बिजयनगर ब्लैकमेल कांड : आरोपियों के परिजनों की संपत्ति तोड़ने पर यथास्थिति जारी, राज्य सरकार ने पेश की आपत्तियां
दस्तावेज पेश करने के लिए 15 दिन का समय दिया गया
याचिका में सैयद सआदत अली ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ताओं के घर के युवाओं को पुलिस ने कथित रूप से हुए ब्लैकमेल कांड में फंसाया है।
जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने अजमेर के बिजयनगर ब्लैकमेल कांड के पांच आरोपियों के परिजनों की संपत्ति तोड़ने के जारी नोटिस पर दिए गए यथा-स्थिति आदेश को 24 मार्च तक बढ़ा दिया है। इसके साथ ही अदालत ने मामले में राज्य सरकार की ओर से पेश जवाब को रिकॉर्ड पर लेते हुए याचिकाकर्ता को उस पर अपना प्रति-जवाब देने को कहा है। जस्टिस महेन्द्र कुमार गोयल की एकलपीठ ने यह आदेश शाकीर व अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता जीएस गिल ने जवाब पेश किया। राज्य सरकार ने अपने जवाब में याचिका को लेकर आपत्तियां पेश की हैं। जवाब में कहा गया कि स्थानीय निकाय ने हर याचिकाकर्ता को अलग-अलग नोटिस जारी किए हैं। ऐसे में संयुक्त याचिका दायर नहीं की जा सकती। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने तथ्य छिपाकर याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता को नोटिस जारी कर संबंधित संपत्ति के दस्तावेज पेश करने के लिए 15 दिन का समय दिया गया, लेकिन उन्होंने दो दिन बाद ही याचिका पेश कर दी। इसके अलावा सिर्फ नोटिस देने की कार्रवाई को याचिका में चुनौती नहीं दी जा सकती। यदि नोटिस के बाद स्थानीय निकाय कोई कार्रवाई करता तो उसे भी नगर पालिका अधिनियम के तहत हाईकोर्ट के बजाए अपीलीय अधिकारी के समक्ष चुनौती देने होती है। ऐसे में याचिका को खारिज किया जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने यथा-स्थिति को जारी रखते हुए याचिकाकर्ता को 24 मार्च तक अपना प्रति-जवाब देने को कहा है।
याचिका में सैयद सआदत अली ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ताओं के घर के युवाओं को पुलिस ने कथित रूप से हुए ब्लैकमेल कांड में फंसाया है। अभी सभी आरोपी गिरफ्तार व न्यायिक अभिरक्षा में हैं। दूसरी ओर राज्य सरकार ने याचिकाकर्ताओं के घर नोटिस चस्पा कर कब्जा हटाने की चेतावनी दी है। याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं के घर पर चस्पा किए गए नोटिस ब्लैकमेल कांड में पकड़े गए युवाओं के नाम से है और उनका इन संपत्तियों पर किसी तरह का कोई अधिकार नहीं है। ये संपत्ति याचिकाकर्ताओं के स्वामित्व की है। इसके अलावा संपत्ति को बिना सील किए सीधे ध्वस्त करने की कार्रवाई भी नियमों के खिलाफ है। मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए दिशा-निर्देशों की पालना भी नहीं की जा रही है। इसलिए राज्य सरकार की कार्रवाई को रद्द किया जाए।
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