सतरंगी सियासत

गांधी परिवार भी खड़गे के समर्थन में बताया जा रहा है

सतरंगी सियासत

हैदराबाद से निकट का संबंध होने के कारण वह ऊर्दू में भी सहज। फिर उनका नाता दलित समाज से भी है।

बहुभाषी खड़गे
अब लगभग यह तय। करीब पांच दशकों से ज्यादा समय से राजनीति में सक्रिय वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के मुखिया बनने जा रहे। लगभग पूरी कांग्रेस कार्यसमिति के साथ ही पार्टी के तमाम बड़े नेता उनके पक्ष में। यह उनके प्रस्तावकों में नामों की सूची से देख जा सकता। यही नहीं, गांधी परिवार भी उनके समर्थन में बताया जा रहा। रविवार को उनके बारे में एक और जानकारी सामने आई। खड़गे केवल कन्नड़ भाषा ही नहीं। बल्कि हिंदी, अंग्रेजी एवं मराठी बोलने में भी सहज। हैदराबाद से निकट का संबंध होने के कारण वह ऊर्दू में भी सहज। फिर उनका नाता दलित समाज से। लेकिन नामांकन दाखिल करने के बाद जब पहली बार दिल्ली में मीडिया से बात की। तो उन्होंने बार-बार दलित, दलित रटने पर भी आपत्ति जताई। कहा यह ठक नहीं। वह कांग्रेस के एक कर्मठ एवं निष्ठावान कार्यकर्ता। और उसी रूप में उनकी पहचान भी। कहा, बाकी किसी तमगे से उन्हें नहीं नवाजे! न ही उनकी पहचान में अंतर किया जाए।

सवाल टाइमिंग का!
बीती 25 सितंबर की रात को जयपुर में हुए राजनीतिक घटनाक्रम के बाद से ही सीएम गहलोत की दिल्ली यात्रा काफी अहम हो गई थी। जब वह 28 सितंबर की रात को राजधानी दिल्ली पहुंचे। तो यहां गहलोत की सारी गतिविधियों पर सभी सियासी जानकारों की पैनी नजरें थीं। सो, मौके की नजाकत को देखते हुए उन्होंने पार्टी सोनिया गांधी से माफी मांग ली। उसके बाद भारी संख्या में दस जनपथ के बाहर जुटे मीडिया के सामने भी इसे दोहराया। लेकिन शाम को अचानक केसी वेणुगोपाल ने दस जनपथ से निकलते हुए बीच सड़क पर ऐलान कर दिया। अगले एक-दो दिन में पार्टी अध्यक्ष राजस्थान के मुखिया का फैसला कर देंगी। जबकि दिन में कांग्रेस अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री की मुलाकात के बाद काफी कुछ ठंडा हो चुका था। लेकिन उसके बाद शाम को वेणुगोपाल द्वारा सार्वजनिक बयान देना। इसने मानो फिर से वहीं लाकर खड़ा कर दिया। हालांकि अब वह मियाद पूरी हो चुकी! तो फिर फायदा क्या हुआ? सवाल टाइमिंग का!

छौंक तो नहीं?
राजस्थान के लिए बीती 29 एवं 30 सितंबर खासी महत्वपूर्ण रहीं। कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नामांकन की अंतिम तिथि के दिन तमाम दांवपेंच एवं उठापटक के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपना पर्चा दाखिल किया। जबकि उसके एक दिन पहले राजस्थान को लेकर दिल्ली में अच्छी खासी हलचल रही। लेकिन बीते शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कुछ समय के लिए शाम को मांउट आबू आए। वहां उस समय प्रदेश भाजपा के तमाम दिग्गज मंच पर मौजूद रहे। पीएम मोदी के स्वागत के लिए भारी भीड़ भी जुटी। लेकिन उन्होंने आम जनता को रात में माइक से संबोधित नहीं किया। अब पीएम मोदी कुछ भी करें या बोलें। और उसके मायने नहीं हो। ऐसा कैसे संभव? सो, अर्थ तो लगेंगे ही। ऐसे में पीएम मोदी राजस्थान में चल रहे सियासी उबाल में कहीं छौंक तो लगाने नहीं आए थे? क्योंकि जितनी खदबदाहट कांग्रेस में। उससे कम तो भाजपा में भी कम नहीं! पार्टी हर हालात के लिए तैयार रहने की हां भर रही।

