तिब्बत में चीन की भारी सैन्य तैयारी से भारत को बड़ा खतरा
तक्षशिला इंस्टिट्यूशन की एक रिसर्च में खुलासा हुआ
इनका इस्तेमाल सैनिकों और हथियारों की आवाजाही के लिए, निगरानी बढ़ाने के लिए और आपात स्थिति में मदद पहुंचाने के लिए कर सकता है।
नई दिल्ली। चीन तिब्बत में हेलिकॉप्टर और हवाई अड्डों का जाल बिछा रहा है। यह भारत की सुरक्षा को बड़ी चुनौती है। तक्षशिला इंस्टिट्यूशन की एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि तिब्बत में चीन के लगभग 90 प्रतिशत हेलीपैड समुद्र तल से 3,300 से 5,300 मीटर,10,000 से 17,400 फीट की ऊंचाई पर हैं।
इनमें से 80 प्रतिशत हेलीपैड 3,600 मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर हैं। यह खुलासा भारत के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि चीन इन हेलीपैड का इस्तेमाल सैनिकों और हथियारों को तेजी से सीमा पर पहुंचाने के लिए कर सकता है। रिसर्च में यह भी बताया गया है कि चीन इन हेलीपैड का निर्माण भारत और भूटान के साथ लगती सीमा के पास कर रहा है। ये हेलीपैड चीन की सैन्य रणनीति का अहम हिस्सा हैं और इनसे भारत के लिए खतरा बढ़ गया है।
रिसर्च में 109 हेलीपैड का अध्ययन किया गया है। इनमें से केवल दो हेलीपैड 780 से 2600 मीटर की ऊंचाई पर हैं। 32 हेलीपैड 2700 से 3600 मीटरए 44 हेलीपैड 3700 से 4300 मीटर और 25 हेलीपैड 4400 से 4700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। छह हेलीपैड 4800 से 5400 मीटर की ऊंचाई पर हैं। बंगलुरु स्थित तक्षशिला इंस्टिट्यूशन में भूस्थानिक अनुसंधान कार्यक्रम के प्रमुख प्रोफेसर वाई नित्यानंदम ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस पर लेख लिखा है। इसमें उन्होंने कहा कि चीन इन हेलीपैड का इस्तेमाल सैन्य अभियानों के लिए कर सकता है।
वह इनका इस्तेमाल सैनिकों और हथियारों की आवाजाही के लिए, निगरानी बढ़ाने के लिए और आपात स्थिति में मदद पहुंचाने के लिए कर सकता है।
डॉ नित्यानंदम की अगुवाई में हुई रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ऊंचे इलाकों में अपनी सैन्य क्षमता को तेजी से बढ़ा रहा है। पहले ऊंचाई वाले इलाकों में हेलीकॉप्टर उड़ाना चीन की कमजोरी मानी जाती थी, लेकिन अब वह इस कमी को तेजी से दूर कर रहा है। चीन अपनी सैन्य रणनीति के तहत हेलीपैड के साथ- साथ हवाई पट्टियों का भी विस्तार कर रहा है। वह 1ए000 मीटर से कम लंबाई वाली हवाई पट्टियों को मानवरहित विमानों के लिए इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है।
पिछले एक दशक में चीन ने हेलीकॉप्टर के बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है। जिससे उसकी सैन्य क्षमता में वृद्धि हुई है। यह निवेश केवल 2017 के डोकलाम गतिरोध या 2020 के गलवान घाटी संघर्ष जैसी घटनाओं की प्रतिक्रिया नहीं है। बल्कि, यह एक सोची-समझी रणनीति है। जिसका उद्देश्य ऐसे क्षेत्र में दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित करना है जहां भौगोलिक परिस्थितियां और ऊंचाई पीएलए सैनिकों के लिए गंभीर चुनौती पेश करती हैं।
उदाहरण के लिए चीन के कुछ हेलीकॉप्टरों को विशेष रूप से तिब्बती पठार की कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए डिजाइन किया गया है। जो प्रतिकूल परिस्थितियों से उत्पन्न बाधाओं को दूर करने के लिए चीन की इच्छा शक्ति को दर्शाता है।
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