सतरंगी सियासत
किसानों के दर्द एवं समस्याओं को उजागर करने पर बधाई भी दी। असल में, शिवराज लगातार रंग जमा रहे। अपना अलग ही स्थान बना रहे। ऐसे में, कई का ध्यान उनकी ओर जा रहा!
छेड़ा तो...
राज्यसभा में बीते सोमवार कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान बोले, छेड़ा तो छोड़ूंगा नहीं। और उन्होंने कांग्रेस के कार्यकाल में हुई किसानों पर ज्यादतियों को गिनाना शुरू कर दिया। लगातार शोरगुल के बीच चौहान ने अपनी फेहरिस्त पढ़ना जारी रखा। इससे असहज हुई कांग्रेस सदन से बायकाट कर गई। चौहान ने फिर दोहराया। मुझे छेड़ा तो मैं छेड़ूंगा नहीं। असल में, चौहान कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कार्यकरण पर बोले। उनके दावों पर कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह और रणदीप सुरजेवाला खासतौर से आपत्ति जता रहे थे। लेकिन सीधे-साधे दिखने वाले चौहान ने जब आक्रामकता से अपनी बात कहनी शुरू की। तो सभापति जगदीप धनखड़ भी एकटक उन्हें देखने लगे। उन्हें किसानों के दर्द एवं समस्याओं को उजागर करने पर बधाई भी दी। असल में, शिवराज लगातार रंग जमा रहे। अपना अलग ही स्थान बना रहे। ऐसे में, कई का ध्यान उनकी ओर जा रहा!
आरक्षण तो बहाना...
तो श्रीलंका और मालदीव के बाद अब बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता। बताया जा रहा। यह खेल उसके पड़ोसी और दुनियां की ताकतों का। वह भी भारत के खिलाफ। लेकिन सवाल, क्या एक चुनी हुई सरकार के खिलाफ केवल आरक्षण के मुद्दे पर जनता बगावत करेगी? या बात कुछ और? वैसे शेख हसीना पहले ही आशंका जता चुकी थीं। सो, हो गया। अब बांग्लादेश पर नियंत्रण कट्टरपंथी ताकतों के हाथों में। जो भारत के हित में नहीं। भारत श्रीलंका, म्यांमार, मालदीव एवं नेपाल की अस्थिरता को देख रहा। अब उसमें बांगलादेश भी शामिल। लेकिन जो बताया जा रहा। क्या मसला वहीं तक? क्योंकि दुनियां की ताकतों में दक्षिण एशिया में शुरू से ही गहरी रूचि। खासकर भारत में। लेकिन बीते तीन बार से स्थिर और मजबूत सरकार के कारण यहां उनकी दाल नहीं गल रही। तो पड़ोसियों के जरिए भारत को परेशानी में डालने की कवायद!
वैसा हुआ तो?
बांग्लादेश में आज हालात वैसे ही। जैसे 2021 में अफगानिस्तान में हो गए थे। तब पाकिस्तान की खुशी का ठिकाना नहीं था। मानो अफगानिस्तान उसी का हो जाएगा। तब वहां भारत के बीस हजार करोड़ रूप्ए दांव पर थे। तो देश में कुछ असामाजिक तत्व खुश थे। लेकिन भारत धीरे-धीरे आगे बढ़ा। अपनी कूटनीति के जरिए तालिबान को भी विश्वास में लिया। और बाकी दुनिया को भी तालिबान से बात करने को राजी किया। फिर कहानी कैसे आगे बढ़ी। बताने की जरुरत नहीं। अब अब लग रहा बांग्लादेश भी उसी राह पर! इस समय वहां कट्टरपंथियों का बवाल और तांडव चल रहा। अल्पसंख्यकों में कोई सुरक्षित नहीं। वहां की करीब आठ फीसदी आबादी हिन्दू, ईसाई और बौध धर्मावलंबियों की। ऐसे में भारत चुप रहेगा। संभव नहीं। जानकार बता रहे। बांग्लादेशी सेना को आगाह किया जा चुका। मानकर चलिए। बाजी भारत के ही हाथ रहने वाली!
भारत की कूटनीति!
