कोटा । करवा चौथ का त्यौैहार मनाया जा रहा है। सुहागिन महिलाएं आज अपने पति की लंबी उम्र और शादीशुदा जिंदगी के लिए पूरे दिन का व्रत रखेंगी। शाम को चांद के निकलने के बाद उसकी पूजा और उसे अर्घ्य देकर महिलाएं अपना व्रत पूरा करती है । समय के साथ समाज में जागरुकता आई है। मान्यताएं भी बदली हैं, लेकिन नारी के जीवन में करवा चौथ व्रत का महत्व कम नहीं हुआ। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियां करवाचौथ का व्रत श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। करवा चौथ का व्रत हर सुहागिन महिलाओं के लिए खास होता है। यह पर्व दंपति के बीच त्याग समर्पण के साथ प्रेम का प्रतीक है। इस दिन महिलाए पूरे सोलह श्रृंगार के साथ इस पर्व को धूमधाम से मनाती है। सिंदूर से चमकती मांग, माथे पर दमकती बिंदिया, हाथों में सुहाग का चूड़ा, पैरों में महावर और बिछिया, हाथों में रची मेंहदी। पूरे सोलह श्रंगार कर आसमान में टकटकी लगाए चांद निकलने का बेसब्री से इंतजार करती हैं। ये सब प्रतीक हैं, आस्था और प्रेम के पर्व करवा चौथ का। यही तो वह पर्व है जब महिलाएं पति की दीघार्यु और मंगलकामना के लिए निर्जला व्रत रखकर अपने प्रेम, समर्पण और त्याग का परिचय देती हैं। उनके इस पर्व का सबसे बड़ा साक्षी वह चांद होता है जिसे देखने के बाद सुहागिनें पति के हाथों से जल पीकर अपने व्रत का पारण करती हैं। करवा चौथ महज एक व्रत नहीं है, बल्कि सूत्र है, उस विश्वास का कि हम साथ साथ रहेंगे, जीवन के अंत तक हमारा साथ ना छूटे। सौभाग्य का सूचक करवा चौथ सुहागिनों के लिए बेहद खास होता है। हर किसी की मीठी याद इस पर्व से जुड़ी होती है। महिलाएं करवा चौथ और उससे जुड़ी यादों को हमेशा संजोकर रखती हैं। आज करवा चौथ के मौके पर शहर की जानी मानी महिलाएं दैनिक नवज्योति के साथ साझा कर रहीं हैं, करवा चौथ की खूबसूरत यादों को जिन्हें वो आज भी नहीं भूल सकी हैं।
याद आता है वह पहला करवा चौथ
मेरी यादों में बसी है पहली करवा चौथ। बात वर्ष 1970 की है। उसी साल जुलाई में विवाह हुआ था और शादी के बाद मेरी पहली करवा चौथ आई। मैं उस समय जयपुर में अपने पैरेन्ट्स के पास थी और डॉक्टर साहब की पोस्टिंग सीकर में थी। तब मेरा ट्रांसफर सीकर नहीं हुआ था। करवा चौथ से दो दिन पहले ही डॉक्टर साहब आकर गए थे। इसलिए यह था कि करवा चौथ पर तो आ नहीं सकेंगे। करवा चौथ के दिन दोपहर में टेलीफोन पर बात की और विश भी कर दिया था। इसलिए आने की उम्मीद भी नहीं थी कि अब क्या आएंगे। शाम को जब चांद देखने का समय आया मेरी मदर ने कहा तुम चलो ऊपर हम लोग आते हैं। जैसे ही मैं छत पर पहुंची वहां डॉक्टर साहब खड़े हुए थे। मैंने कहा आप कैसे आ गए दोपहर में फोन पर आपने बोला था नहीं आ सकेंगे। उन्होंने कहा सीकर में सबने कहा करवा चौथ पर यहां क्या करोगे जयपुर चले जाओ। सीकर से जयपुर आने में तीन घंटे लगते है तो आ गए। मेरे चेहरे पर एकदम आश्चर्य और खुशी दोनों का भाव एक साथ था। हमने पूजा की इतने में परिवार के सदस्य भी ऊपर आ गए और तालियां बजाने लगे। मेरे लिए आश्चर्य वाली बात ये थी कि उनके आने का नहीं था और अचानक आकर सरप्राइज दे दिया। डॉक्टर साहब उसी समय घर आये होंगे पेरेन्ट्स ने कहा होगा ऊपर ही जाए वही उन्हें भेजते है। पेरेन्ट्स ने भी सरप्राइज रखा। डॉक्टर साहब व्यस्त रहने के बाद आज भी करवा चौथ पर समय निकालते हैं। बार-बार छत पर जाकर देखते हैं कि चन्द्रमा निकला या नहीं। ऊपर खड़े रहते हैं जब चांद निकल आता है तो मुझे बुलाते हैं फिर दोनों मिलकर चन्द्रमा की पूजा कर लेते हैं। डॉक्टर साहब कहते जरूर है पर उन्होंने कभी व्रत नहीं रखा। बहुत केयरिंग है ,मेरे हार्ट के आॅपरेशन के बाद से मुझे व्रत रखने नहीं देते। मुझे डायबिटीज भी है। करवा चौथ के दिन फ्रूट्स वगैरह देते हैं। मेरा पूरा ध्यान रखते हैं कि मैं भूखी नहीं रहूं। कहते हैं पूजा कर लो व्रत नहीं करो।
