सरकारी वकीलों की नियुक्ति में सत्तारूढ़ दल की विचारधारा होना जरूरी नहीं

पूर्व में दो अधिवक्ता भाजपा-कांग्रेस की सरकारों में रह चुके हैं एएजी

सरकारी वकीलों की नियुक्ति में सत्तारूढ़ दल की विचारधारा होना जरूरी नहीं

भाजपा अधिवक्ता संघर्ष समिति गठित, नियुक्तियों में लगाए मनमर्जी के आरोप

जयपुर। राज्य सरकार की ओर से पिछले दिनों हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता सहित अन्य सरकारी वकीलों की नियुक्ति के बाद भाजपा से जुडे़ वकील अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। वकीलों का कहना है कि नियुक्तियों में भाजपा की विचारधारा और पार्टी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई है। इसे लेकर कुछ वकीलों ने भाजपा अधिवक्ता संघर्ष समिति का गठन भी किया है।

संघर्ष समिति का कहना है कि हाईकोर्ट की जयपुर पीठ में गैर भाइपाई चार अतिरिक्त महाधिवक्ताओं सहित दर्जनों सरकारी वकीलों के पदों पर दूसरी विचारधारा के लोगों को नियुक्त किया गया है। दूसरी ओर यदि नियमों की बात की जाए तो अतिरिक्त महाधिवक्ता सहित किसी भी अन्य सरकारी वकील की नियुक्ति के लिए सत्तारूढ़ दल की विचारधारा का होना जरूरी नहीं है। पूर्व में तत्कालीन दो अधिवक्ता (बाद में हाईकोर्ट जज) मोहम्मद रफीक और करणी सिंह राठौड़ भाजपा और कांग्रेस के शासनकाल में अतिरिक्त महाधिवक्ता की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। 

विशेषज्ञता का होता है पद
विधि के जानकारों का कहना है कि अतिरिक्त महाधिवक्ता और अन्य सरकारी वकील अदालतों में राज्य सरकार के मुकदमों में पैरवी करते हैं। राज्य सरकार और उनके वकीलों का आपस में संबंध क्लाइंट और वकील जैसा ही होता है। ऐसे में हर क्लाइंट यह चाहता है कि उसका वकील अदालत में प्रभावी रूप से उसका पक्ष रखे। यदि राज्य सरकार ने दलगत राजनीति से हटकर वकीलों की नियुक्ति की है तो इसका विरोध नहीं होना चाहिए। 

भाजपा को जिताने में पार्टी की विचारधारा के वकीलों ने भी काफी मेहनत की है। यह पद पूर्णतया राजनीतिक नियुक्ति वाले होते हैं। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में पार्टी के विधि प्रकोष्ठ की ओर से सरकारी वकीलों के लिए नाम भेजे जाते थे, लेकिन इसके बाद भी इसकी उपेक्षा की गई है। 
- आरएस राघव, संयोजक भाजपा अधिवक्ता संघर्ष समिति

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