हाड़ौती के किसानों को रास आ रही बीबीएफ पद्धति

अतिवृष्टि से तबाह हुई फसलें तो बदल रहे तकनीक: कृषि विशेषज्ञ बोले-वरदान साबित होगी बीबीएफ, पैदावार भी होगी ज्यादा

हाड़ौती के किसानों को रास आ रही बीबीएफ पद्धति

दैनिक नवज्योति ने जब ऐसे किसानों से बातचीत की तो यह निकलकर सामने आया कि बीबीएफ तकनीक से खेती करना हाड़ौती के किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है।

कोटा। हाड़ौती में विगत पांच-छह सालों में मानसून के सीजन में लगातार अतिवृष्टि हो रही है। जिससे खेतों में पानी भर जाता है और किसानों की फसलें तबाह हो जाती है। कई महिनों की मेहनत पर पानी फिर जाता है। ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए हाड़ौती की हजारों किसानों ने खेती में बदलाव करना शुरू कर दिया है। परंपरागत खेती करने के बजाए बीबीएफ (ब्रॉडबेड-एंड-फरो) पद्धति से खेती अपना रहे है। इस तकनीक को अपनाने से फसल का उत्पादन 15 से 20 फीसदी तक अधिक होता है। वर्तमान में हाड़ौती में 2000 से अधिक किसान ऐसे है बीबीएफ से खेती को कर रहे है। संभाग में सबसे अधिक झालावाड़ में एक हजार किसान इस पद्धति से खेती कर रहे है। दैनिक नवज्योति ने जब ऐसे किसानों से बातचीत की तो यह निकलकर सामने आया कि बीबीएफ तकनीक से खेती करना हाड़ौती के किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है। इससे न केवल भारी बरसात से फसल खराब नहीं हो रही और पैदावार अधिक हो रही है। इधर, कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग के विशेषज्ञ भी हाड़ौती में बीबीएफ पद्धति से खेती करने के लिए किसानों को जागरूक रहे है।  

बीबीएफ फसल को नुकसान से बचाती
झालावाड़ जिले में बकानी के प्रेम पाटीदार का कहना है कि मानूसन का भरोसा नहीं रहता है। झालावाड़ जिला जो कि राजस्थान का चेरापूंजी कहलाता है। इस जिले में सर्वाधिक बरसात होती है। ऐसे में बीबीएफ तकनीक की खेती अपनाने से इनकी फसल को नुकसान नहीं होता बल्कि पैदावार और अच्छी होती है। 

क्या है बीबीएफ पद्धति
ब्रॉडबेड-एंड-फरो (बीबीएफ) प्रणाली में, खेत की सीमाओं के अंदर चौड़ी क्यारियों और नालियों का नेटवर्क बिछाया जाता है. इस प्रणाली में, अपवाह जल को फील्ड फरो में मोड़ दिया जाता है. फील्ड फरो, 30 सेंटीमीटर चौड़े और 30 सेंटीमीटर गहरे होते हैं. इन फील्ड फरो के बीच करीब 170 सेंटीमीटर चौड़ी क्यारियां होती हैं, जिनमें फसलें उगाई जाती हैं।

इन फसलों के लिए फायदेमंद
कृषि विभाग के एक्सपर्ट के अनुसार मूंगफली, सोयाबीन, मूंग और उड़द की फसल के लिए बीबीएफ पद्धति कारगर साबित हो सकती है। इन फसलों के पैदावार के लिए यह तकनीक बहुत फायदेमंद रहेगी। हाड़ौती के काश्तकार भी इन फसलों में यह पद्धति अपना सकते है। मध्यप्रदेश में सबसे अधिक इस तकनीक से खेती की जा रही है। गुजरात में तो सबसे अधिक मुंगफली की पैदावार इसी पद्धति से की जा रही है।

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झालावाड़ में 1000 किसानों ने अपनाई तकनीक
जानकारी के अनुसार हाड़ौती में सबसे अधिक झालावाड़ जिले में बीबीएफ तकनीक अपनाई जा रही है। झालावाड़ के 1000 से अधिक काश्तकार बीबीएफ तकनीक से खेती कर रहे है। क्यों कि वहां की मिट्टी इस पद्धति की खेती के अनुकुल है। कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार पूरे हाड़ौती में 2000 से अधिक काश्तकार बीबीएफ तकनीक को अपना कर खेतीबाड़ी कर रहे है। झालावाड़ जिले के साथ ही कोटा जिले में जुल्मी, चेचट, अलोद, पिपल्दा, सुकेत, नालोदिया, रामगंजमंडी इलाकों में किसान बीबीएफ तकनीक से  खेती कर रहे है। साथ ही कोटा में कृषि अनुसंधान केंद्र उम्मेदगंज में भी बीबीएफ तकनीक की खेती अपनाई जा रही है। कोटा जिले के करीब 400 किसान यह तकनीक अपना कर अच्छी पैदावार कर रहे है।

