ऐसे ही महाशक्ति और विश्वगुरु बनेगा देश
हम गर्व से कहते नहीं थकते कि हम हिंदू हैं। कहना भी चाहिए, इसमें कोई बुराई भी नहीं है।
हम गर्व से कहते नहीं थकते कि हम हिंदू हैं। कहना भी चाहिए, इसमें कोई बुराई भी नहीं है। लेकिन समझ नहीं आता कि भारतीय कहने में हमें गर्वानुभूति क्यों नहीं होती। जबकि यह भरत का देश है और उसी की वजह से भारत की पहचान है। इसे झुठलाया भी नहीं जा सकता। वैसे इस देश में गर्व से कहने को बहुत कुछ है। आजकल गर्व करने वाली सबसे बड़ी बात कही जाए या शर्म की बात कि देश की भुखमरी के मामले में सर्वत्र ख्याति है। यह वैश्विक भुखमरी सूचकांक की सूची से प्रमाणित हो जाता है। उसकी बानगी देखिए कि देश के चहुंमुखी विकास का दावा करना तो बेहद सुखकारी लग सकता है, उस पर गर्व करते रहिए। आपको रोकता कौन है। यह गर्व की बात है भी। लेकिन यह भी देखना बेहद जरूरी है कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक में हमारी स्थिति क्या है। आज वैश्विक भुखमरी सूचकांक में हमारा देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पिछड़ा है। वह नेपाल से 24 और पाकिस्तान से 9 पायदान नीचे है। बदतर हालात का अंदाजा इसी से लग जाता है कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक की सूची में हम अफगानिस्तान जैसे देश के बेहद करीब हैं। है न यह गर्व करने की बात।
देखा जाए तो वर्तमान में हमारा देश दुनिया के 116 देशों में भुखमरी के मामले में 101वें पायदान पर है, वह भी पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से पीछे। जबकि भुखमरी और कुपोषण के मामले में चीन, ब्राजील और कुवैत दुनिया के 18 देशों में शीर्ष स्थान पर हैं। भारत ही नहीं दुनिया के 37 देश वर्ष 2030 तक भुखमरी को नियंत्रित करने में नाकाम रहेंगे। आयरलैंड की कंसर्न वर्ल्ड वाइड और जर्मनी के वेल्ट हंगर हिल्फ नामक संगठन के अनुसार भुखमरी के मामले में भारत की स्थिति बेहद चिंताजनक है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक के पिछले वर्षों का जायजा लें तो पाते हैं कि वर्ष 2018 में भुखमरी सूचकांक की सूची में भारत 103वें स्थान पर, 2019 में 117 देशों में 102वें स्थान पर और 2020 में 107 देशों में 94वें स्थान पर रहा है। खासियत यह कि बीते वर्षों में भी हमारा देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से पीछे ही रहा है। वर्ष 2020 में कुल 107 देशों में 13 देश ही भारत से खराब स्थिति में हैं। इनमें प्रमुख है रवांडा 97, नाइजीरिया 98, अफगानिस्तान 99, लाइबेरिया 102, मोजाम्बिक 103 और चाड 107वें स्थान पर है। इनमें भी चाड, तिमोरलेस्ते और मैडागास्कर भुखमरी के खतरनाक स्तर पर हैं।
भुखमरी सूचकांक के अनुसार अल्प पोषण, कुपोषण, बाल वृद्धि दर और बाल मृत्यु दर के आधार पर हमारे देश का स्तर 2020 से और गिरा है। 2020 में वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत का स्तर 38.8 था, जबकि वर्ष 2012 और 2021 के बीच यह स्तर 28.8 और 27.5 के बीच रहा है। रिपोर्ट की मानें तो इस दौरान नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान की भुखमरी की स्थिति चिंताजनक स्थिति में है लेकिन भारत की तुलना में इन देशों ने अपने नागरिकों को भोजन उपलब्ध कराने की दिशा में बेहतर प्रदर्शन किया है। भारत इस सूचकांक में भी श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे देशों से भी पीछे है। यदि चाइल्ड वेस्टिंग के मामले में भारत का प्रदर्शन देखा जाए तो इस मामले में भारत की हिस्सेदारी 1998-2002 के मुकाबले 17.1 से बढ़कर 2016-2020 में 17.3 फीसदी हो गई है। इससे साबित होता है और रिपोर्ट भी इसी और इशारा करती है कि भारत सबसे अधिक चाइल्ड वेस्टिंग वाला देश है जहां कोविड-19 महामारी के चलते लगाए प्रतिबंधों से लोग बेहद बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। असलियत यह है कि चीन, बेलारूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा सहित दुनिया के 17 देश भूख, कुपोषण के मामले में शीर्ष पायदान पर हैं। हमारे देश की तकरीब 14 फीसदी से भी अधिक आबादी कुपोषण की शिकार है। बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के आंकड़ों से