सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, संविधान से नहीं हटेंगे समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष शब्द
प्रक्रिया को इस तरह से निरस्त नहीं किया जा सकता
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता क्या है और इसे कैसे लागू किया जाता है, यह सरकार की नीति पर निर्भर करेगा।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आपातकाल के दौरान भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को शामिल किये जाने को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि संबंधित रिट याचिकाओं पर आगे विचार-विमर्श और निर्णय की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने कहा कि हमने स्पष्ट किया है कि इतने वर्षों के बाद प्रक्रिया को इस तरह से निरस्त नहीं किया जा सकता। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता क्या है और इसे कैसे लागू किया जाता है, यह सरकार की नीति पर निर्भर करेगा।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान में 1976 में किए गए संशोधन में प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्दों को शामिल किया गया था, जिसकी न्यायिक समीक्षा की गई थी और वह यह नहीं कह सकता कि आपातकाल के दौरान संसद ने जो कुछ भी किया, वह सब निरर्थक था। पीठ ने पहले भी कहा था कि ऐसे कई फैसले हैं, जिनमें शीर्ष अदालत ने कहा है कि धर्मनिरपेक्षता मूल ढांचे का हिस्सा है और वास्तव में इसे मूल ढांचे के रूप में अपरिवर्तनीय हिस्से का दर्जा दिया गया है।
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