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कोटा के नंदकिशोर को रिश्तेदार से मिली प्रेरणा
कोटा जिले के जुल्मी क्षेत्र के किसान नंदकिशोर पाटीदार बताते है कि अतिवृष्टि से फसल से बचाने के लिए बीबीएफ तकनीक से खेती करने का आइडिया उसे मध्यप्रदेश से मिला। मध्यप्रदेश में उनके रिश्तेदार रहते है। जो कि बीबीएफ पद्धति से खेती करते है। जब वहां पर किसानों को बीबीएफ पद्धति से खेती करते देखा तो मुझे भी यह तकनीक अपनाने की प्रेरणा मिली। नंद किशोर का कहना है कि पिछले साल अतिवृष्टि से उनकी फसल गल गई थी। इसलिए उन्होंने भी बीबीएफ तकनीक से अपने 6 बीघा खेतों में सोयाबीन की फसल की बुवाई की। सबसे पहले तो यह फायदा हुआ कि भारी बरसात होने पर भी उसकी फसल गलने से बच गई। अब फसल तैयार है। जिसकी पैदावार पहले से भी अधिक होने के आसार है। खेत की ऊंचाई होने से भारी बरसात में भी पानी बहकर निकल जाता है।

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फायदा: खर्च कम, पैदावार ज्यादा 
रामगंजमंडी क्षेत्र में नालोदिया गांव के किसान बजरंगलाल धाकड़ अपने 25 बीघा खेत में बीबीएफ तकनीक से विगत तीन साल से खेतीबाड़ी कर रहे है। इस पद्धति के फायदे के बारे में बताते हुए धाकड़ कहते है कि इस तकनीक से खर्च कम और फसल की पैदावार अधिक होती है। अतिवृष्टि की मार किसानों को नहीं झेलनी पड़ती है। औसत से अधिक बारिश होने पर पानी खेतों में नहीं भरता व बाहर निकल जाता है। जिससे फसल नष्ट नहीं होती। इस पद्धति से खेती में पौधों के बीच डेढ़ से दो फीट की दूरी रहती है। जिससे फसलों को रोग से बचाने के लिए दवा छिड़कने में आसानी रहती है। पौधों के बीच पर्याप्त दूरी होने से खतरनाक और विषैले जीव जंतू होने पर भी पता चल जाता है।

बीबीएफ पद्धति से खेती अतिवृष्टि में कारगर साबित हो रही है। अधिक बरसात होने पर पाल से पानी बाहर निकल जाता है। साथ ही अल्प बरसात में भी फायदेमंद है। कम बरसात में खेती की नाली में पानी भरा रहते है। जिससे जल संग्रहण रहता है। ऐसे में यह पानी खेती में काम आ जाता है। ज्यादा बरसात होने और कम बरसात दोनों ही स्थिति में यह पद्धति फसल को बचाती है। जिससे पैदावार अधिक होती है। इस पद्धति का दूसरा प्रमुख फायदा यह होता है कि सोयाबीन आदि पौधों का फैलाव जगह ज्यादा मिलने से अच्छा होता है। पौधों का फैलाव अधिक होने से पौधे का विकास बढ़िया होता है।  खरपतवार नियंत्रण में भी आसानी होती है। विभाग की ओर से समय-समय पर किसानों को गोष्ठियों के मार्फत बीबीएफ पद्धति से खेतीवाड़ी करने के लिए जागरूक किया जाता है। किसानों को इस पद्धति से खेती करने पर विभागीय अनुदान भी मिलता है। 
- डॉ. नरेश कुमार शर्मा, सहायक निदेशक, कृषि विभाग, कोटा 

बीबीएफ पद्धति से खेतीबाड़ी करना 100 फीसदी फायदेमंद है। मध्यप्रदेश में यह तकनीक से किसानों के लिए लाभदायक हो रही है।  हाड़ौती के किसानों में पहले की अपेक्षा इस तकनीक के प्रति रूझान बढ़ा है।  इस तकनीक से सोयाबीन की खेती करने से 15 से 20 फीसदी उपज बढ़ाई जा सकती है। हम भी कृषि अनुसंधान केंद्र में बीबीएफ से खेती कर रहे है। 
- डॉ. डीएस मीना, एसोसिएट प्रोफेसर, कृषि अनुसंधान केंद्र उम्मेदगंज, कोटा 

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