पड़ोसी बांग्लादेश में हालात ऐसे बने कि शेख हसीना का तख्ता पलट हो गया। उन्हें अचानक सब कुछ छोड़कर भारत आना पड़ा। भारत ने हसीना की संकट के समय यथोचित मदद भी की। अब कूटनीतिक गलियारे में चर्चा। भारत ने ऐसा क्यों किया? क्योंकि नुकसान भी संभव। उसके बावजूद भारत ने यह जोखिम लिया। शायद भारत की संकट में आए व्यक्ति को शरण, सम्मान एवं सुरक्षा देना सैंकड़ो वर्षों की परंपरा। वैसे, शेख हसीना को उनके विरोधी भारत समर्थक मानते। भारत पहले भी उनकी सुरक्षित रिहाई और आवास उपलब्ध करावा चुका। बांग्लादेश की पीएम रहते हुए शेख हसीना ने भारत के हितों का हमेशा ख्याल रखा। उनके कार्यकाल में दोनो देशों के संबंध काफी मधुर रहे। फिर मोदीजी दुनियां को संदेश देने से कहां चूकने वाले। क्योंकि भारत के पड़ोस में यह करतूत उन्हीं ताकतों की। जो भारत का अच्छा होते हुए देखना नहीं चाहते।
किसकी लगेगी लॉटरी?
राजस्थान में राज्यसभा की एक सीट के लिए उपचुनाव होने जा रहे। जो कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल के इस्तीफे से खाली हुई। संख्याबल के लिहाज से यह सीट भाजपा की झोली में जाएगी। अब सवाल यह कि लॉटरी किसकी लगेगी? किसी महिला को मौका मिलेगा या दिल्ली से किसी को एडजस्ट किया जाएगा? या फिर प्रदेश के ही किसी वरिष्ठ नेता को उच्च सदन में भेजा जाएगा। प्रत्याशी चयन में छह विधानसभा सीटों के उपचुनाव का सियासी समीकरण तो नहीं देखा जाएगा? इन सबका पटाक्षेप एक सप्ताह में हो जाएगा। लेकिन इतना तय। अंतिम निर्णय दिल्ली से होगा। प्रदेश की भूमिका कोई बहुत ज्यादा दिखती नहीं। हां, भावी प्रत्याशी संगठन से होगा या राजनीतिक। यह भी देखने वाली बात। क्योंकि लोकसभा चुनाव में दूसरी पार्टियों से आने वाले नेताओं को काफी तवज्जो दी गई। जिसका फायदा होने के बजाए भाजपा को नकसान ज्याादा उठाना पड़ा।
बढ़ रही हलचल!
जम्मू-कश्मीर में साल के अंत में विधानसभा चुनाव संभावित। सो, राजनीति के जानकारों की ढेरों जिज्ञासाएं। वैसे हलचल राजनीतिक दलों में ही नहीं। चुनाव आयोग द्वारा भी हो रही। इस बीच, घाटी को छोड़ जम्मू क्षेत्र में हो रहीं आतंकवाद की घटनाएं चिंता का सबब। फिर जम्मू-कश्मीर का चुनाव अंतर्राष्ट्रीय चर्चाओं का विषय भी बनेगा। क्योंकि अनुच्छेद- 370 हटने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव होगा। जिसमें भले ही भाजपा की पूर्ण सफलता पर प्रश्नचिन्ह हो। लेकिन क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ने की पूरी संभावना। लोकसभा चुनाव इस ओर साफ इशारा कर रहे। वहीं, पीडीपी एवं नेशनल कांफे्रंस के लिए मानो यह चुनाव जीवन-मरण जैसा। यही दो दल। जो प्रदेश में पहले कांग्रेस और बाद में भाजपा के साथ मिलकर सरकारें बनाते-चलाते रहे। हां, भाजपा शुरू से ही घाटी में बिल्कुल प्रभावहीन। लेकिन उसने बड़े करीने से पीडीपी और एनसी का रूतबा जरूर घटा दिया!
विडंबना देखिए...
बांग्लादेश इस समय भारी राजनीतिक उथल-पुथल के दौर। भारत ने समय पर सही निर्णय न लिया होता। तो शेख हसीना का जीवन खतरे में था। लेकिन चाहे बात यूरोप या अमरीका की हो। या फिर संयुक्त राष्ट्र संघ की। इनका दोहरा रवैया साफ दिख रहा। एक तो ब्रिटेन ने शेख हसीना को राजनीतिक शरण नहीं दी। वहीं, अमरीका ने नई अंतरिम सरकार के गठन का स्वागत किया। जबकि आरक्षण के विरोध से शुरू हुआ आंदोलन हिंसक ही नहीं हुआ। बल्कि वह अल्पसंख्यक समुदाय के लिए अस्तित्व का संकट बन गया। बांग्लादेश में तख्तापलट के साथ ही अल्पसंख्यकों के खिलाफ भारी हिंसा की खबरें। लेकिन न तो मानवाधिकारों की बात हो रही। न ही लोकतंत्र की। यूएनओ अभी ठीक से बोला नहीं। जबकि इनका अफगानिस्तान पर रूख अलहदा था। फिर इराक को कैसे भूला जा सकता? इधर, भारत के सामने एक मानवीय त्रासदी मुंह बाए खड़ी हुई।
दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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