फिर आम आदमी नाचेगा बिचौलियों की अंगुलियों पर

आम आदमी को मिलेगा महंगा गेहूं : गेहूं को अधिक दाम पर बेचकर कमा रहे मुनाफा

फिर आम आदमी नाचेगा बिचौलियों की अंगुलियों पर

गेहूं के दाम में आए उछाल ने इस साल सरकारी खरीद का पूरा गणित गड़बड़ा दिया। इसी का फायदा उठाकर व्यापारियों ने भारी मुनाफा कमाया। स्थिति यह हो गई कि केन्द्र सरकार को इस साल अपना खरीद का लक्ष्य तक घटाना पड़ गया। वहीं गेहूं के दामों में बढ़ोतरी का खामियाजा आमजन को उठाना पड़ा।

कोटा। गेहूं के दाम में आए उछाल ने इस साल सरकारी खरीद का पूरा गणित गड़बड़ा दिया। इसी का फायदा उठाकर व्यापारियों ने भारी मुनाफा कमाया। स्थिति यह हो गई कि केन्द्र सरकार को इस साल अपना खरीद का लक्ष्य तक घटाना पड़ गया। वहीं गेहूं के दामों में बढ़ोतरी का खामियाजा आमजन को उठाना पड़ा। वर्तमान में कम दाम में खरीदे गेहूं को अधिक दाम में बेचकर व्यापारी भारी मुनाफा कमा रहे हैं।  हाड़ौती में हर साल गेहूं की बम्पर पैदावार होती है। हालांकि इस साल तेज गर्मी के कारण उत्पादन क्षमता में कुछ प्रभाव पड़ा था। इसके बावजूद बाजार में बिक्री के लिए गेहूं की आवक शुरू होते ही दामों में तेजी आ गई थी। अमूमन 1800 से 2000 रुपए प्रति क्विंटल बिकने वाले गेहूं के दाम इस बार 2100 से 2200 के बीच बोले गए, जबकि समर्थन मूल्य पर गेहूं के दाम 2015 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किए गए थे। व्यापारी वर्ग ने इसका भरपूर फायदा उठाया और थोड़े दाम बढ़ाकर किसानों का सारा गेहूं खरीद लिया। इसका नतीजा यह रहा कि हाड़ौती क्षेत्र में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद नहीं हो पाई।

और घटाना पड़ गया कोटा
हर साल अधिकांश किसान अपनी उपज का उचित दाम प्राप्त करने के लिए सरकारी खरीद केन्द्र पर गेहूं बेचने की कोशिश करता था। इसकी प्रक्रिया काफी जटिल होने के बावजूद किसान का यही प्रयास रहता था कि उसका गेहूं सरकारी खरीद केन्द्र पर ही बिके, लेकिन इस बार गेहूं खरीद की गणित पूरी तरह से बिगड़ गई है। व्यापारी वर्ग ने पहले से ही अधिक दाम लगाकर किसानों का सारा माल खरीद लिया। ऐसे में सरकारी खरीद ठप हो गई। इसके चलते केन्द्र सरकार ने देश में गेहूं खरीद का कोटा घटाकर 195 लाख टन कर दिया, जो पिछले साल की तुलना में 55 फीसदी कम था। इससे व्यापारियों को भी फायदा हुआ।

ऐसे हुई व्यापारियों की मौज
गेहूं का उत्पादन और गुणवत्ता कमजोर होने का सीधा फायदा व्यापारियों को मिला। समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीद की दर 2015 रुपए प्रति क्विंटल थी। इसी का फायदा व्यापारियों ने उठाया और किसानों से अच्छी गुणवत्ता वाला गेहूं भी 2100 से 2200 रुपए प्रति क्विंटल के बीच खरीद लिया। उसके बाद अपने पास स्टॉक कर लिया। उस समय काफी मात्रा में गेहूं देश से बाहर निर्यात किया जा रहा था। ऐसे में व्यापारियों ने किसानों से खरीदा अधिकांश माल विदेशों में भेज दिया। इसका फायदा भी व्यापारियों को मिला। वहीं निर्यात के चलते स्थानीय स्तर पर गेहूं के दामों में और इजाफा हो गया, जिससे आमजन में हाहाकार मच गया। गेहूं के दामों पर लगाम के लिए केन्द्र सरकार को निर्यात पर प्रतिबंध तक लगाना पड़ा। इसके बावजूद दामों में ज्यादा कमी नहीं आई।

