ब्रह्मपुत्र पर बांध से भारत चिंतित
नई चालबाजियों से भारत को बेहद सतर्क रहने की जरूरत
इस तथ्य को स्वीकारना होगा कि भारत भले ही चीन से अपने संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिशें करता रहे, लेकिन चीन को उसके हितों की कोई परवाह नहीं है।
चीन भले ही भारत के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने की कोशिशों का दावा करता रहे। लेकिन उसकी विस्तारवादी और आक्रामक नीतियों में छिपी नई चालबाजियों से भारत को बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। इस बार उसने तिब्बत में यारलुंग त्सांगपों नदी पर विश्व का विशालतम बांध और जल-विद्युत परियोजना का काम शुरू करने का ऐलान किया है। तो दूसरी ओर अक्साई चिन क्षेत्र के होटान प्रांत में दो जिलों की घोषणा की है। भारत के लिए यह गंभीर चिंता का विषय है। हालांकि इस क्रम में भारत ने दोनों फैसलों पर ऐतराज जताते हुए अपना कड़ा विरोध जताया है। जो सामयिक एवं उचित कदम माना जाएगा। आश्चर्य इस बात का है कि चार वर्ष पूर्व भारत और चीनी सैनिकों के बीच गलवान में हिंसक सैन्य झड़प के बाद दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख सीमा पर बेहद तनावपूर्ण स्थितियां बनी थी। जिन्हें दूर करने के लिए राजनयिक एवं सैन्य स्तर पर कई दौर की वार्ताओं के बाद संबंधों को सामान्य बनाया गया था। लेकिन अचानक चीन सरकार की ओर से लिए गए इन फैसलों ने फिर से दोनों देशों के बीच सामान्य होने जा रहे संबंधों पर एक सवालिया चिन्ह तो खड़ा कर ही दिया है। चीन के यह फैसले ऐसे वक्त पर सार्वजनिक किए गए जब अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन दो दिवसीय भारत दौरे पर नई दिल्ली में हैं। संभावना जाहिर की जा रही है कि दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में चीन के बांध निर्माण पर भी चर्चा हुई होगी।
अब इस तथ्य को स्वीकारना होगा कि भारत भले ही चीन से अपने संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिशें करता रहे, लेकिन चीन को उसके हितों की कोई परवाह नहीं है। तभी वह तनाव और तकरार के नए-नए मुद्दों को तलाशता रहता है। ऐसे में भारत को द्विपक्षीय संबंधों में अगले कदमों पर निर्णय लेते समय बहुत सावधानी बरतते हुए आगे बढ़ना चाहिए। खासकर इसलिए कि चीन इन दिनों अपने सैन्य आधुनिकीकरण में जुटा हुआ है। भारत को आशंका है कि टकराव की स्थिति में चीन बांध के पानी का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में कर सकता है। बता दें चीन इस बांध का निर्माण भारत की सीमा के निकट कर रहा है। जहां तिब्बत से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी घाटी क्षेत्र में यूटर्न लेकर भारत के अरूणाचल की सीमा में प्रवेश करती है। इसके बाद असम प्रदेश से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
चीनी बांध के निर्माण की घोषणा के तुरंत बाद असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा और अरूणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कड़ा ऐतराज जताते हुए ब्रह्मपुत्र नदी क्षेत्र के भारतीय क्षेत्र पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों से केंद्र सरकार को अवगत करा दिया है। इससे पहले पिछले माह सीमा विवाद के हल को लेकर भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल चीन गए थे। उस दौरान ही दोनों देशों के बीच इस बांध के निर्माण का जिक्र हुआ था। खैर, पूर्वी लद्दाख सीमा क्षेत्र से दोनों देशों की सेनाओं के हटने के बाद चीन सरकार की ओर से विवादित अक्साइचिन के होटान प्रांत में हेआन और हेयांग जिलों के गठन की घोषणा करना, चीन की भड़काऊ नीति से नए विवाद का विषय हो गया है।
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा कि हमने तथाकथित जिलों के इस इलाके में भारतीय क्षेत्र पर अवैध चीनी कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया है। नए जिलों के निर्माण से न तो इस क्षेत्र पर हमारी संप्रभुता के बारे में भारत की दीर्घकालिक और सुसंगत स्थिति पर कोई असर पड़ेगा और ना ही चीन के अवैध जबरन कब्जे को वैधता मिलेगी। यारलुंग त्सांगपों नदी जिसे भारत में ब्रह्मपुत्र कहा जाता है। चीन इस पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाएगा, जो अब तक के सबसे बड़े जॉर्ज बांध से भी बड़ा होगा। इसके जरिए तीन गुना ज्यादा बिजली पैदा होगी। जो कि अभियांत्रिक के क्षेत्र में बहुत बड़ी चुनौती होगी। इस बांध के निर्माण पर 137 अरब डॉलर खर्च करने जा रही है। जो एक बड़े पारिस्थितिक खतरे का कारण बन सकती है।
दूसरी ओर चीन इसके निर्माण के साथ विश्व को अपनी अभियांत्रिकी शक्ति को जाहिर करने का इरादा रखता है। करीब 2900 किलोमीटर लंबी ब्रह्मपुत्र नदी भारत में आने से पहले तिब्बत के पठार से होकर गुजरती है। यह नदी तिब्बत के बौद्ध मतावलंबी के लिए बहुत पवित्र मानी जाती है। चीन इस बांध को भारत की सीमा के करीब उस इलाके में बनाने जा रहा है, जो भारी बारिश वाला इलाका है। अनुमान है कि इस बांध से हर साल तीन सौ अरब किलोवाट प्रति घंटे बिजली उत्पादित होगी। चीन के हुबई प्रांत में यांगजी नदी पर बने थ्री जॉर्ज बांध से हर साल 88.2अरब किलोवाट प्रति घंटे बिजली पैदा होती है। इसमें 40 अरब क्यूबिक मीटर पानी संग्रहित होता है। दुनिया भर के वैज्ञानिक चिंतित हैं और उनका मानना है इस बांध की वजह से धरती की घूमने की गति में हर दिन 0.06 सेकंड इजाफा हो रहा है। चीन का दावा है कि ब्रह्मपुत्र पर बांध निर्माण में पर्यावरण के मानकों का पूरा ध्यान रखा जाएगा। निचले तटवर्ती राज्यों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। व्यापक सुरक्षा बंदोबस्त किए जाएंगे।
यह लेखक के अपने विचार हैं।
Comment List