जर्जर नहरों से कैसे होगा हरित क्रांति का संचार ?
14 गांवों की 2860 हजार हैक्टेयर कृषि भूमि को पानी का इंतजार
नहर से निकलने वाली मुख्य दोनों नहरे अभी भी पूर्णतया क्षतिग्रस्त है । जिससे समय पर उच्च अधिकारियों तथा संवेदक द्वारा परीक्षण नहीं करने के कारण रबी की फसलों को समय पर पानी का लाभ नहीं मिलेगा।
सुनेल। सुनेल क्षेत्र में रोशनबाड़ी लघु सिंचाई परियोजना के नाम से रिछड़ नदी पर बने ओवरफ्लो डैम का कार्य पिछले वर्ष पूर्ण हो चुका था, लेकिन पर्याप्त बारिश नही होने के कारण बांध में मात्र 1 से 2 फीट पानी ही भर कर रह गया था। इस वर्ष लगातार बारिश होने के कारण बांध ओवरफ्लो हो गया है , लेकिन बांध से छोड़े जाने वाले पानी को लेकर किसान चिंतित है क्योंकि नहर से निकलने वाली मुख्य दोनों नहरे अभी भी पूर्णतया क्षतिग्रस्त है । जिससे समय पर उच्च अधिकारियों तथा संवेदक द्वारा परीक्षण नहीं करने के कारण रबी की फसलों को समय पर पानी का लाभ नहीं मिलेगा। किसान बालचंद धाकड़ ,निर्मल धाकड़, रजनीश मंडलोई, मनोहरसिह, दिनेश मंडलोई, आदि किसानों ने बताया कि 24 जनवरी 2017 को तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा बांध के नींव का शिलान्यास किया गया था । 7 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद आखिर कार इस वर्ष लगातार बारिश के कारण बांध ओवरफ्लो होकर बहने लगा है। जिससे लंबे इंतजार के बाद किसानों के चेहरे पर खुशी छाई थी । वहीं अब रबी की फसलों के लिए खेतों में नहर व फुव्वारा पद्धति से 14 गांवों की 2860 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध होना था, लेकिन क्षतिग्रस्त नहरों के कारण क्षेत्र में हरित क्रांति का संचार कैसे होगा।
7 साल पहले शुरू हुआ था बांध का निर्माण कार्य
दरअसल, सुनेल क्षेत्र से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लघु सिंचाई परियोजना रोशनबाड़ी बांध का निर्माण कार्य 9272 लाख रुपए की लागत से 24 जनवरी 2017 को तत्कालीन सरकार के द्वारा उद्घाटन किया गया था । इस बांध से सुनेल क्षेत्र के गांव फाऊखेड़ी, राजपुरा, सुनेल, घाटाखेड़ी, रोशनबाड़ी, अकोदिया, चछलाई ,चंद्रपुरा, कांदलखेड़ी, कालियाखेड़ी, लालगांव ,भटखेड़ा ,मालपुरा, छीतरखेड़ा, उन्हेल, केसरपुरा ,सेमला, कादरनगर सहित अन्य गांवों को सिंचाई का नहरों तथा फव्वारा पद्धति से रबी की फसलों के लिए पानी पहुंचाने का कार्य होना था।
बांध से मुख्य रूप से निकाली थी दो नहरें
रोशनबाड़ी बांध से मुख्य रूप से दो नहरे क्षेत्र में सिंचाई के लिए निकाली गई । जिनकी लागत 17 करोड़ 26 लाख की स्वीकृति 24 दिसंबर 2017 को हुई । जिसमें दाई मुख्य नहर 6.50 किमी और बाई मुख्य नहर 7.14 किमी का निर्माण हो चुका है। यह बांध पूरी तरह से स्प्रिंकलर सिस्टम पर आधारित है। स्प्रिंकलर सिस्टम के माध्यम से सिंचाई होने से इसमें रकबा बढ़ाया गया है। साथ ही इसके आसपास के क्षेत्रों में 90 एमएम से 180 एमएम के पाइप लाइन बिछा दी गई है । जिसमें किसानों के खेतों में पॉइंट दिए हुए हैं। फंव्वारा सिस्टम तथा मिनी स्पीक्लर के माध्यम से किसानों को अपनी फसलों को सिंचित करने की पूर्ण आजादी होगी। रबी की फसलों को अक्टूबर-नवंबर के महीने में बोया जाता है और अप्रैल-जून के महीने में काटा जाता है, लेकिन अभी तक नहरीकरण पद्धति को सुधारा ही नहीं गया और जिसके चलते हैं संवेदक की कार्य शैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं वहीं क्षतिग्रस्त नहरो में पानी छोड़े जाना असंभव है ।
बांध के दोनों और विभाग के द्वारा नहरे निकली गई है ,जिसमें प्रत्येक 1 किलोमीटर की दूरी पर विभाग के द्वारा पानी की पंपिंग के लिए डिग्गियां बनाई गई है। जिसमें पंपिंग करने के लिए पंप सेट तो लगा दिए गए हैं लेकिन अभी बिजली के कनेक्शन बकाया है ।
- निर्मल धाकड़, किसान
वहीं नहरो में बारिश के कारण मिट्टी भर गई तो कहीं झाड़ झाड़ियां उग आई। वही घटिया निर्माण के कारण नहरे 8 से 10 जगह टूट गई जिनका प्रशासन के अधिकारियों को अवगत कराने के बावजूद भी संवेदक के खिलाफ कोई सकारात्मक कार्रवाई नहीं हो पाई नाही क्षतिग्रस्त नहरो को सुधार गया । जिसके चलते नहरे घटिया निर्माण की भेंट चढ गई । वहीं किसानों के सामने असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि इस वर्ष भी पानी मिलेगा या नहीं मिलेगा।
- प्रहलाद गुर्जर, किसान
संवेदक को क्षतिग्रस्त नहरों को दुरुस्त करने के लिए बोला गया है, वही नहरों में जल्द से जल्द पानी छोड़कर उनकी टेस्टिंग की जाएगी । वही फव्वारा पद्धति के लिए पंप सेट तथि बिजली कनेक्शन करवा दिए गए हैं जिसके चलते किसानों को सिंचाई के लिए जल्द से जल्द पानी उपलब्ध हो सके।
- रामअवतार मीणा, सहायक अभियंता, ,लघुसिंचाई परियोजना, भवानीमंडी ।
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