डीएपी की भारी किल्लत से धरतीपुत्र बेहाल, नैनो बन सकती है सारथी

किल्लत से निपटने के लिए कृषि विभाग को करनी होगी पहल, विदेश से डीएपी का आयात कम हो रहा

डीएपी की भारी किल्लत से धरतीपुत्र बेहाल, नैनो बन सकती है सारथी

नैनो डीएपी का इस्तेमाल कर पा सकते हैं अच्छी पैदावार

कोटा। हाड़ौती में डीएपी की किल्लत विकराल हो गई है। धरतीपुत्र डीएपी  के लिए मारे-मारे फिर रहे हंै। रबी सीजन की फसलों गेहूं, चना, मसूर, सरसों की बुवाई होने का समय निकलता जा रहा है लेकिन डीएपी की कमी होने से काश्तकार परेशान हैं। इसकी वजह डीएपी की मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं होना है। अंतरराष्टÑीय बाजार में डीएपी की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही है। जिससे विदेश से डीएपी को आयात कम किया जा रहा है। कोटा संभाग में रबी की फसल के लिए इस सीजन में 1 लाख 15 हजार मीट्रिक टन की डिमांड है। लेकिन डिमांड की अपेक्षा 16 नवंबर तक महज 17 हजार 545 मीट्रिक टन डीएपी की आपूर्ति हो पाई है। कृषि विभाग के एक्सपर्ट की मानें तो किसानों को लिक्विड नैनो डीएपी का उर्वरक का इस्तेमाल कर अपनी रबी की फसल में उपयोग करनी चाहिए जिससे कम खर्च में अच्छी पैदावार हो सकती है। नैनो डीएपी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध भी है। 

डीएपी की किल्लत से बुवाई पर पड़ रहा असर
खरीफ फसलों के समय लंबे समय तक बारिश जारी रहने से सभी फसलें बरसाती पानी की वजह से चौपट हो गई। अब रबी फसल की बुवाई का समय आया तो क्षेत्रीय किसानों को रबी फसलों की बुवाई के लिए डीएपी के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। धरतीपुत्रों की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। डीएपी खाद की मारामारी हर वर्ष होती आ रही है।  लेकिन इस साल कुछ ज्यादा ही हो रही है। जिससे फसलों की बुवाई में भी लेटलतीफी हो जाती है। समय पर खाद उपलब्ध नहीं होने से फसलों की बुवाई देरी से करने को मजबूर है। इसका असर धरतीपुत्रों की पैदावार पर पड़ता है। उन दिनों धरतीपुत्रों के चेहरों पर मायूसी झलकती है। 

डिमांड 1 लाख 15 हजार मीट्रिक  टन, आपूर्ति महज 17 हजार 545 मीट्रिक  टन
कोटा संभाग में रबी की फसल के लिए इस सीजन में 1 लाख 15 हजार मीट्रिक टन की डिमांड है। लेकिन डिमांड की अपेक्षा 16 नवंबर तक महज 17 हजार 545 मीट्रिक टन डीएपी की आपूर्ति हो पाई है। इसी प्रकार यूरिया और एसएसपी की भी डिमांग के अनुरूप सप्लाई नहीं हो पा रही है। कोटा संभाग में रबी की फसल के लिए यूरिया की कुल 3 लाख 52 हजार मीट्रिक टन की डिमांड है। लेकिन यूरिया की सप्लाई महज 69 हजार 625 मीट्रिक टन ही हुई हो पाई। इसी प्रकार एसएसपी की डिमांड 1 लाख 22 हजार मीट्रिक टन है लेकिन 37 हजार 659 मीट्रिक टन की ही आपूर्ति हो पाई है। वर्तमान में डीएपी का एक कट्टे की कीमत 2400-2500 तक की है। इसके लिए किसान से 1350 लिए जाते है जबकि सरकार इस पर 1094 सब सीटी डीएपी कंपनी को देती है। लेकिन अंतरराष्टÑीय बाजार में डीएपी की कीमत बढ़ गई है। ऐसे में निर्माता कंपनियों ने भाव भी बढ़ा दिए है लेकिन सरकार डीएपी कंपनियों को सबसिडी1094 ही दे रही है। इस वजह से निर्माता कंपनिया डीएपी का आयात कम कर रही है। 