निशाने पर माकन!
आजकल प्रभारी महासचिव अजय माकन राजस्थान में कांग्रेसियों के एक खेमे के निशाने पर। यह ठीक वैसे ही। जैसे कभी तत्कालीन प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे के साथ हुआ था। अविनाश पांडे पर पक्षपाती होने के आरोप लगे थे। बाद में उनसे इसी विवाद के चलते जिम्मेदारी वापस ले ली गई। अब अजय माकन पर भी पक्षपात के आरोप। बीती 25 सितंबर की रात को जो कुछ हुआ। उसके लिए माकन की जल्दबाजी को भी जिम्मेदार बताया जा रहा। यहां तक राजस्थान के नेताओं को पाबंद किया गया। अनावश्यक बयानबाजी से बाज आएं। फिर दिल्ली आने बाद भी जो लिखित रिपोर्ट में कहा गया। माकन उसके मीडिया में आने पर भी आपत्ति जता रहे। खासतौर से ह्यक्लीन चिटह्ण शब्द पर। जबकि सीएम गहलोत के तीन करीबियों को नोटिस भेजा गया। अभी जवाब का इंतजार। इधर, इशारा किया जा रहा। कार्रवाई तो होगी। लेकिन क्या और कब? और किस तरह की कार्रवाई होगी? फिर उसका परिणाम क्या होगा? चचार्एं अभी से ही हो रहीं।

ध्यान खींच रही कांग्रेस!
कांग्रेस किसी न किसी बहाने ध्यान खींच रही। वहीं, भाजपा का दावा। कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही। लेकिन तमाम विपरित हालातों के बावजूद कांग्रेस चर्चा के केन्द्र में। हालिया दौर में पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा की चर्चा। जिसमें राहुल गांधी प्रतिदिन करीब 20 किलोमीटर से ज्यादा पैदल चल रहे। यात्रा को मीडिया में अच्छी खासी कवरेज मिल रही। इसी बीच, 22 सितंबर को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव के लिए बकायदा अधिसूचना जारी हुई। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने पूरी तरह अपने भावी मुख्यिा पर सस्पेंस बनाए रखा। नामांकन के आखरी दिन तस्वीर साफ हो पाई कि कौन मुखिया होगा। हां, इस दौरान जितने नाम चर्चा में आए। वह कहीं पीछे छूट गए। लगभग इसी समय राजस्थान का राजनीतिक घटनाक्रम अच्छी खासी सुर्खियां बटोर ले गया। जबकि लग रहा हालात अभी भी सामान्य नहीं। अब अनुमान लगाया जा रहा। अध्यक्ष पद की प्रक्रिया खत्म होने के बाद फिर से राजनीतिक बवंडर उठेगा। आखिर नेतृत्व को कई महत्वपूर्ण निर्णय जो लेने होंगे।

इधर कार्यकाल बढ़ेगा!
इधर भाजपा खेमे की ओर से अब यह चर्चा आम। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल एक साल के लिए और बढ़ेगा। असल में, उनका कार्यकाल अगले साल जनवरी में पूरा हो रहा। लेकिन 2024 में हेने वाले आम चुनाव को देखते हुए पार्टी नेतृत्व ने यह रणनीति बनाई। ऐसा जानकार बता रहे। यह सभी जानते। भाजपा एवं कांग्रेस की राजनीतिक लड़ाई कभी न खत्म होगी और न ही यह धीमी पड़ने वाली। क्योंकि अदावत वैचारिक की। साथ में बात कार्यशैली की भी। सो, कांग्रेस आरोप लगा रही। भाजपा में संगठनात्मक चुनाव कब हुए? जिसके जवाब में भाजपा का पलटवार। कांग्रेस में इलेक्शन नहीं सेलेक्शन होता रहा। फिर भाजपा नेता गांधी परिवार को भी निशाने पर लेने का कोई मौका नहीं चूकते। तो कांग्रेस भी पीएम मोदी, भाजपा ही नहीं संघ परिवार को हमेशा निशाने पर लेते आए। फिर दोनों ही एक दूसरे पर निर्णय कहीं और होने के आरोप भी मड़ते आ रहे। मतलब, सत्ता किसी और के हाथ में होने की बात!
-दिल्ली डेस्क

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