विधेयकों पर मुहर मामला : राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी आधिकारिक राय

सुप्रीम कोर्ट राय देने के लिए बाध्य

विधेयकों पर मुहर मामला : राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी आधिकारिक राय

उल्लेखनीय है कि संवैधानिक व्यवस्थाओं के तहत शीर्ष न्यायालय राष्ट्रपति द्वारा उठाए गए उन 14 प्रश्नों पर विचार-विमर्श करने और राय देने के लिए  बाध्य है।

नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उच्चतम न्यायालय से इस सवाल पर आधिकारिक राय मांगी है कि क्या न्यायालय विधेयकों को मंजूरी देने या न देने के मामले में राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए काई समय-सीमा  निर्धारित कर सकता है। राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143(1) के तहत इस मुद्दे पर शीर्ष न्यायालय से राय मांगी है। राष्ट्रपति ने 13 मई को भेजे गए इस संदर्भ में 14 प्रश्नों पर न्यायालय की  राय मांगी है। 

सुप्रीम कोर्ट राय देने के लिए बाध्य
उल्लेखनीय है कि संवैधानिक व्यवस्थाओं के तहत शीर्ष न्यायालय राष्ट्रपति द्वारा उठाए गए उन 14 प्रश्नों पर विचार-विमर्श करने और राय देने के लिए  बाध्य है। हालांकि, शीर्ष अदालत की राय राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं  होती है।  

राष्ट्रपति ने यह पूछा
क्या संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है। 
क्या संविधान के अनुच्छेद 200 और अनुच्छेद 201 के तहत किसी कानून को लागू किए जाने से पहले उस पर क्रमश: राज्यपाल और राष्ट्रपति  के निर्णय न्यायोचित हैं? 
क्या न्यायालयों के लिए किसी विधेयक की विषय-वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेना (किसी भी तरीके से कानून बनने से पहले) उचित है?
क्या न्यायालय अनुच्छेद 142 के  अंतर्गत अपनी शक्तियों का प्रयोग कर  राष्ट्रपति/राज्यपाल के/द्वारा दिए गए  आदेशों को किसी भी तरीके से प्रतिस्थापित कर सकता है।
क्या राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक संविधान के अनुच्छेद  200 के तहत राज्यपाल की स्वीकृति के बिना लागू हो सकता है।
क्या संविधान के अनुच्छेद 145(3) के प्रावधान के मद्देनजर, शीर्ष अदालत की किसी भी पीठ के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह पहले यह तय करे कि उसके समक्ष कार्यवाही में शामिल प्रश्न ऐसी प्रकृति  का है जिसमें संविधान की व्याख्या के रूप में महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दा  जुड़ा है और उसे कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष भेजा जाए। 
क्या संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत  उच्चतम न्यायालय की शक्तियां प्रक्रिया संबंधी कानूनों तक के लिए ही सीमित  हैं। 
क्या अनुच्छेद 131 के तहत दायर  मामलों को छोड़ कर किसी अन्य मामले में उसे (न्यायालय को) केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को हल करने का और कोई अधिकार नहीं है। 
राष्ट्रपति ने महसूस किया है कि मौजूदा परिस्थितियों में जब राज्य अक्सर संविधान के अनुच्छेद 32 और 131 का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं, तो कानूनी सवालों पर शीर्ष अदालत की राय लेना समय की मांग है।

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