अजमेर दंगे की सच्चाई जानने के लिए प्रतिनिधि भेजा तो नेहरु से नाराज हो गए थे पटेल, नेहरू ने कहा : फिर तो मुझे पद ही छोड़ देना चाहिए

नेहरू ने लिखा : मेरी आजादी पर रोक क्यों? मुझे भी आदेश देने का अधिकार होना चाहिए

अजमेर दंगे की सच्चाई जानने के लिए प्रतिनिधि भेजा तो नेहरु से नाराज हो गए थे पटेल, नेहरू ने कहा : फिर तो मुझे पद ही छोड़ देना चाहिए

आजादी मिली लेकिन संविधान लागू नहीं हुआ तो न संवैधानिक अधिकार तय हुए और न पदों की मर्यादाएं। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ जो 9 दिसंबर 1946 को बनना शुरू हुआ था। इस बीच कई बार नेहरू और पटेल के बीच भी संवैधानिक अधिकारों को लेकर टकराव हुए। 26 जनवरी के दिन यह जानना दिलचस्प है कि नेहरू-पटेल के बीच सबसे बड़ा टकराव अजमेर को लेकर हुआ।

विशाल वर्मा। क्या आप जानते हैं कि आजादी मिलने और गणतंत्र बनने के दिनों के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल के बीच एक बड़ा विवाद गहरा गया था। मामला था अजमेर में सांप्रदायिक दंगे का। 1947 के 5 दिसंबर को अजमेर के दरगाह बाजार में ग्रामोफोन की बिक्री को लेकर एक सिंधी और एक मुसलमान लड़के के बीच मामूली विवाद ने दंगे का रूप ले लिया और 41 लोग घायल हो गए। कर्फ्यू लगा। हटा तो और फिर से दंगा भड़का। हत्याएं हुईं। फिर से कर्फ्यू लगा। 8 दिसंबर को घटना फिर दुहराई गई। 

जैसा कि पुस्तक ‘सरदार पटेल के ऐतिहासिक पत्र’ (संपादक : डॉ. रणजीत साहा) में लिखा है यह विवाद तब और बढ़ गया जब 13 दिसंबर को कब्रिस्तान में एक सिपाही की लाश मिली। यह मुस्लिम इलाके में तैनात एक हिन्दू सिपाही था। अगले दिन शव का अंतिम संस्कार होना था। हिंदुओं ने शव को आम रास्ते के बजाय दरगाह वाले रास्ते से ले जाने की जिद की। कमिश्नर ने इजाजत नहीं दी। उस दिन अगर इजाजत दे दी जाती तो दरगाह शायद ही बचती। वह दरगाह जिस पर रोजाना हजारों हिन्दू मुसलमान मन्नत मांगने जाते हैं। जुलूस को यहाँ से नहीं निकलने देने के लिए प्रसिद्ध पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी ने भी उस वक्त पुलिस सुपरिन्टेंडेंट सुघड़ सिंह और चीफ कमिश्नर से जुलूस को दरगाह के आगे से नहीं गुजरने देने की सलाह दी थी। 

और ऐसे मामला नेहरू और पटेल के बीच विवाद की वजह बना
अजमेर पर दंगाइयों की गिरफ्त बढ़ती गई। हमले और लूटमार में कोई पीछे नहीं रहा। ऐसे में प्रधानमंत्री नेहरू ने घटना की जांच के लिए विशेष गुप्तचर एच.वी.आर. आयंगर को अजमेर भेजा। गृहमंत्री पटेल थे और वे खफा हो गए कि उनके मंत्रालय से बातचीत के बगैर प्रधानमंत्री ने ये फैसला क्यों ले लिया। अजमेर चीफ कमिश्नर शंकर प्रसाद ने 22 दिसंबर 1947 को पटेल के सचिव वी शंकर को अपनी नाराजगी वाला पत्र लिखा। इसी बीच नेहरू और पटेल के बीच पत्रों का सिलसिला शुरू हो गया। नेहरू ने 23 दिसंबर 1947 को पटेल को पत्र लिखा, ‘अजमेर में जो कुछ होता है उसका प्रभाव (अच्छे या बुरे के लिए) हमारी नीति पर पड़ सकता है। यही कारण था कि मैंने वहां जाने का निर्णय लिया- स्थानीय से ज्यादा राष्ट्रीय दृष्टिकोण से।’ नेहरू भतीजे की मौत के कारण अजमेर नहीं जा सके। इसलिए उन्होंने आयंगर को भेजा। नेहरू ने फिर लिखा, अगर मैंने एक अधिकारी को अजमेर भेज दिया तो इससे कमिश्नर की इज्जत कैसे कम हो गई!

और पंडित नेहरू ने पटेल को यह तक लिख डाला
‘क्या ऐसे मामलों में भी मुझ पर पाबंदी है, जिन्हें मैं जरूरी समझूं। जैसे निरीक्षण या कहीं जाना या इस प्रकार के विषय? यदि हां, तो ये मेरे या कहीं भी, किसी भी प्रधानमंत्री के लिए एक असंभव परिस्थिति है। क्या मैं अपने निजी प्रतिनिधि को किसी पूछताछ के लिए या संदेश पहुंचाने के लिए कहीं भेज नहीं सकता?’

और पटेल ने दिया ये जवाब
24 दिसंबर 1947 को पटेल ने नेहरू को लिखा : ‘मुझे आपके आदेश देने की स्वतंत्रता को कम करने की कोई इच्छा नहीं। आपको परेशान या शर्मिंदा करने का भी मेरा कोई इरादा नहीं, परंतु जब यह बात साफ है कि हम दोनों के बीच हमारी अपनी जिम्मेदारी, नेतृत्व और कार्य के क्षेत्रों के बुनियादी सवाल को लेकर ही इतना मतभेद है तो देश के हित में यही उचित होगा कि हम एक साथ काम न करें।’

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