- डॉ. अरुणा अग्रवाल, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ
मुझे ही देखों और व्रत खोलो
करवा चौथ वर्ष 1981 से कर रहे हैं। वर्ष 1996 की बात है। अमेरिका गए थे। वहां करवा चौथ का त्यौहार पड़ा। शिकागो में थे। यह तो मालूम था कि करवा चौथ का दिन वहीं पर आएगा तो यहां से पूजा आदि की सभी चीजें लेकर गए थे क्योंकि वहां मिलना संभव नहीं था। जिस दिन करवा चौथ थी उस दिन शिकागो में बहुत बारिश व फॉगी था। चांद ही नहीं दिख रहा था। रात के एक बज गए, लेकिन कहीं चांद नजर नहीं आ रहा था। होटल में ठहरे थे। होटल की टॉप पर गए किंतु चांद के दूर-दूर तक दीदार नहीं थे। डॉक्टर साहब भी साथ ही थे। उस समय मोबाइल भी नहीं था कि भारत में पूछे कि चांद निकला के नहीं। फिर डॉक्टर साहब ने ही कहा मुझे ही देखों और व्रत खोलो। वह करवा चौथ बिना चांद के दर्शन किए मनाई और फिर खाना खाया। डॉक्टर साहब कितने भी व्यस्त हो लेकिन करवा चौथ के दिन थोड़ा जल्दी घर आते हैं तभी हम पूजा करते हैं और व्रत खोलते है।
- डॉ. संध्या महेश पंजाबी, आई सर्जन, कोटा आई हॉस्पिटल
जब सरगी के लिए टाइम ही नहीं मिला
ये भावनाओं की अभिव्यक्ति का बहुत खूबसूरत पर्व है। हमारी शादी को 30 साल हो गए हैं।नियमानुसार मानते आ रहे है। हॉस्टल और कई जगह रहे तो संभव नहीं हो पाता था कही ग्रुप में पूजा करने जाए। मेरे ससुराल और मायके में भी ये सिस्टम नहीं है पूजा के लिए सब सुहागनें इकठ्ठी होकर पूजा करती है और थाली बटाती है। इसलिए करवा चौथ की पूजा मैं घर पर ही अकेले पूरे नियम और रीति रिवाज के साथ करती हू। हमारे में सरगी बहुत इम्पोर्टेन्ट होता है। सरगी का सेवन सूर्योदय से पहले होता है। सूर्योदय से पहले उठकर सरगी खाकर अपने व्रत का संकल्प लेते हैं। दस साल पहले की बात है। एक बार करवा चौथ के दिन उठी और फिर वापिस सो गई। देर से उठने के कारण प्रॉपर तरीके से सरगी नहीं कर सकी। बस फटाफट चाय बनाई और थोड़ी सी चाय पी सरगी के लिए टाइम ही नहीं मिला। । पहले तो कुछ नहीं लेते थे निर्जला रखते थे जब तक चांद नहीं निकलता है। लेकिन अब पूजा करने के बाद एक कप चाय पी लेती हूं, पानी नहीं पीती। ये भी बहुत बाद में शुरू किया। शाम को पांच बजे से पहले पूजा कर लेती हूं। कथा मैं खुद पढ़ती हूं । ये रिवाज है जो अच्छे लगते है। करवा चौथ पर मेहंदी लगाती हूं प्रॉपर तरीके से सेलिब्रेट करती हूं , पंजाबियों में ये बड़ा पर्व होता है। व्यस्त रहने के बाद भी डॉक्टर साहब चन्द्रमा की पूजा के समय आ जाते है। वैसे तो उन्हें याद रहता है फिर भी उनके साथी याद करा देते है कि आज करवा चौथ है। हम दोनों में अंडरस्टैंडिंग है। उनको ध्यान रहता है और पूछते हैं हां , हो गई पूजा। शुरू से ही व्यस्त रहे हैं। गिफ्ट वगैरह ओकेजन पर देना नहीं हो पाता। इसमें फ्लेक्सिबिलिटी है जब संभव हुआ तब एक दूसरे को दे दिया।
- डॉ. अंशु सरदाना, कंसल्टेंट पैथोलॉजिस्ट
उन्होंने अपने हाथों से बनाई थीं आलू की टिक्की
