गहलोत के गढ़ में भाजपा को बढ़त, डोटासरा-पायलट के गढ़ में कांग्रेस को मजबूती
नेताओं के क्षेत्र में भी चुनाव रोचक रहे
गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत को जालोर-सिरोही सीट से कई सभाओं और रोडशो के बावजूद चुनाव नहीं जिता पाए।
जयपुर। राजस्थान लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं के क्षेत्र में उनकी राजनीतिक परीक्षा भी हुई। राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में पूर्व सीएम अशोक गहलोत, पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा, कांग्रेस महाससचिव सचिन पायलट, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री भंवर जितेन्द्र सिंह, पूर्व मंत्री हरीश चौधरी जैसे नेताओं के क्षेत्र में भी चुनाव रोचक रहे।
अशोक गहलोत : गहलोत के गृह जिले जोधपुर में भाजपा ने चुनाव जीता। उनकी सरदारपुरा विधानसभा सीट से भी भाजपा प्रत्याशी गजेन्द्र शेखावत ने लीड हासिल की। गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत को जालोर-सिरोही सीट से कई सभाओं और रोडशो के बावजूद चुनाव नहीं जिता पाए। गहलोत के पैरवी वाले टिकटों में पाली से संगीता बेनीवाल, उदयपुर से ताराचंद मीणा,गोविन्दराम मेघवाल बीकानेर, उदयलाल आंजना चित्तौडगढ़, प्रताप सिंह खाचरियावास जयपुर शहर, उर्मिला जैन भाया बारां-झालावाड, दामोदर गुर्जर राजसमंद चुनाव हार गए। हालांकि नागौर सीट पर गठबंधन प्रत्याशी हनुमान बेनीवाल चुनाव जीत गए।
गोविन्द सिंह डोटासरा : डोटासरा ने शेखावाटी सीटों में चूरू में राहुल कस्वां को कांग्रेस में शामिल कर टिकट दिलवाया और सफलता हासिल की। सीकर पर अपनी रिस्क पर कॉमरेड अमराराम को टिकट दिलवाकर जीत हासिल कर पाए। बाडमेर में उम्मेदाराम बेनीवाल को आरएलपी से कांग्रेस में शामिल कराकर चुनाव लड़वाया और जीत हासिल की। हालांकि अजमेर में रामचन्द्र चौधरी की पैरवी भी डोटासरा ने की थी, लेकिन वहां हार मिली।
डॉ.सीपी जोशी: मेवाड़ क्षेत्र में खुद की भीलवाड़ा सीट भी नहीं जीत पाए। अन्य सीटों में राजसमंद, चित्तौडगढ़, उदयपुर में भी उनका प्रभाव नजर नहीं आया।
भंवर जितेन्द्र सिंह: अलवर लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी ललित यादव भले ही पायलट समर्थक थे, लेकिन भंवर जितेन्द्र सिंह का प्रभाव लोकसभा चुनाव में काम नहीं आया।
हरीश चौधरी: बाड़मेर सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार उम्मेदाराम बेनीवाल को जीत मिली। जोधपुर संभाग के अन्य जिलों में बीकानेर में भी कांग्रेस हारी, लेकिन बीकानेर में गहलोत समर्थक और जोधपुर में पायलट समर्थक प्रत्याशी को हार मिली।
बांसवाड़ा सीट पर कांग्रेस का गठबंधन प्रयोग सफल
आदिवासी अंचल में मजबूत पैर जमा चुकी भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) ने डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट पर सफलता हासिल की कांग्रेस से एनवक्त पर गठबंधन करने वाले बीएपी प्रत्याशी राजकुमार रोत के चुनावी प्रक्रिया के दौरान कॉन्फिडेंस ने दोनों पार्टियों को अपनी उभरती राजनीति से परिचय करा दिया। यहां कांग्रेस से भाजपा में आकर चुनाव लड़ने वाले महेन्द्रजीत मालविया भी आदिवासी नेता हैं, लेकिन वे भी बीएपी के प्रभाव में चुनाव हार गए। मालविया ने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस और विधायकी छोड़ी, लेकिन 32 साल के युवा आदिवासी नेता के आगे नहीं टिक पाए। जानकारों के अनुसार कांग्रेस के एक खेमे का भी मालविया को समर्थन था। गठबंधन के बावजूद कांग्रेस के उम्मीदवार पर्चा वापस लेने से पहले गायब हो गया था, फिर भी रोत के आदिवासी वोटों में सेंध नहीं लग सकी। बीएपी की सटीक रणनीति के आगे भाजपा का दाव नहीं चला और आदिवासी इलाके में आदिवासी अस्मिता के मुद्दे पर भाजपा मात खा गई। आदिवासी मुद्दों को समझने में भाजपा रणनीतिकार फेल साबित हुए।
