बजरी और पत्थर का अवैध खनन जनजीवन के लिए बना खतरा
पत्थर निकालने के लिए 70 से लेकर 100 फुट तक गहरे गढ्ढे बना दिए गए
उपखंड पावटा सहित आसपास के करीब दो दर्जन गांवों में उपखण्ड प्रशासन, पुलिस, खान और सिंचाई विभाग की मिलीभगत व राजनेताओं वरदहस्त से कृषि भूमि, राजकीय भूमि यहां तक बनाड़ी बांध के करीब 10 किलोमीटर क्षेत्र में धड़ल्ले से हो रहा अवैध बजरी व पत्थर खनन जनजीवन के लिए खिलवाड़ बन गया है।
प्रागपुरा। उपखंड पावटा सहित आसपास के करीब दो दर्जन गांवों में उपखण्ड प्रशासन, पुलिस, खान और सिंचाई विभाग की मिलीभगत व राजनेताओं वरदहस्त से कृषि भूमि, राजकीय भूमि यहां तक बनाड़ी बांध के करीब 10 किलोमीटर क्षेत्र में धड़ल्ले से हो रहा अवैध बजरी व पत्थर खनन जनजीवन के लिए खतरा बन गया है। गत 15 सालों से विभिन्न राजनेताओं व अधिकारियों की छत्र छाया में चल रहे इस धन्धे में बजरी व पत्थर निकालने के लिए 70 से लेकर 100 फुट तक गहरे गढ्ढे बना दिए गए है।
बनाड़ी बांध में भूमिगत जलस्त्रतों तक एलएंडटी मशीनों से काम किया जा रहा है, जिससे भूमिगत जल स्तर 800 फीट से अधिक गहराई पर जा टिका है। इसके कारण रसातल में जा रहे जल स्त्रोत के कारण कूनेड़, भोनावास, टसकोला, भांकरी, मंढा, राजनौता, कारोली, बडनगर, फतेहपुरा, प्रागपुरा और पावटा सहित करीब 25 ग्राम पंचायतों में पानी के लिए हाहाकार शुरु हो गया है। पावटा पंचायत समिति के तहत आने वाली 29 ग्राम पंचायतों में पानी की समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। पानी की कमी के कारण कृषि उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। जल स्त्रोतों को नष्ट कर लगातार किए जा रहे खनन के कारण क्षेत्र में रेगिस्तान जैसे हालात बनते जा रहे हैं।
अवैध खनन में बिना कोई सुरक्षा व्यवस्था के काम होता है। क्रेशर मशीन में आने के कारण मजदूरों के मरने का क्रम जारी रहता है, लेकिन खान माफिया जो एक जाति विशेष के है। इनकी दबंगई इस कदर है कि तत्काल मृतक के परिवार से सांठगांठ कर मौत को ट्रैक्टर आदि से हादसे का रूप दे देते हैं। हाल में एक खान ढहने से एक मजदूर की मौत हो गई व एक अन्य घायल हो गया था। इस हादसे को ट्रेक्टर ट्रॉली पलटकर हादसा होने का रूप देकर प्रागपुरा थाने में मुकदमा दर्ज करवा दिया था।
बनाड़ी बांध सहित अन्य खनन क्षेत्रों में अकेले जाना संभव नहीं है। कभी भी हमला हो सकता है। पुलिस की सुरक्षा के बिना इन क्षेत्रों में जाना संभव नहीं है और पुलिस सुरक्षा मिलती नहीं है।
- यशपाल सिंह, सहायक अभियन्ता सिंचाई विभाग
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