हौसलों में उड़ान हो तो हर आसमां छोटा लगता है

मंशापूर्ण महिला व्यायामशाला के पास नहीं स्थाई जगह

हौसलों में उड़ान हो तो हर आसमां छोटा लगता है

दीपमाला 70 लड़कियों को दे रही प्रशिक्षण ।

कोटा। किसी काम को करने की ठान लेने के बाद कोई बाधा या अचड़न के बारे में नहीं सोचना ही आपको मंजिल के पास पहुंचा सकता है। अखाड़े में दाव पेंच ऐसे की लोग यकीन करने में पर मजबूर हो जाएं कि एक महिला पुरूषों को उन्हीं के खेल में पछाड़ सकती हैं। इसी सोच के साथ  मंशापूर्ण महिला व्यायामशाला का संचालन करने वाली दीपमाला 10 साल से हर दिन अखाड़े में दर्जनों लड़कियों को अखाड़ा और आत्मरक्षा के गुर सिखा रही हैं। दीपमाला पिछले 20 साल से अखाड़ा खेल रही हैं जिनके चलते अन्य लड़कियां और महिलाएं भी अब अखाड़े में आ रही हैं।

महिलाओं को अखाड़ा खेलते देख होता है गर्व
मंशापूर्ण व्यायामशाला के संचालक नरेंद्र तुसिया ने बताया कि अखाड़े में आज से करीब 10 साल पहले महिलाओं के लिए शुरूआत की गई थी जिसके बाद धीरे धीरे लड़कियां और महिलाएं बढ़ती गई। वर्तमान में अखाड़े में 60 से 70  लड़कियां और महिलाएं आती हैं। तीन लड़कियों से शुरूआत करने के बाद आज इतनी संख्या में लड़कियों को देखकर खुशी होती है कि महिलाएं भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। हमारा भी मानना है कि आज के दौर में महिलाओं के लिए आत्मरक्षा और आत्म निर्भर बनने के लिए अखाड़ा खेलने जरूरी है।

हर बार बदलनी पड़ती है अखाड़े के लिए जगह
व्यायामशाला की संचालक दीपमाला ने बताया कि व्यायामशाला पिछले काफी सालों से संचालित हो रही है। लेकिन इसे चलाने के लिए काई पर्याप्त जगह नहीं है। जिसके चलते कई बार स्थान बदलने पड़ जाते हैं। दीपमाला बताती हैं कि अखाड़े के गुरु लालचंद तुसिया उन्हें पहली बार अखाड़े में आने पर ही अखाड़ा खेलने के लिए बोल दिया था। जिसके बाद वो हर रोज अखाड़े में आने लगी और आज 20 साल से भी ज्यादा समय से अखाड़ा खेल रही हैं। दीपमाला के अनुसार उन्हें शुरुआत के दिनों में अखाड़े में जाने के लिए कई बार समस्या होती थी। कभी जगह नहीं मिल पाती है तो कई बार जगह मिल जाने के बाद भी कम पड़ जाती हैं। ऐसे में अखाड़ा चलाने के लिए स्थान की व्यवस्था भी वो खुद से करती हैं। बावजूद इसके आज वो अन्य महिलाओं को भी अखाड़े में आने के लिए प्रेरित करती हैं और उन्हें भी अखाड़े करतब सिखाने के साथ उन्हें आत्मरक्षा के गुर सिखा रही हैं।

बचपन से ही शुरू किया अखाड़ा खेलना
मंशापूर्ण महिला व्यायामशाला में आने वाली विनीता राठौर ने 10 साल की उम्र से ही अखाड़े में आना शुरू कर दिया था। विनीता के घर के सामने ही अखाड़ा मौजूद होने और पिता के भी पहलवान होने से विनीता हर रोज अखाड़े में जाने लगी और करतब सीखने लगी। विनीता बताती हैं कि जब उन्होंने अखाड़ा खेलने की शुरुआत की थी उस समय तक व्यायामशाला में महिलाओं और बालिकाओं के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं थी जिसके चलते वो तब से आज तक लड़कों और पुरूषों के बीच करतब दिखाती हैं। विनीता के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से वो अखाड़े में होने वाली प्रतियोगिताओं में भी भाग लेती हैं और उन्हें जीतकर घर में सहायता करती हैं। साथ ही विनीता अखाड़े में सेना और पुलिस की तैयारी के लिए भी आती हैं। उनका कहना है कि लड़कियों को अखाड़ा खेलने के साथ में पुलिस, सेना और सशस्त्र बलों में भी जाना चाहिए, जिससे हर क्षेत्र में महिलाएं आगे आ सके। साथ ही उनके अनुसार महिलाओं को आज के दौर में आत्मरक्षा आना जरूरी है।

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