चूड़ियों को सजा लिया हाथों में और माथे पर सिंदूर लगाया है.....साजन ने चांद देख कर कहा, सुनो चांद निकल आया है.....करवा चौथ का दिन मेरे लिये बहुत महत्वपूर्ण है,इस दिन की स्मृति मेरे जहन में अटूट रिश्ते की प्यारी सी अनुभूति है। क्योंकि उन्हीं के प्रेम और सम्मान ने मेरे जीवन को नया रंग दिया है।इस दिन जेटली जी की दिनचर्या में एक अलग अक्स, नई ताजगी का एहसास होता है, मुझे याद है उनका बार बार छत पर जाना, बार बार बाहर निकलना सिर्फ यह देखने के लिये कि चांद निकला या नहीं। चांद निकलते ही एक मुस्कान के साथ मुझे पुकारना कि सुनो,देखो चांद निकल गया है। अब उनको कैसे बताऊं कि मेरे चांद तो आप हो। उनका पूजा की थाली को सजाना, छन्नी लाना, यह नया रूप ,यह मेरा ख्याल रखना मेरे लिये अविस्मरणीय है। वह करवा चौथ मैं कभी नहीं भूलती जब उन्होंने चांद दर्शन व पूजन के बाद उन्होंने मुझे सोफे पर बैठाया और खुद किचन की ओर चले गये। थोडी ही देर में जायकेदार व्यंजन की खुशबू से मैं किचन की ओर गई तो देखती हूं कि वह कढाई में आलू टिक्की फ्राई कर रहे है और कुछ ही क्षणों में स्वादिष्ट आलू टिक्की से सुसज्जित प्लेट लिये मेरे सामने,मेरे साजन खडे थे। करवा चौथ के दिन कब उन्होने आलू टिक्की बनाने की तैयारी कर ली, मुझे पता ही नही चला ,यह मेरे लिए खुशी और आश्चर्य से भरा सरप्राइज था। मेरे लिये यह पल, यह एहसास,यह केयर ,यह अपनापन सुनहरी स्मृति बन गया। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मुझे हर जन्म यही जीवन साथी मिले ।
- कुमकुम जेटली, प्रेसिडेंट, रोटरी क्लब कोटा रॉयल
उस दिन को याद करके मन में आनन्द की अनुभूति होती है
करवा चौथ से सम्बन्धित मेरा यह संस्मरण करीब चार वर्ष पुराना है। तब मैं बूंदी जिले की अतिरिक्त जिला कलक्टर के पद पर पदस्थापित थी। अचानक शाम को 4 बजे जयपुर से वायरलेस मैसेज आया कि एक दिन बाद नई दिल्ली से अति विशिष्ट प्रतिनिधि मंडल का बूंदी जिले का राजकीय दौरा तय हुआ है। सूचना मिलते ही तुरन्त मैने कुछ विभागों से स्टाफ तैयारियों हेतु बुलाया। उक्त स्टाफ में महिलाकर्मी भी थी। संयोगवश उस दिन करवा चौथ थी। मेरे सहित स्टाफ की अनेक महिलाओं के भी व्रत था। हम अगले दिन की विविध प्रकार की तैयारियों में जुट गए । मैंने उसी समय आनन फानन में कई मीटिंग ली। कार्य करते हुए पता नहीं लगा कि कब रात हो गई। सभी महिलाओं ने भूखे प्यासे रहकर कार्य किया। व्रत की वजह से मैंने महिलाकर्मियों को शाम को 7 बजे घर चले जाने को कहा , लेकिन फिर भी एक भी महिला कार्य समाप्त होने से पूर्व घर जाने को तैयार नहीं हुई। उस दिन हमें चन्द्र दर्शन कार्यालय में ही होना तय था । उस समय बूंदी कलक्टर भी महिला थी । वे भी हमारे साथ रही। रात को 9 बजे के बाद हमारी तैयारियां पूरी हुई। तत्पश्चात दिनभर की सभी भूखी प्यासी अपने अपने घर के लिए निकली। रास्ते में मन में विचार आ रहा था कि अभी तो घर जाकर करवा चौथ की बहुत सी तैयारियों करनी है मेरी बेटी भी उस समय डेढ़ साल की थी उसको भी खाना खिलाना है। लेकिन घर पहुंचकर अत्यंत सुखद आश्चर्य हुआ की मेरे पति जो कभी खुद अपने हाथ से रसोई में जाकर खाना लेने की जहमत भी नहीं उठाते उन्होंने सभी तैयारियां कर रखी थी। करवा चौथ के दिन आकस्मिक वी आई पी विजिट की तैयारियां, हमारी टीम भावना एवम परिवारजनों के सहयोग ने उस दिन को अविस्मरणीय बना दिया। आज भी जब करवाचौथ आती है तो उस दिन को याद करके मन में आनन्द की अनुभूति हो जाती है।
-ममता तिवारी , सीईओ, जिला परिषद
Comment List