तरक्की के लिए मन को स्वस्थ रखें
मन हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है
बाहरी प्रदूषण को मिटाने का प्रयास प्रशासन कर सकता है, किन्तु मन के प्रदूषण को मन का शासन, खुद पर खुद का शासन ही मिटा सकता है।
मन का स्वास्थ्य शरीर के स्वास्थ्य से भी ज्यादा जरूरी है, क्योंकि जीवन की पूर्णता, सार्थकता एवं सफलता मानसिक स्वास्थ्य पर ही निर्भर है। मन से स्वस्थ व्यक्ति ही दुनिया का सबसे धनी व्यक्ति हो सकता है। मानसिक स्वास्थ्य मानसिक तंदुरुस्ती की एक ऐसी स्थिति है, जो लोगों को जीवन के तनावों से निपटने, अपनी क्षमताओं को पहचानने, अच्छी तरह से सीखने और काम करने तथा अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम बनाती है। यह स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती का एक अभिन्न अंग है, जो निर्णय लेने, संबंध बनाने और जिस दुनिया में हम रहते हैं उसे आकार देने की हमारी व्यक्तिगत और सामूहिक क्षमताओं को रेखांकित करता है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को ताजा करने और एक स्वस्थ और खुशहाल कार्य वातावरण बनाने की ज्यादा अपेक्षा है। शोध के अनुसार, 6 व्यक्तियों में से एक कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करता है और हर साल 12 बिलियन कार्य दिवस अवसाद, तनाव और चिंता के कारण बर्बाद हो जाते हैं। देश में कार्यस्थलों में बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सहायता की स्पष्ट आवश्यकता है, जिससे न केवल व्यक्ति को बल्कि संगठन को भी लाभ होगा। वास्तव में, जो कर्मचारी खुश रहते हैं वे 13 प्रतिशत अधिक उत्पादक होते हैं, इसलिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करना व्यावसायिक रूप से समझदारी है। मानसिक स्वास्थ्य व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्टÑीय विकास की प्राथमिक शर्त है। जैसे शरीर की सफाई दिन में कई बार आवश्यक है, वैसे ही मन की सफाई कई बार होनी चाहिए। मिल या अन्य औद्योगिक ईकाइयों में काम करने वालों का कपड़ा थोड़ा-थोड़ा करके शाम तक खराब हो जाता है, वैसे ही मन भी कार्यस्थलों पर तनावों एवं परेशानियों से खराब होता है। इसके लिए लंबी, गहरी सांस से मानसिक स्वास्थ्य की क्षमता बढ़ाई जा सकती है। मन से लड़े ंनहीं, बल्कि उसे समझाएं। प्रमोदभाव-गुणात्मक दृष्टि का विकास करें। मन को वॉचमैन बनाएं, क्योंकि जीने का वास्तविक अर्थ है हर पल स्वयं के द्वारा स्वयं का निरीक्षण। देखना है कि मन कब राग-द्वेष, तनाव, अवसाद, विकास एवं कुंठाग्रस्त हो रहा है।
कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है। कार्यस्थल पर बढ़ते तनाव और उससे जुड़ी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ, नियोक्ताओं के लिए अपने कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को पहचानना और उसे प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है। अध्ययनों से पता चला है कि कार्यस्थल पर कर्मचारी दबाव और तनाव महसूस कर रहे हैं और इसकी संख्या बढ़ती जा रही है। शोध से पता चलता है कि ब्रिटेन के पांच में से एक कर्मचारी ने कार्यस्थल पर तनाव और दबाव को प्रबंधित करने में असमर्थता महसूस की। लगभग ऐसी ही स्थितियां भारत में भी देखने को मिल रही हैं। भारी कार्यभार, तंग समय सीमा और सहायता की कमी जैसे तनाव कर्मचारियों में चिंता, तनाव, अवसाद और बर्नआउट का कारण बन सकते हैं। कई कर्मचारी कमजोर समझे जाने, संभावित रूप से अपनी नौकरी खोने या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी परेशानियों के कारण मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने से डरते हैं। नियोक्ता अपने कर्मचारियों के बीच मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को तेजी से पहचान रहे हैं और कर्मचारियों को उनके मानसिक स्वास्थ्य को समझने और प्रबंधित करने में मदद करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
भारत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो-साइंसेज के आंकड़ों के अनुसार, ज्ञान की कमी, मानसिक बीमारी के कलंक और देखभाल की उच्च लागत जैसे कई कारणों की वजह से 80 प्रतिशत से अधिक लोगों की देखभाल सेवाओं तक पहुंच नहीं है। भारत में महिलाओं को अवसाद, चिंता और घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है तथा उनके पास मदद मांगने के लिए स्वायत्तता अक्सर सीमित होती है। गरीबी और आर्थिक असमानता मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वृद्धि में योगदान देती है। वित्तीय अस्थिरता के चलते तनाव और शैक्षिक अवसरों का सीमित होना भी मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकती है। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समग्र स्वास्थ्य के समान रूप से महत्वपूर्ण घटक हैं। उदाहरण के लिए, अवसाद कई प्रकार की शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं, विशेष रूप से मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी दीर्घकालिक स्थितियों के जोखिम को बढ़ाता है। इसी तरह, पुरानी स्थितियों की उपस्थिति मानसिक बीमारी के जोखिम को बढ़ा सकती है।
प्रतिकूल बचपन के अनुभव, जैसे आघात या दुर्व्यवहार का इतिहास उदाहरण के लिए, बाल दुर्व्यवहार, यौन उत्पीड़न, हिंसा देखना आदि। चल रही दीर्घकालिक चिकित्सा स्थितियों से संबंधित अनुभव, जैसे कि दर्दनाक मस्तिष्क की चोट, कैंसर, या मधुमेह। मस्तिष्क में जैविक कारक या रासायनिक असंतुलन, शराब या नशीली दवाओं का उपयोग, अकेलेपन या अलगाव की भावना होना आदि मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। मन को बीमार करने के ये कुछ कारण है। मन हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है। मन अच्छा है तो मानव अच्छा है। मन बुरा है तो मानव बुरा है। हम दुनिया से भाग सकते हैं, उसे वश में कर सकते हैं, परन्तु मन से भागना और उसे वश में करना कठिन है। मन की सरलता सुख है और उसकी कुटिलता दुख है। मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्ति मन को धैर्य के साथ,आत्मीयता के साथ समझें, उसे शांत करें।
बाहरी प्रदूषण को मिटाने का प्रयास प्रशासन कर सकता है, किन्तु मन के प्रदूषण को मन का शासन, खुद पर खुद का शासन ही मिटा सकता है। भारत में वृद्धों की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि को देखते हुए उनके लिए बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सहायता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों और परामर्शदाताओं सहित अधिक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करना और उनकी भर्ती करना जरूरी है।
-ललित गर्ग
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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