्माण में जीवाश्म ईधन, पेट्रोलियम पदार्थों का उपयोग होता है जिससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है।  इसलिए नए प्लास्टिक बैग के निर्माण के बजाय रीसाइकलिंग ही एकमात्र उपाय है।

प्लास्टिक मैन ऑफ इंडिया प्रोफेसर आर. वासुदेवन ने प्लास्टिक कचरा बिटुमिन और पत्थर के संयोजन से सड़क बनाई है जो सामान्य सड़क की तुलना में ढाई से तीन गुना ज्यादा मजबूत और टिकाऊ है। प्लास्टिक कोटिंग के कारण इस सड़क में पानी का प्रवेश नहीं हो पाता और यह सड़क लंबे समय तक चलती है। भारत में सड़क बनाने में आजकल प्लास्टिक कचरे का उपयोग किया जाने लगा है , जो एक सकारात्मक पहल है।  तमिलनाडु के मदुरै शहर में प्लास्टिक कचरे के संयोजन से सर्वप्रथम वर्ष 2002 में त्याग राजा इंजीनियरिंग कॉलेज में सड़क बनाई गई जो आज तक बिना मरम्मत के सुरक्षित है।  सिंगल यूज प्लास्टिक प्रदूषण आज वैश्विक समस्या है। इसके प्रबंधन रीसाइकलिंग के लिए हमें स्वयं घर के स्तर पर ही प्रयास करने पड़ेंगे । हमारे वातावरण में अब आगे यह कचरा ना फैले , इसलिए रीसाइकल प्लास्टिक उत्पादों को बढ़ावा देना होगा और प्लास्टिक संग्रहण में भी योगदान देना होगा। बेहतर हो कि हम कपड़े के थैलों, इको फ्रेंडली उत्पादों का अधिक से अधिक उपयोग करें एवं सभी को इसके लिए प्रेरित करें। 

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-अशोक चौधरी
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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