एक तरफ खाई दूसरी तरफ जंगल, बीच में स्थित है मां जोगणिया का मंदिर
जोगण के रूप में दर्शन दिए थे तब से जोगणिया माता के रूप में हुई प्रसिद्ध
अरावली की पर्वतमाला और प्रकृति की गोद में स्थित है शक्तिपीठ
कोटा। भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ के मध्य सीमा पर स्थित जोगणिया माता मंदिर अपने आप में बेहद खास है। मां के दर से कोई खाली हाथ नहीं जाता। माता रानी सबकी मन्नतों को पूरा किया है। यहां के चमत्कार लोगों को अपनी आस्था के साथ खिंचे चले आते हैं। जोगणिया माता का मंदिर तीन दिशााओं में अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ और प्रकृति की गोद में है। मंदिर की दीवार के पश्चिम दिशा में सैकड़ों फीट गहरी खाई है और विशाल जंगल फैला हुआ है। यहां से 3 किमी दूरी पर प्रदेश का सबसे बड़ा जलप्रपात मेनाल जलप्रपात मौजूद है।
जोगणिया माता मंदिर हाड़ाओ की कुलदेवी: यहां पर माता लक्ष्मी, सरस्वती और मां दुर्गा के रूप में विराजमान है। लोककथाओं के अनुसार बम्बावदा के समीपस्थ ही जोगणिया माता हाड़ाओ की कुलदेवी थी। राव देवा की पुत्री के विवाहोत्सव पर राव देवा ने जगदम्बा जोगणिया को सादर आमंत्रित कर प्रार्थना की कि मां उसका निमंत्रण स्वीकार कर उसे धन्य करें, माता रानी ने यहां जोगण के रूप में दर्शन दिए थे। तब से मां का नाम जोगणिया माता के रूप में प्रसिद्ध हो गया। इतिहास के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी ईस्वी के लगभग हुआ था। मान्यता है कि पहले यहां अन्नपूर्णा देवी का मंदिर हुआ करता था। जिसके बाद अन्नपूर्णा के बजाय जोगणिया माता के नाम से यह शक्तिपीठ पूरे लोक में प्रसिद्ध हुआ।
मंदिर परिसर में लगी है हथकड़िया इस मंदिर परिसर में बहुत सारी हथकड़िया लटकी हुई है। इसके बारे में कहा जाता है कि चोर और डाकू वारदात को अंजाम देने से पहले माता का आशीर्वाद लिया करते थे। जिनके पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद मौके के फरार होते हुए मां के दरबार पहुंचता था। जहां उनके हाथों में लगी बेड़िया अपने आप ही खुल जाया करती थी।
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