मुनाफाखोरी का खेल
कृषि उपजमंडी में किसानों का गेहूं 2100 से 2200 रुपए प्रति क्विंटल के बीच खरीदा गया था। व्यापारियों ने सारा गेहूं खरीदकर अपने यहां स्टॉक कर लिया। उसके बाद मुनाफाखोरी का खेल शुरू कर दिया। व्यापारियों ने अपने स्तर पर गेहूं के दाम बढ़ा दिए और आमजन को 2500 से 2600 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बेचा। व्यापारी को एक क्विंटल पर ही करीब 400 रुपए का भारी मुनाफा हो गया। कृषिमंडी से निकला गेहूं आमजन तक पहुंचने तक 400 रुपए प्रति क्विंटल महंगा हो गया।

सफाई के नाम पर धोखा
लोगों का कहना है कि बाजार में इस समय गेहूं 2600 रुपए प्रति क्विंटल की दर से मिल रहा है। इतने अधिक दाम होने के बारे में व्यापारी बताता है कि किसानों से खरीदे गए गेहूं की क्वालिटी काफी खराब होती है, इसलिए उस गेहूं की सफाई करवाई जाती है। इसलिए अधिक दाम लगाने पड़ते है। लोगों का कहना है कि मशीन क्लीन गेहूं के नाम से लूटमार की जा रही है। गेहूं को क्लीन करने में इतना खर्चा नहीं आता है इसके बावजूद सफाई के नाम पर दाम अधिक लगाए जाते है। 

इतना महंगा गेहूं कभी नहीं खाया
परिवार के लिए हर साल आठ बोरी गेहूं लेते हैं। इस बार गेहूं के दामों ने सकते में ला दिया है। आठ बोरी गेहूं ही बीस हजार रुपए से अधिक के आ गए। इससे पूरे घर का बजट ही गड़गड़ा गया है। व्यापारी मशीन क्लीन के नाम पर लोगों से धोखा करते हैं। ज्यादा रुपए लेने के बाद भी गेहूं में कंकर व अन्य गंदगी मिली हुई थी।
- दुर्गाप्रसाद शर्मा, जयश्रीविहार

परिवार में दस सदस्य हैं, इसलिए सालभर का गेहूं एक साथ खरीद लेते हैं। इस साल तो  गेहूं काफी महंगा पड़ गया। कोरोना महामारी के चलते व्यवसाय पहले से ही ठप था। अब महंगे गेहूं की और स्थिति बिगाड़ दी। मजबूरी में गेहूं खरीदने की मात्रा कम करनी पड़ी। अगर आगे दाम कम होंगे तो और गेहूं खरीद लेंगे।
- रामभरोस सुमन, ग्रीन होम सोसायटी

भामाशाहमंडी में किसानों को इस बार गेहूं के दाम अधिक मिले थे। इससे किसानों को फायदा हुआ था। अधिकांश किसानों ने व्यापारियों को ही माल बेचा था। इसके बाद माल की दर व्यापारी अपने हिसाब से ही तय करता है।
- जवाहरलाल नागर, भामाशाहमंडी सचिव

गेहूं के दामों में इजाफा होने से इस बार सरकारी केन्द्रों पर गेहूं की खरीद नहीं हो पाई है।  कोटा संभाग में गेहूं खरीद के लक्ष्य तय किए गए थे, लेकिन बाजार में समर्थन मूल्य से अधिक दाम होने से केन्द्रों पर खरीद नहीं हो पाई।
- सतीश कुमार, मण्डल प्रबंधक, एफसीआई कोटा

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