बूढ़ी नहरें कैसे पहुंचाएंगी टेल तक पानी

शहरी क्षेत्र में नहरों पर हो रहा अतिक्रमण, कई जगह से हो चुकी क्षतिग्रस्त

बूढ़ी नहरें कैसे पहुंचाएंगी टेल तक पानी

चंबल के जर्जर नहरी तंत्र के कारण हर साल आठ सौ क्यूसेक पानी बर्बाद हो जाता है।

कोटा। कोटा की लाइफ लाइन चंबल नदी पर बने कोटा बैराज के नीचे दार्इं और बाई मुख्य नहरों से हाड़ौती संभाग के कोटा, बारां, बूंदी जिले के अलावा मध्यप्रदेश के ग्वालियर संभाग में  नहरी तंत्र से सिंचाई होती है। लेकिन पिछले दो साल से कोरोना संक्रमण के चलते जर्जर होते नहरी तंत्र की मरम्मत नहीं होने से इस बार कई जगह से नहरों की दीवारें टूट गई।  सालाना 3000 करोड़ का कृषि उत्पादन देने वाला नहरी तंत्र बदहाली और दुर्दशा का शिकार है। कोटा, बूंदी, बारां जिलों के अलग-अलग क्षेत्र में नहर के हालात काफी विकट है। पिछले दो साल तक कोरोना संक्रमण और अतिवृष्टि के कारण सीएडी विभाग की ओर से नहरी तंत्रों का मरम्मत कार्य नहीं हो पाया था। 2021 में खरीफ की फसलों को बचाने के लिए नहरों को बारिश के सीजन में चलाना पड़ा जिससे नहरें सूखी नहीं जिससे मरम्मत नहीं हो पाई थी। पिछले साल भी मानसून के देरी तक सक्रिय होने अप्रैल तक नहरे चलने के कारण इस बार भी दार्इं व बार्इं नहरों की मरम्मत कार्य नहीं हो सका। वर्तमान में नरेगा के तहत मिट्टी हटाने और झाड़ियों की कटाई के कार्य ही हो  रहे वह भी आधे अधुरे।  आधी अधूरी मरम्मत और सफाई कई माइनर में झाड़िया और कचरे का ढ़ेर लगा हुआ है। 

हर साल होती है 800 क्यूसैक पानी की बर्बादी
चंबल के जर्जर नहरी तंत्र के कारण हर साल आठ सौ क्यूसेक पानी बर्बाद हो जाता है। यदि इस पानी का सिंचाई के लिए उपयोग किया जाए तो करीब 55 हजार हैक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकती है। केन्द्रीय जल आयोग के निर्देश पर मध्यप्रदेश और राजस्थान के जल संसाधन विभाग ने चम्बल की नहरों के सर्वे में माना है कि क्षतिग्रस्त नहरों के कारण 800 क्यूसेक पानी व्यर्थ बह जाता है। इस पानी को बचा लिया जाए तो करीब 55 हजार हैक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकती है। इससे 500 करोड़ का सालाना कृषि उत्पादन बढ़ सकता है। कोटा, बूंदी और बारां जिले के करीब 50 हजार किसानों के खेत नहरों से सिंचित होते हैं।  किसान नहरों की जर्जर स्थिति से लेकर कई बार उग्र आंदोलन भी कर चुके हैं। उसके बावजूद स्थिति जस की तस ही बनी हुई है। 

