राजकाज
होर्डिंग्स के बहाने : भगवा वालों का रोग : बेफिकर हैं भाई साहब : ट्रेनिंग मुखबंद की : गूंगो गढ़ जीतै :
होर्डिंग्स के बहाने
सूबे की राजधानी में अब होर्डिंग्स की होड़ भी होने लगी है। मौके बेमौकों पर हर चौराहों पर अलग अलग स्लोगन के होर्डिंग दिखाई देते हैं। एक दूसरे को मात देने में दिन रात पसीना बहा रहे हाथ वाले भाई लोग भी होर्डिंग्स की दौड़ में शामिल हैं। प्रदेश के किसी नेता का जन्मदिन हो या फिर खेलों में कीर्तिमान की घटना हो या चाहे कन्या भू्रण हत्या रोकने का प्रकरण हो। जयपुर शहर रातों रात कुछ भाई लोगों की फोटो लगे होर्डिंग्स से सज जाता है। सजे भी क्यों नहीं, राजधानी के एक भाई साहब की उत्तर भारत की सबसे बड़ी कंपनी के मालिक से दोस्ती जो है।
भगवा वालों का रोग
भगवा के नेताओं की दिमागी बीमारी को लेकर भारती भवन तक बैठकों के साथ चिंतन-मंथन हो रहा है। दोनों खेमों के नेताओं में इस बीमारी का असर दिखाई दे रहा है। अब देखो ना जिस संगठन की गोद में बैठकर ऊंची छलांग लगा कर उदयपुर वाले भाई साहब ने सालों तक कुर्सी के मजे लिए, अब वो ही कहने लगे हैं कि 50 साल में संगठन ने मुझे क्या दिया। कुछ इसी तरह का जुमला सामने वाले खेमे में चल रहा है कि हमने बहुत कुछ दिया है। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि दोनों तरफ ही खुद को सुप्रीमो से कम नहीं समझ रहे और मैडम को चैलेंज करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। इसीलिए तो कहावत है कि वहम की कोई दवा नहीं होती।
बेफिकर हैं भाई साहब
इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के दफ्तर में कोई न कोई नई चर्चा पैदा हो जाती है। इस बार चर्चा है कि इतना सबकुछ होने के बाद भी राज करने वाले भाई साहब के चेहरे पर कोई शिकन नहीं है। इसका कारण ढूंढने के लिए एक टुकड़ी भी रात दिन पसीने बहा रही है। राज का काज करने वाले भी लंच केबिन में बतियाते हैं कि इसमें कोई न कोई राज जरूर छुपा हुआ है। लेकिन हम बताय देते हैं कि भाई साहब के सामने वाले मैं नहीं तो तू नहीं के सिवाय कुछ नहीं कर पा रहे।
ट्रेनिंग मुखबंद की
दरबार के बाहर राजा के बिना हुक्म के कोई भी वजीर मुंह नहीं खोल सकता। कुछ इसी तरह के संकेतों से वजीरों के चेहरों पर भी चिंता की लकीरें हैं। हमारे सूबे के नेता काफी वाचाल हैं। यह आदत उनकी काफी पुरानी है। छपास के रोगियों की तो अर्द्ध-रात्रि तक भी नींद गायब रहती थी। लेकिन अब मामला उल्टा नजर आ रहा है। जो भाई साहब अर्द्ध-रात्रि को भी हालचाल पूछ कर एक लाइन छापने की गुहार करते थे, वो अब देखते ही बगलें झांक कर निकल जाते हैं। राज का काज करने वालों ने इसका राज खोला तो अपने भी कान खड़े हो गए। उन बेचारों का कोई कसूर नहीं है, उन्हें अभी से मुखबंद की ट्रेनिंग जो दी जा रही है। उनको साफ कहा गया है कि अंदर की बात की गंध खबर सूंघने वालों की नाक से कौसों दूर होनी चाहिए।
गूंगो गढ़ जीतै
मारवाड़ में एक कहावत है कि गूंगो गढ़ जीतै। यह कहावत कई बार सटीक भी बैठ जाती है। कई बार बिना बोले भी गढ़ जीत लिया जाता है। अब देखो न मारवाड़ के गांधी के नाम से पहचान बनाने वाले जोधपुर वाले अशोक जी भाई साहब ने बिना बोले ही गढ़ जीत लिया। भाई साहब दिल्ली के दौरे में पूरे दो दिन तक चुप रहे। अड़गेबाजों ने तो पैंतरे फैंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी, पर भाई साहब ने इशारों ही इशारों में गढ़ जीत लिया।
गोवन्दिजी जरा संभलके
हमारे लक्ष्मणगढ़ वाले भाई साहब का भी कोई जवाब नहीं है। जुबान फिसलना उनकी आदत में है। मास्टरों को नब्ज ठीक करने की गारंटी लेने वाले गोविन्द जी भाई साहब भी गुजरे जमाने में किसी के मास्टर रह चुके हैं। इसी वजह से उनसे मास्टरों का कोई एैब छिपा नहीं है। बराबर के रत्नों को भी हड़काने में कोई कंजूसी नहीं करते हैं। कइयों को तो मूलधन के साथ ब्याज भी चुकाया है। जो करना था कर दिया, अब तो नेहरू जयंती का बेसब्री से इंतजार है। तब तक भाई साहब को जुबान के साथ-पैरों को भी संभल कर रखना होगा।
एल. एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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