परिष्कृत पेट्रोलियम आयल निर्यात में अभूतपूर्व उपलब्धि
एक वर्ष से अधिक समय से चल रहे इस युद्ध से दुनिया में बहुत कुछ परिवर्तित हुआ है। ये परिवर्तन किसी देश के लिए हानिकारक तो किसी के लिए लाभदायक सिद्ध हुए।
चौबीस फरवरी 2022 से प्रारंभ हुआ रूस और यूक्रेन युद्ध, वैश्विक राजनीति बदलने का बड़ा कारण बना है। एक वर्ष से अधिक समय से चल रहे इस युद्ध से दुनिया में बहुत कुछ परिवर्तित हुआ है। ये परिवर्तन किसी देश के लिए हानिकारक तो किसी के लिए लाभदायक सिद्ध हुए। युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व और बाद में यूरोपीय संघ में सम्मिलित सभी देश एक सुर में रूस का विरोध कर रहे थे। रूस विरोधी अभियान में अपना साथ देने संघ ने अमेरिकी समर्थन भी प्राप्त कर लिया था। अमेरिकी नेतृत्व में ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस इत्यादि देश युद्ध भड़काने के लिए रूस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने और वर्तमान में उस पर लगे प्रतिबंधों को अधिक कड़ा करने की कूटनीति पर कार्य करने लगे। इसलिए उन्होंने दक्षिण एशियाई राष्ट्रों भारत, चीन, जापान, आस्ट्रेलिया, दक्षिण व उत्तर कोरिया समेत पूर्व-पश्चिम के मध्य में स्थित अरब व अफ्रीकी देशों को भी साथ लेने की पूरी चेष्टा की, परंतु ये सभी देश इस प्रकरण में तटस्थ बने रहे। चूंकि अपने संघीय हितों की रक्षा के लिए यूरोपीय संघ हर हाल में रूस पर अंतरराष्ट्रीय मान्यता से पुष्ट प्रतिबंध लगाना ही लगाना चाहता था, इसलिए उसने अपरिष्कृत तेल (क्रूड आयल) का निर्यात करने वाले राष्ट्रों के मध्य तेल आयात की अपनी शर्तों में तत्काल परिवर्तन कर दिया। इस परिवर्तन के तहत यूरोपीय संघ ने नवनीति बनाई कि वह उसी निर्यातक देश से तेल खरीदेगा, जो परिष्कृत तेल कम मूल्य में निर्यात करेगा। संघ का यह निर्णय वैसे तो रूस से तेल आयात और तेल से होने वाली उसकी आय रोकने की मंशा से लिया गया था, ताकि वह युद्ध को विराम दे दे, परंतु इससे यूक्रेन के उकसावे पर यूरोपीय संघ और इसमें पृष्ठपटल से इन दोनों की सहायता कर रहे अमेरिका को कोई लाभ नहीं हुआ। रूस ने युद्ध नहीं रोका। उसने युद्ध में अपनी मारक क्षमता पहले से अधिक कर दी। परिणामत: यूक्रेन में विध्वंश की नित नई-नई घटनाएं घटने लगीं। यूक्रेन आधारित वैश्विक व्यापार ठप हो गया। यूक्रेन और उससे संबद्ध राष्ट्रों का व्यापार, लेन-देन और आयात- निर्यात ठप होने से वैश्विक अर्थव्यवस्था संकुचित हो गई। विश्व के प्रमुख तेल निर्यातक देशों सउदी अरब, रूस, अमेरिका, इराक, कनाडा, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, इरान, वेनेजुएला और नाइजीरिया के सम्मुख तेल उत्पादन, संग्रहण, वितरण और निर्यात की नीतियां बदलने की विवशता उत्पन्न हो गई। चूंकि रूस और अमेरिका को छोड़कर बाकी तेल निर्यातक देश ओपेक (पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) समूह में सम्मिलित हैं और इनके राजनीतिक-आर्थिक हित रूस विरोधी अंतरराष्ट्रीय लॉबी से अधिक जुड़े हुए हैं, इसीलिए इन्होंने तेल निर्यात में प्रमुखता से सक्रिय ओपेक, अमेरिका और रूस के मध्य मूल्य प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने और इस प्रयोजन में रूस को हानि पहुंचाने की मंशा से नई-नई नीतियां बनाईं। एक प्रकार से यह कदम रूस-यूक्रेन युद्ध को ध्यान में रखकर रूस पर प्रतिबंध लगाने और उसे असहाय अकेला छोड़ने की गुप्त गुट सापेक्षता साकार करने के लिए उठाया गया था। इस प्रयोजन में अमेरिका, ओपेक देश, यूरोपीय यूनियन और यूक्रेन एक गुट बनकर उभरे और रूस की तेल-निर्यात नीतियों पर कुठाराघात करने की मंशा से अवसरवाद की आड़ में इकट्ठा हुए।
इस गुट की यह अपेक्षा अमेरिका के माध्यम से भारत और चीन के सम्मुख भी रखी गई कि वे रूस से तेल मंगाना बंद कर दें, परंतु रूस विरोधी वैश्विक षड्यंत्र में भारत और चीन षड्यंत्रकारियों के लिए बना रोड़ा बन गए। तेल निर्यातक के रूप में कभी पहले तो दूसरे नंबर पर रहने वाले रूस पर यूक्रेन युद्ध के समय लगे वैश्विक प्रतिबंधों और उससे तेल मंगाने वाले अधिकतर देशों द्वारा उसका विरोध किए जाने के बाद भी, भारत ने 2022-23 में रूस से इतना तेल आयात किया कि रूस की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक प्रतिबंधों का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा। इस समयावधि में चीन ने भी रूस से अत्यधिक तेल आयात किया। भारत के इस उपक्रम से रूस तो आर्थिक रूप में स्थिर रहा ही रहा, साथ ही इस कारण यूक्रेन के नेतृत्व में गोपनीय ढंग से गठित रूस-विरोधी वैश्विक गुटसापेक्षता की आड़ में पल रही मंशा भी पूरी तरह ध्वस्त हो गई। इस पूरे चक्र में भारत सर्वाधिक लाभ की स्थिति में रहा।
भारत के पास गुजरात के जामनगर में विश्व की नवोन्नत और अत्याधुनिक आयल रिफाइनरियां हैं, जो रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के स्वामित्वधारण में हैं। इन दोनों रिफाइनरियों की संयुक्त क्षमता प्रतिदिन 1.24 मिलियन बैरल तेल परिष्कृत करने की है। फरवरी 2022 के बाद, रूस से आयातित क्रूड आयल को इस रिफाइनरी में परिष्कृत किया गया और यूरोपीय संघ में सम्मिलित उन्हीं देशों को सबसे ज्यादा आयात किया गया, जो यूक्रेन की आड़ में रूस का विरोध करने और उसके तेल व्यापार को चौपट करने का चक्रव्यूह तैयार कर रहे थे। रूस-यूक्रेन युद्ध प्रारंभ होने के बाद यूरोपीय संघ के देशों को उनकी घरेलू आवश्यकताओं के लिए न तो ओपेक समूह और ना ही अमेरिका द्वारा अनुकूल, उचित मूल्य पर तेल उपलब्ध कराया गया। इस विश्वासघात से यूरोपीय संघ के देश सचेत हो उठे। इसके बाद उन्होंने केवल और केवल कम मूल्य पर घरेलू तेल आवश्यकताओं की पूर्ति को प्राथमिकता देना प्रारंभ कर दिया।
-विकेश कुमार बडोला
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