मैक्रों और ली पेन में मुकाबला

अपनी भूमि को काफी पुख्ता और विस्तृत कर लिया

मैक्रों और ली पेन में मुकाबला

मैक्रों के लिए इस बार की चुनावी दौड़ इसलिए भी कठिन हो गई कि उन्हें रूस-यूक्रेन युद्ध दौरान अंतरराष्ट्रीय व्यस्तताओं के चलते अपने प्रचार के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया।

मैक्रों के लिए इस बार की चुनावी दौड़ इसलिए भी कठिन हो गई कि उन्हें रूस-यूक्रेन युद्ध दौरान अंतरराष्ट्रीय व्यस्तताओं के चलते अपने प्रचार के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया। ऐसे में प्रतिद्वंद्वी ली पेन ने पूरी सक्रियता से अपनी भूमि को काफी पुख्ता और विस्तृत कर लिया। इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि उन्हें चुनाव दौरान रन ऑफ में मैक्रों से 32 फीसदी मत कम मिले थे। स के राष्ट्रपति पद के चुनाव का दूसरा दौर चौबीस अप्रैल को होने जा रहा है। मुख्य मुकाबला मध्यम मार्गी ला रिपब्लिक एन मार्च पार्टी के मौजूदा राष्टÑपति इमेनुएल मैक्रों और धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली नेता मरीन ली पेन के बीच हो रहा है। वकालत पेशे से जुड़ी मरीन ली पेन वर्ष 2011 से अपनी पार्टी की प्रमुख भी हैं। वर्ष 2017 से नेशनल एसेंबली की सदस्य भी हैं। यह चुनाव परिणाम तय करेंगे कि इस बार यूरोपीय महाद्वीप की दूसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था वाले देश फ्रांस का नेतृत्व कौन करेगा। यह चुनाव ऐसे वक्त पर हो रहा है जब रूस-यूक्रेन के बीच लंबा युद्ध छिड़ा हुआ है। और यह आशंकाएं भी जताई जा रही हैं कहीं यह तीसरे विश्व युद्ध में तब्दील ना हो जाए। ऐसे में यह चुनाव काफी अहम हो गया है। इसके परिणामों के दूरगामी और भू-राजनीतिक प्रभाव के मायने भी होंगे। दूसरी ओर यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने के बाद फ्रांस के लिए यूरोप में नेतृत्व की भूमिका का दायरा बढ़ना भी महत्वपूर्ण हो गया है। चुनाव के पहले दौर के नतीजों में दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों के बीच तीन फीसदी मतों का अंतर रहा है।

विभिन्न चुनावी सर्वेक्षणों में इस बार मुकाबले को कांटेदार होने के संकेत दिए गए हैं। इसके अलावा कुछ सर्वेक्षणों में जीत का पलड़ा वर्तमान राष्ट्रपति मैक्रों के पक्ष में झुकते हुए भी दर्शाया गया है। यहां बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव के पहले दौर में यदि किसी प्रत्याशी को पहले दौर में ही पचास फीसदी से अधिक मत मिल जाते हैं, तो उसे राष्टÑपति घोषित कर दिया जाता है। लेकिन ऐसा नहीं होने की स्थिति में नतीजा फिर दूसरे दौर के चुनाव के आधार पर तय होता है। चुनाव के पहले दौर में मैक्रों को 27.8, तो मरीन ली पेन को 23 Þ1 फीसदी मत मिले थे। तीसरे नम्बर पर समाजवादी उम्मीदवार जीन-ल्यूक मेलेनचॉन को 22 फीसदी वोट मिले। यदि मैक्रों दूसरे दौर में फिर से चुनाव जीत जाते हैं, तो वर्ष 2002 में जैक्स चिराग के बाद दूसरा कार्यकाल करने वाले दूसरे राष्टÑपति होंगे। उनका चुनावी एजेंडा अर्थ व्यवस्था और सामाजिक मुद्दों पर ज्यादा केंद्रित है। पहले दौर के चुनाव ने यह भी अहसास करा दिया कि देश के राजनीतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आ चुका है। पूर्व में यहां की राजनीति में पारंपरिक, सामाजिक, लोकतांत्रिक और रूढ़ीवादी दलों का प्रभुत्व रहता था, जो अब धु्रवीकृत हो, बदल चुका है। ऐसी विचारधारा वाले दलों को संयुक्त रूप से 6 से 7 फीसदी वोट ही हासिल हो सके हैं। जबकि दूरदराज और वामपंथी उम्मीदवारों ने आधे से अधिक वोट हासिल किए हैं।

मैक्रों के लिए इस बार की चुनावी दौड़ इसलिए भी कठिन हो गई कि उन्हें रूस-यूक्रेन युद्ध दौरान अंतरराष्ट्रीय व्यस्तताओं के चलते अपने प्रचार के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया। ऐसे में प्रतिद्वंद्वी ली पेन ने पूरी सक्रियता से अपनी जमीन को काफी पुख्ता और विस्तृत कर लिया। इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि उन्हें वर्ष 2017 के चुनाव दौरान रन आॅफ  में मैक्रों से 32 फीसदी मत कम मिले थे। तो इस बार मैक्रों से उनकी बढ़त, घटकर तीन फीसदी रह गई है। कारण, इस बार मतदाताओं में मुद्रा स्फीति और जीवन यापन की बढ़ती लागत पर नाराजगी अधिक है। मैक्रों के सामने ली पेन जहां कड़ी प्रतिद्वंद्विता तो पेश कर ही रही हैं, वहीं उनके सामने पिछले चुनाव दौरान एकीकृत ‘रिपब्लिकन फ्रंट’ को बनाए रखने की भी चुनौती है।  मरीन ली पेन अपने दूरदराज का आधार, कठोर राष्टÑवाद और सत्ता विरोधी राजनीति की लहर पर सवार हैं। वे अपनी उदारवादी और  संतुलित नेता की छवि बनाने की पूरी कोशिश में हैं। वे फ्रांस को शांति की वैश्विक शक्ति बनाने और भारत और अफ्रीकी देश को सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता दिलाने की वकालत भी कर रही हैं। हिजाब पर कठोर प्रतिबंध लगाने की पक्षधर भी हैं।

इसके अलावा वे यूक्रेन युद्ध दौरान लगाए प्रतिबंधों की भी आलोचना कर चुकी हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि इससे फ्रांसीसी उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचेगा। वे तो नाटो सैन्य कमान से फ्रांसीसी सैनिकों को भी बाहर निकालना चाहती हैं। यदि ली पेन चुनाव जीत जाती हैं, तो यह फ्रांस की राजनीति के चरित्र के बदल देने का संकेत होगी। पिछले चुनावों में मैक्रों एक नया चेहरा थे-एक उदार, प्रगतिशील और बाहरी व्यक्तित्व। लेकिन राष्ट्रपति के रूप में उनकी व्यापार समर्थक नीतियों ने वामपंथी मतदाताओं को अलग-थलग कर दिया है। जिन्होंने पहले दौर में जीन ल्यूक चॉन का समर्थन किया था। स्कूल शिक्षक सेमुअल पेटी की हत्या, कुछ मस्जिदों को बंद करने और धार्मिक संगठनों पर नकेल कसने के उनके फैसलों से उनका समर्थन करने वाले सामाजिक गठबंधन में भी दरार उत्पन्न हो गई है। घरेलू स्तर पर जाइलेट्स असमानता के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हैं।

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(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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