Bright Spot Report 2023: RTE से अब तक 60 लाख बच्चों को लाभ
भारत में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई अधिनियम) के क्रियान्वयन से अब तक 60 लाख बच्चों को लाभ होने का पता चला है।
नई दिल्ली। कमजोर नागरिकों तक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचे, यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध एक प्रमुख गैर-लाभकारी संगठन इंडस एक्शन ने अपनी वार्षिक ब्राइट स्पॉट रिपोर्ट (बीएसआर) 2023 जारी की है, जिसमें भारत में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई अधिनियम) के क्रियान्वयन से अब तक 60 लाख बच्चों को लाभ होने का पता चला है।
2009 में लागू आरटीई अधिनियम के अंतर्गत निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) और वंचित समुदायों के बच्चों के लिए आरक्षित करने का आदेश दिया गया है। आरटीई अधिनियम सभी के लिए शिक्षा अभियान और सस्टेनेबल डेवलपमेंट लक्ष्यों जैसे वैश्विक अभियानों के अनुरूप सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।
बीएसआर राज्यों में आरटीई धारा 12(1)(सी) को लागू करने में ब्राइट स्पॉट्स और चुनौतियों की पहचान करती है। मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और दिल्ली जैसे राज्यों में निजी स्कूलों की उच्च भागीदारी है, जबकि बिहार में 100 प्रतिशत निजी स्कूलों की भागीदारी है। हालाँकि, देश में प्रतिपूर्ति प्रक्रियाएँ एक समस्या बनी हुई हैं। रिपोर्ट में सामने आया कि किसी भी राज्य ने अपनी प्रतिपूर्ति प्रक्रिया को सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) से नहीं जोड़ा है, जिससे वित्तीय प्रक्रियाएं बेअसर हो रही हैं।
रिपोर्ट में इस प्रावधान का लाभ पाने वाले बच्चों की संख्या में मामूली गिरावट सामने आई है, जिसके बढ़ने का कारण संभवत: महामारी के दौरान कम बजट वाले स्कूलों का बंद होना है। एक दशक पहले क़ानून बन जाने के बाद भी फरवरी 2023 तक केवल 18 राज्यों द्वारा ही आरटीई 12(1)(सी) लागू किया गया है। इस क़ानून को लागू ना करने वाले राज्यों को उच्चतम न्यायालय ने नोटिस जारी करके इसका क्रियान्वयन करने का आग्रह किया है। इसके प्रभावी क्रियान्वयन में पारदर्शिता और ऑनलाइन सिस्टम के महत्व पर जोर दिया जाना चाहिए। ऑनलाइन सबमिशन और निगरानी प्रक्रियाओं का उपयोग करने वाले राज्यों में केंद्र सरकार से प्रतिपूर्ति अनुमोदन की दर •ा्यादा है। 17 राज्यों ने प्रति बच्चा लागत निर्धारित की है, जो चंडीगढ़ में सर्वाधिक 28,176 रुपये और मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में सबसे कम 5,500 और 5,400 रुपये है।
रिपोर्ट में अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में भी प्रवेश लिए गए विद्यार्थियों की संख्या, निजी स्कूलों में सीटों की संख्या और प्रतिपूर्ति-संबंधी विवरणों पर 12(1)(सी) के क्रियान्वयन के सार्वजनिक डेटा की कमी उजागर हुई है। आरटीई धारा 12(1)(सी) द्वारा एक महत्वपूर्ण शैक्षिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी होने की क्षमता के बावजूद आरक्षित सीटों का एक बड़ा हिस्सा अभी भी भरा जाना बाकी है।
इंडस एक्शन के सीईओ, तरुण चेरुकुरी ने कहा कि आरटीई अधिनियम का क्रियान्वयन राज्य स्तर पर बदलता है, जिससे विभिन्न राज्यों में धारा 12(1)(सी) के अंतर्गत प्रवेश की अनिवार्यताएं प्रभावित होती हैं। इन अंतरों में आयु सीमा, आय के मानदंड, दस्तावेजों की जरूरत, और आवेदन प्रक्रियाएँ शामिल हैं। सफल होने वाली विधियों को पहचानना आवश्यक होता है, ताकि शिक्षा अधिकारी संदर्भ के अनुरूप प्रभावी रणनीतियां सीखने, उन्हें अनुकूलित करने और लागू करने में समर्थ बनें। बीएसआर के डेटा से विश्वास के साथ नीतिगत निर्णय लेने, जैसे शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने, प्रति-बच्चा-लागत की गणना करने या ईडब्ल्यूएस मानदंड को संशोधित करने में मदद मिलती है। राज्य सर्वोत्तम विधियाँ अपनाकर आरटीई 12(1)(सी) के क्रियान्वयन का विस्तार कर सकते हैं, शिक्षा की पहुँच बढ़ा सकते हैं और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम कर सकते हैं। अभी तक इससे 60 लाख विद्यार्थी लाभ प्राप्त कर चुके हैं, और 2030 से पहले 60 लाख नए प्रवेश की संभावना है।
इस संगठन ने, विभिन्न राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में, आरटीई अधिनियम के अंतर्गत 608,612 प्रवेश करवाए हैं, और 172,446 माताओं को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत मातृत्व लाभ उपलब्ध कराए हैं, तथा 2013 से 121,996 श्रमिकों को राज्य-विशिष्ट श्रम कल्याण प्रावधानों के अंतर्गत मिलने वाले लाभ प्राप्त करने में सहयोग दिया है।
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