मोदी अपना नाम पीएम पद की दावेदारी से हटाएं: गहलोत
लोकसभा चुनाव परिणामों पर पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने पीएम मोदी को नसीहत दी है कि उन्हें अब अपना नाम पीएम पद की दावेदारी से हटा लेना चाहिए। गहलोत ने ट्वीट कर कहा कि 2024 का लोकसभा चुनाव पीएम नरेन्द्र मोदी ने पूरी तरह अपने ऊपर केन्द्रित किया। प्रचार में मोदी की गारंटी, फिर से मोदी सरकार जैसे जुमले भाजपा शब्द से ज्यादा सुनाई और दिखाई दिए। चुनाव में मंहगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे गौण हो गए और केवल मोदी-मोदी ही सुनाई देने लगा। पीएम ने संसद में अपने नेतृत्व में भाजपा के 370 और एनडीए के 400 सीटें पार करने का दावा किया था। ऐसे में मोदी को अपना नाम अब पीएम पद की दावेदारी से हटा लेना चाहिए।
मोदी की तानाशाही पर लोकतंत्र की जीत: टीकाराम जूली
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने परिणामों को मोदी की तानाशाही पर लोकतंत्र की जीत बताया। जूली ने कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को विजयी बनाने पर जनता और कार्यकर्ताओं का आभार जताया। जूली ने कहा कि अब की बार 400 पार और मोदी की गारंटी का नारा फेल हो गया। देश में झूठ बेचने निकले मोदी के संविधान बदलने के मंसूबों पर जनता ने पानी फेर दिया। मोदी ने लोकतांत्रिक चुनी हुई सरकारों को तानाशाही और धनबल से गिराकर लोकतंत्र का अपमान किया। संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग किया। चुनाव के दौरान कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को मिल रहे जनसमर्थन से घबराकर वे झूठ का सहारा लेकर अनर्गल प्रलाप कर रहे थे।
पायलट इफेक्ट : राजस्थान में हुई पायलट समर्थकों की बड़ी जीत
लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखने के बाद यह साफ हो गया है कि राजस्थान में कांग्रेस ने बड़ी वापसी की है। कांग्रस महासचिव सचिन पायलट का लगातार प्रचार में जुटे रहना भी कांग्रेस के लिए रंग लाया है। गठबंधन सीटों को छोड़कर अधिकांश जीते प्रत्याशियों में पायलट समर्थकों की संख्या ज्यादा है। हालांकि पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा के समर्थक भी जीते हैं, लेकिन यह संख्या काफी कम है। पायलट के समर्थकों में दौसा से मुरारीलाल मीणा, टोंक-सवाईमाधोपुर से हरीश मीणा, करौली-धौलपुर से भजनलाल जाटव, भरतपुर से संजना जाटव, झुंझुनू से बृजेन्द्र ओला और गंगानगर से कुलदीप इंदौरा ने शानदार जीत दर्ज की है। इनके अलावा जयपुर ग्रामीण से अनिल चौपड़ा और अलवर सीट से ललित यादव भी कड़ी टक्कर में रहे हैं। गठबंधन सीटों में पायलट ने सीकर से इंडिया गठबंधन प्रत्याशी कॉमरेड अमराराम के लिए भी प्रचार किया था। पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा की पैरवी वाले टिकटों में चूरू से राहुल कस्वां और बाडमेर सीट से उम्मेदाराम बेनीवाल ने भी जीत दर्ज की है। कांग्रेस की गठबंधन में जीती अन्य सीटों में नागौर से प्रत्याशी आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल की पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने पैरवी की थी और डूंगरपुर-बांसवाडा सीट पर बीएपी प्रत्याशी राजकुमार रोत से गठबंधन कांग्रेस आलाकमान के हस्तक्षेप से तय हुआ था।
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