हर व्यक्ति पर है शक तो आप भी हो सकते हैं स्किजोफ्रेनिया के शिकार

बीमारी हर 300 में से एक व्यक्ति को हो सकती है

हर व्यक्ति पर है शक तो आप भी हो  सकते हैं स्किजोफ्रेनिया के शिकार

ज्यादातर मामलों में ये बीमारी 16 से 30 वर्ष की उम्र में ही हो जाती है और धीरे-धीरे पीड़ित हर बात और हर व्यक्ति पर शक करने लगता है। 

ब्यूरो/नवज्योति, जयपुर। अगर कोई व्यक्ति बिना किसी वजह हर बात या व्यक्ति पर शक करता है और अपनी दुनिया में खोया रहता है। वह ऐसी चीजे देख या सुन सकता है, जो वास्तव में होती ही नहीं हैं। उसे हमेशा यही लगता है कि कोई उसके खिलाफ  साजिश कर रहा है या उसे नुकसान पहुंचाना चाहता है, तो सावधान हो जाएं, यह स्किजोफ्रेनिया बीमारी के लक्षण हैं, जोकि एक मनोरोग है। यह बीमारी हर 300 में से एक व्यक्ति को हो सकती है। शहर की वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. अदिति अग्रवाल ने बताया कि स्किजोफ्रेनिया के इलाज में सिर्फ  दवाइयां ही नहीं बल्कि आस पास के लोगों की मदद भी बहुत जरूरी है। हालांकि जागरूकता के अभाव में घर के सदस्य भी इसे बीमारी न मानकर झाड़फूंक कराने लगते हैं। इससे रोगी की हालत और खराब हो जाती है। ज्यादातर मामलों में ये बीमारी 16 से 30 वर्ष की उम्र में ही हो जाती है और धीरे-धीरे पीड़ित हर बात और हर व्यक्ति पर शक करने लगता है। 

समय पर पहचान और अपनों का प्यार है इलाज
डॉ. अदिति ने बताया कि इस बीमारी की समय पर पहचान होने पर दवाओं व व्यावहारिक थैरेपी से नियंत्रित किया जा सकता है। नशे के सेवन को बंद कर व तनाव से दूर रहकर भी इसमें बहुत राहत पाई जा सकती है। इसका कोई सटीक मेडिकल टेस्ट नहीं है। इसलिए चिकित्सक रोगी की केस हिस्ट्री, मानसिक स्थिति और लक्षणों के आधार पर इलाज करते हैं। परिवार का सहयोग इस बीमारी को नियंत्रित करने में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मरीज के परिजन, दोस्त उसे भावनात्मक रूप से सहयोग करें। मरीज पर भरोसा करते हुए उसे धीरे धीरे आत्मनिर्भर बनाना चाहिए जिससे वह खुद अपनी सोच पर नियंत्रण पा सके। उसके साथ बहस न करें, उसका ध्यान मनोरंजक गतिविधियों में बंटाएं। इस तरह के आपसी सहयोग से इस बीमारी का इलाज काफी आसान हो जाता है।

ऐसे होते हैं लक्षण
-दूसरों पर शक करना
-काल्पनिक बातें सुनाई देना और दृश्य दिखाई देना।
-ऐसी बातें करना जिनके बारे में कोई समझ न हो।
-डरे हुए या अकेले में रहना पसंद करना।
-ऐसा लगना जैसे दूसरे लोग उनके विचारों को किरणों के माध्यम से जान पा रहे हैं।
-थोड़ी-थोड़ी देर में मूड बदलना।
-हिंसक व्यवहार।
-अवसाद के लक्षण दिखना।
-शरीरिक सक्रियता प्रभावित होना और सुस्त रहना।
-भ्रम की स्थिति में रहना और अजीब चीजें महसूस करना जबकि इसमें कुछ भी सच नहीं होता।
-हालात के हिसाब से भावनाओं, मनोदशा और अपनी भूमिका को न समझ पाना।

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