1111 किमी क्षेत्र में फैली बाईं नहर
बाईं नहर नहर की कुल क्षमता 1500 क्यूसेक की है।  बाईं नहर 1111 किमी क्षेत्रफल में फैली हुई है।  नहर से 1 लाख 20 हजार हैक्टेयर में सिंचाई होती। दोनों नहरों से हाड़ौती संभाग के 15 उपखंड  सिंचित होते। अक्टूबर माह में नहरों में जल प्रवाह किया जाता है। विभाग के अधिकारियों के अनुसार जल प्रवाह से पूर्व सफाई कराई जाएगी। जिसमें किसान  गेहूं, सरसों, चना, धनिया की बुवाई करेंगे । बायीं नहर से बूंदी, तालेड़ा, केशवरायपाटन क्षेत्र के गांवों में सिंचाई होती है।  इस नहर में 3 ब्रांच हैं और 27 सब ब्रांच हैं। इसके अलावा 180 माइनर हैं। चंबल परियोजना से प्रदेश के 757 गांवों की 2 लाख 29 हजार हैक्टेयर कृषि भूमि हर साल सिंचित होती है। 

बिना सफाई हर साल शुरू कर देते जल प्रवाह
जल वितरण समिति अध्यक्ष अब्दुल हमीद गौड ने बताया कि सीएडी विभाग हर साल नहरों की मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति ही करता है जिससे किसानों को टेल तक पानी नहीं मिल पाता है। नरेगा के तहत जो सफाई कार्य होता वह महज खानापूर्ति का होता है।  शहर क्षेत्र में जगह जगह नहरे टूटी पड़ी है। कई स्थानों पर कचरे से अटी पड़ी है।लोगों ने नहरो पर अतिक्रमण कर बोर्ड लगा लिए है।  किशनपुरा सब ब्रांच 25 किमी तक तक फैली है। सीएडी विभाग ने नहर की सफाई के नाम पर खानापूर्ति करता है। नहर में जगह -जगह झाडियां ओर कचरा पड़ा हुआ है। ऐसे में अंतिम छोर तक पानी पहुंचने में परेशानी आएगी।

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मरम्मत नहीं होने से 30 प्रतिशत भूमि सिंचाई से रहती है वंचित
किसान नेता अब्दूल हामिद गौड़ ने बताया कि चंबल नदी सिंचाई के लिए एक वरदान साबित होती है, सरकार व अधिकारियों की अनदेखी के कारण चंबल नदी से निकलने वाली नहरें दिनों दिन जर्जर होती जा रही है ।  सफाई व मरम्मत के नाम पर सालाना करोड़ों रुपए का खर्च किए जाते हैं फिर भी टेल क्षेत्र की 30% भूमि सिंचाई से वंचित रह जाती है। जिसके कारण किसानों को करोड़ों रुपए का नुकसान होता है टेल क्षेत्र की अधिकतर नहरों की बरसों से सफाई ना होने के कारण अपना अस्तित्व खोती जा रही है। कई जगह तो नहरों का नाम और निशान मिट गया है।

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नहरों पर कर लिया अतिक्रमण , कैसे पहुंचेगा टेल तक पानी
किसान राम किशन ने बताया कि रोटेरा माइनर पर लोगों ने जगह जगह अतिक्रमण लिए जिससे टेल तक पानी नहीं  पहुंचता है।  नहरों के चालू होते ही लोग जगह जगह जल प्रवाह के दौरान पत्थर डालकर पानी अवरूद्ध कर पानी का अवैध दोहन करते है। उसके बावजूद विभाग कार्रवाई नहीं करता है।  सीएडी विभाग की ओर से नहरों का प्रबंधन सही नहीं किया जा रहा है। सब ब्रांच और माइनरों पर अतिक्रमियों ने पुलिया बना दी तो किसने नहर को संकरा कर अतिक्रमण कर लिया ऐसे अंतिम छोर तक पानी पहुंचने के लिए हर साल आंदोलन करते पड़ते हैं उसके बावजूद सीएडी विभाग नहरी तंत्र को ठीक नहीं करता है। 

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इनका कहना है
नहरों के मरम्मत कार्य जारी है। सफाई कार्य मानसून के बाद अक्टूबर में नहरे शुरू होने से पूर्व कराया जाएगा।
-महावीर प्रसाद सामरिया, अधीक्षण  अभियंता सीएडी विभाग कोटा 

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