सतरंगी सियासत
परिणाम के बाद कांग्रेस के सारे इंतजाम धराशाही
कवायद जाया!
तो कांग्रेस को चुनाव परिणााम पूर्व ही आभास हो गया कि जीतने वाले विधायकों में से कुछ का गड़बड़ करना संभव। सो, मध्यप्रदेश में कमलनाथ सतर्क हो गए। उन्होंने सभी पार्टी प्रत्याशियों को भोपाल बुलवा लिया। बहाना ‘पॉलीटिकल ट्रेनिंग’ का। लेकिन खतरा भाजपा से नहीं। बल्कि लोचा घर में ही। कमलनाथ को आशंका हो गई कि कहीं दिग्विजय सिंह ही न खेल कर दें। दिग्विजय सिंह द्वारा खुद की गोटियां सेट करने की चर्चा! जिसकी भनक समय रहते कमलनाथ को लग गई। सो, क्या तो आलाकमान और क्या पार्टी। खुद ही बाढ़ाबंदी में जुट गए। सभी पार्टी उम्मीदवारों को परिणाम से पहले ही भोपाल का बुलावा भेज दिया। अब यहां से भी कहीं और शिफ्ट करने की तैयारी थी। यह विधायक दल में संभावित टूट को रोकने की कवायद थी। लेकिन परिणाम के बाद सारे इंतजाम धराशाही। भाजपा फिर से प्रचंड बहुमत से सत्तारूढ़।
दावे और वास्तविकता!
राजस्थान समेत मिजोरम को छोड़कर चार राज्यों के चुनाव परिणाम सामने। अब क्या तो दावे और क्या वास्तविकता। गुरुवार शाम को एग्जिट पोल आए। लेकिन अब सर्वे कंपनियों के अनुमान क्या और मतदाता का निर्णय क्या? भारतीय मतदाता को हमेशा विवेकवान समझा जाता। लेकिन बाजारवाद के दौर में चुनावी सर्वे कंपनियों ने ऐसा आभामंडल बना डाला। मानो इन्हीं को सारी जमीनी जानकारी। लेकिन मतदाताओं ने लोकतंत्र में अपनी आहुति देते हुए अपने विवेकवान होने का परिचय दिया और बाजारवाद के कोलाहल को झूठा साबित कर दिया। वास्तव में होना भी यही चाहिए। आखिर कोई कैसे कृत्रिम रूप से भारतीय लोकतंत्र की गहराई नापने की हिमाकत कर सकता? यह काम आम जनता पर छोड़ा जाए, तो बेतहर। फिर जब सरकार चुनने जैसे गंभीर विषय में भी बाजारवाद बीच में आ जाए। तो इसे विफल होना जरुरी। ताकि गुप्त मतदान की महत्ता बनी रहे।
कांग्रेस की स्थिति!
जैसा कि यह पहले से ही माना जा रहा था कि राजस्थान समेत पांच राज्यों के चुनाव परिणाम का असर व्यापक रूप से पड़ने वाला। वैसे इन चुनावों को लोकसभा का समीफाइनल भी बताया जा रहा। लेकिन साल 2018 के बाद 2019 में हुए आम चुनाव में ऐसा कुछ भी नहीं रहा। ऐसे में यह सिर्फ तुक्केबाजी। परिणाम का असर भाजपा, कांग्रेस एवं विपक्षी गठबंधन इंडिया पर भी पड़ने वाला। ऐसे में जो परिणाम आए। उसके मायने क्या? एक तो विपक्ष की जातिगत जनगणना की मांग की हवा निकल गई। फिर पीएम मोदी ने वैसे भी चार जातियां गरीब, युवा, महिलाएं एवं किसान गिनवा दीं। ऐसे में मोदी मैजिक काम कर गया। सो, विपक्ष को अब जातिगत जनगणना का राग छोड़ना ही बेहतर होगा। इसी प्रकार लोक लुभावन वादों को भी जनता ने लगभग खारिज कर दिया। इससे भी कांग्रेस को झटका।
परेशानी बढ़ेगी?
चुनाव परिणाम बाद क्षत्रप भाजपा एवं कांग्रेस नेतृत्व की परेशानी बढ़ाएंगे! जहां, मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान भाजपा में बेहद मजबूत होकर उभरे। वहीं, अशोक गहलोत कांग्रेस आलाकामन के लिए पहेली बनने की संभावना। हां, केसीआर का भी विपक्षी एकता में रोड़ा बनना संभव। बल्कि वह अब तीसरे मोर्चे का राग अलापेंगे। जिसकी शुरुआत चेन्नई से डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन एवं सपा प्रमुख अखिलेश कर चुके। बीजेडी के नवीन पटनायक, टीएमसी की ममता बनर्जी एवं आंध्रप्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी के साथ गठजोड़ की कवायद हो रही। फिर दक्षिण के क्षत्रप केसीआर कैसे छूट जाएंगे? ऐसे में ‘इंडिया’ के बजाए तीसरे मोर्चे की चर्चा होना ही कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब। क्योंकि मानो अब बस आम चुनाव की तैयारी शुरू। फिर अभी तक ‘इंडिया’ अलायंस में सीट शेयरिंग की बात तक शुरू नहीं हुई। विधानसभा चुनाव परिणाम से इसमें और देरी संभव!
अमेरिकी नैतिकता!
अमेरिका गुरपतवंत सिंह पन्नू के मामले में नैतिकता की दुहाई दे रहा। लेकिन अमेरिकी धरती से भारत में आतंकवाद और अलगाववाद को हवा देने वाले पन्नू पर वह कार्रवाई नहीं कर रहा। उल्टा भारतीय एजेसिंयों पर पन्नू की हत्या कराने की साजिश के आरोप मढ़ रहा। लेकिन यह वही अमेरिका। जिसने इराक में रसायनिक हथियार होने की आशंका पर वहां चढ़ाई कर दी। पूरे इराक को बर्बाद कर दिया। ओसामा बिन लादेन को तलाशने में अफगानिस्तान पर हमला बोला। मोस्ट वांडेट आतंकी को मारने के लिए पाक में घुस गया। हालांकि ऐसे आॅपरेशंस के लिए नियम-कायदे। लेकिन सभी को ताक पर रखकर अमरीका दुनिया के किसी भी कोने में कार्रवाई करने नहीं झिझकता। सीआईए के जरिए कई देशों की चुनी हुई सरकारों तक को गिरवाया। लेकिन अब भारतीय मूल के अमरीकी नागरिक पन्नू को खतरा लगा। तो उसे नियम-कायदे और नैतिकता याद आ रही।
-दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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