पता चलता है कि ऐसे परिवारों जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों-कमियों से पीड़ित हैं, के बच्चों का कद नहीं बढ़ पाता है। यहां समय से पहले बच्चों का जन्म और कम वजन के कारण बच्चों की मृत्यु दर गरीब राज्यों के ग्रामीण इलाकों में खासकर बढ़ी है। भारत का जहां तक सवाल है, हमारे यहां उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में भुखमरी सूचकांक की दृष्टि से प्रदर्शन में सुधार की बेहद जरूरत है। इस मामले में राष्टÑीय औसत उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से सर्वाधिक प्रभावित होता है जहां कुपोषण के मामले अधिक हैं। यह भी सच है कि ये ही राज्य देश की आबादी में खासा योगदान भी करते हैं। इसके अलावा झारखंड जैसे राज्यों में भी बदलाव की बहुत आवश्यकता है। जानकारों की मानें तो इसके लिए खराब कार्यान्वयन प्रक्रिया, प्रभावी निगरानी का अभाव, कुपोषण से निपटने का उदासीन रवैय्या और बड़े राज्यों का खराब प्रदर्शन ही सबसे बड़ा जिम्मेदार है।
ज्ञानेन्द्र रावत
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
अब विचारणीय प्रश्न तो यह है कि इन हालात में यह गर्व का विषय है या शर्म का, यह सोचने का देश के विकास और देश को विश्व की महाशक्ति ही नहीं, विश्व गुरू बनाने का दंभ भरने वाली हमारी सरकार और देश के भाग्य विधाताओं के पास समय ही कहां है। उन बेचारों के पास तो देश और देश की जनता के विकास की खातिर देश के बंदरगाह, रेल, बस अड्डे, हवाई अड्डे, किले, कंपनियां, जमीन और देश की धरोहरों आदि के बेचने और अन्नदाता किसान को पामाल बनाने की खातिर योजनाओं के निर्माण में व्यस्तता से समय ही कहां बचता है। वह तो चौबीसों घंटे देश की सेवा में लगे रहते हैं। यह है न गर्व करने का विषय। दुख तो इसका है कि इस सबके बावजूद भी हम उन पर रात-दिन अनर्गल आरोप- दर- आरोप लगाते नहीं थकते। है न शर्म की बात कि हम अपने देश के कर्णधारों पर विश्वास न कर उनको नाकारा करार देते हैं जिनमें देश की जनता ने पिछले दो चुनावों में अटूट भरोसा जताया हो। जैसेकि दावा किया जा रहा है कि अब वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश फिर सोने की चिडिया बन जायेगा और विश्व गुरू कहलायेगा। मौजूदा हालात तो इसकी गवाही नहीं देते। उस हालत में और जबकि लाख दावों के बावजूद बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी सुरसा के मुंह की भांति बढ़ रही है। देश का अन्नदाता किसान सरकार द्वारा लाये गये कृषि कानून के चलते अपनी जमीन से बेदखल होने के डर से बीते एक साल से सड़कों पर अपने हकों की लडाÞई लड़ रहा है। कोरोना के चलते लाकडाउन से हुयी कंपनियों की बंदी से लाखों-करोड़ों कामगारों के आगे परिवार का पेट भरना मुश्किल हो गया हो। लाखों मजदूर बेघर हो गये हों। उनके भूखों मरने की नौबत आ गयी है। इन हालात में क्या यह संभव है और उस समय यह विचारणीय भी है और भविष्य के गर्भ में भी। सबसे बड़ी बात यह कि भूखे पेट कोई देश कैसे महाशक्ति और सोने की चिडिया बन सकता है। यह मुंगेरीलाल के सपने जैसा नहीं है क्या?उस समय देश की जनता के हाथ क्या आयेगा, यह अब किसी से छिपा नहीं है। वह सबके सामने है। उस समय आपके पास गर्व करने को क्या रहेगा, यही सवाल आपके सोचने का विषय है।
ज्ञानेन्द्र रावत
वरिष्ठ पत्रकार , लेखक एवं पर्यावरणविद्
326-ए, जीडीए फ्लैट्स, मिलन विहार-2,
अभय खण्ड-3, समीप मदर डेयरी,
इंदिरापुरम्, गाजियाबाद-201014, उ0प्र0
मोबाइल: 9891573982
राष्ट्र-चिंतन
असलियत यह है कि चीन, बेलारूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा सहित दुनिया के 17 देश भूख, कुपोषण के मामले में शीर्ष पायदान पर हैं। हमारे देश की तकरीब 14 फीसदी से भी अधिक आबादी कुपोषण की शिकार है। बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के आंकडोÞं से पता चलता है कि ऐसे परिवारों जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों-कमियों से पीड़ित हैं, के बच्चों का कद नहीं बढ़ पाता है। यहां समय से पहले बच्चों का जन्म और कम वजन के कारण बच्चों की मृत्यु दर गरीब राज्यों के ग्रामीण इलाकों में खासकर बढ़ी है।
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