इनका कहना है 
भारत में 80 से 90 प्रतिशत डीएपी सऊदी अरब और मोरक्को से आती है। अंतरराष्टÑीय बाजार में वर्तमान में डीएपी की कीमतें बढ़ गई है। डीएपी निर्माता कंपनियां भारत में कम मात्रा में आयात कर रही है। जिस वजह से भारत में कम मात्रा में डीएपी आ रही है। इस कारण से भारत में डीएपी की मारामारी हो रही है। डीएपी की समस्या का समाधान के लिए विकल्प अपनाए जा सकते है। जिसमें पहला विकल्प नैनो डीएपी है। इसमें बीज को उपचारित करके बुवाई कर सकते है। इसका काम डीएपी के समान है। 3 एमएल प्रति किलो बीज को उपचारित करके बुवाई कर सकते है। दूसरा विकल्प तीन बैग एसएसपी और एक बैग यूरिया काम में लिया जा सकता है। जिसमें डीएपी की तुलना में ज्यादा पौषक तत्व मिलते है। साथ ही कैल्शियम और सल्फर भी पौधों को मिलता है। जो कि डीएपी में नहीं मिलता है। तीसरा विकल्प एनपीके गेड्स इसमें 20-20-13, 12-32-16, 16-16-16 ये ग्रेड बाजार में उपलब्ध है। डीएपी में केवल नाइट्रोजन व फास्फोरस मिलता है जबकि एनपीके ग्रेड्स में नाइट्रोजन, फास्फोरस के साथ पोटास तीनों मिलते है। जो मिट्टी के लिए  बहुत फायदेमंद है। इससे फसल का उत्पादन भी बढ़ता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढती है। मिट्टी कम पानी भी नुकसान नहीं होता। तेज हवा और आंधी से बचने की भी क्षमता बढ़ती है। 
-डॉ. नरेश कुमार शर्मा, सहायक निदेशक, कृषि विभाग, कोटा

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यह सही है कि इस बार डीएसपी की अधिक किल्लत आ रही है। इसका प्रमुख कारण डिमांड की अपेक्षा डीएपी की आपूर्ति कम होती है। ऐसे में कृषि विभाग को चाहिए कि कृषि विभाग को पूरे क्षेत्र का सर्वे करवा कर डीएपी की अतिरिक्त मंगवाना चाहिए। किसानों का डीएपी पर ज्यादा विश्वास रहता है। काश्तकार नैनो डीएपी लेते नहीं है।
-लोकेश मीणा, प्रोफेसर,कृषि महाविद्यालय, कोटा

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किसानों की पीड़ा
 रबी की बुवाई के समय डीएपी खाद के लिए इस वर्ष मारामारी आगामी वर्ष ओर अधिक मारामारी बढ़ती जा रही है। किसानों को नैनो डीएपी के बारे में जानकारी का अभाव है। ऐसे में कृषि विभाग को समय-समय पर गांव-ढाणी में नैनो डीएपी का उपयोग करने के बारे में जागरूक करने की जरूरत है। 
-नीरूशंकर शर्मा, किसान निवासी बांसी 

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डीएपी खाद के लिए ज्यो-ज्यो समय गुजरता जा रहा है। वैसे-ही मांग बढती जा रही है। संबंधित विभाग की कमी है या सरकार से जिलेभर में मांग अनुरूप डीएपी खाद की आपूर्ति ही नही होती है। काश्तकारों का डीएपी पर अधिक भरोसा है। ऐसे में किसानों को जब तक कृषि विभाग नैनो डीएपी के बारे में प्रचार-प्रसार नहीं किया जाएगा तब तक कैसे उपयोग करेंगे।  अभी किसानों को नैनो डीएपी के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। 
-मुकुट बिहारी दाधीच, किसान निवासी दुगारी 

केन्द्र सरकार की नीतियां ही मुख्यरूप से जिम्मेदार है। इस सरकार द्वारा पिछले सालों में खाद पर सब्सिडी में भारी कटौती करने के कारण विदेशों से खाद के आयात पर शिकंजा कस दिया है। इससे खाद की कमी आ गई है। अत: कालाबाजारी पर सख़्ती से रोक लगाकर सभी गरीब व मध्यम किसानों को सहकारी समितियों के माध्यम से डीएपी उपलब्ध करवाना चाहिए।                    
  -दुलीचंद बोरदा, राज्य उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय किसान सभा

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