बर्बादी रोके बगैर जल संकट का हल नहीं 

बर्बादी रोके बगैर जल संकट का हल नहीं 

भूजल का स्तर निरंतर नीचे जाने के कारण आने वाले 25 वर्षों में एक बहुत बड़ी जनसंख्या के लिए जल संकट की समस्या इतनी विकराल रूप धारण कर सकती है कि आने वाला युद्ध जल संकट को ही लेकर हो सकता है।

इस साल भी दिल्ली सहित देश के तमाम राज्यों में जल संकट गर्मी के चारों महीने बना रहा। दिल्ली- हरियाणा में पानी को लेकर हुई सियासत से दोनों राज्य सरकारों का झगड़ा कोर्ट तक जा पहुंचा। दिल्ली की जल मंत्री को अनशन पर बैठना पड़ा जिससे उनकी तबियत खराब हुई। दरअसल, देश के तमाम राज्यों में साल के बारह महीने पानी की समस्या बनी रहती है। इसलिए पानी की किल्लत महज दिल्ली में नहीं बनी रहती बल्कि तमाम राज्य पानी को लेकर आपस में टकराते दिखायी देते हैं।

भूजल का स्तर निरंतर नीचे जाने के कारण आने वाले 25 वर्षों में एक बहुत बड़ी जनसंख्या के लिए जल संकट की समस्या इतनी विकराल रूप धारण कर सकती है कि आने वाला युद्ध जल संकट को ही लेकर हो सकता है। यह बात विश्व के अनेक वैज्ञानिक भी कहने लगे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक अगला युद्ध तेल, पूंजी या तानाशाही स्थापित करने को लेकर नहीं, बल्कि पानी को लेकर होगा। पानी की कमी भारत जैसे विकासशील देश में ही नहीं दिखाई पड़ रही है बल्कि उन विकसित देशों में भी हो गई है, जो कभी पानी के मामले में मालामाल थे। लेकिन दुनिया में पानी की वैसी बर्बादी शायद नहीं दिखती जैसी भारत में है। दुनिया के ज्यादातर देशों में यह आम संस्कृति है कि जिस चीज की कमी हो उसकी किफायत बरती जाती है। लेकिन भारत में आजादी के बाद जैसे हर चीज में मनमानी शुरू हुई वैसे पानी के मामले में भी हुई। इसका परिणाम यह हुआ देश का बहुत बड़ा इलाका आज पानी की कमी से जूझ रहा है। इसके अलावा पानी की कमी का एक बहुत बड़ी वजह बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के जरिए पानी को बिकाऊ बना देना भी है। भारत का डब्ल्यूटीओ का सदस्य बनने के बाद भारत में धनी वर्ग और धनी होता गया और गरीब और गरीब। पानी के मामले में भी यही हुआ है। देश के जिन इलाकों में पानी की अत्यधिक किल्लत है वहां के गरीब तबके की हालात और भी बद्तर हो गई। इस वर्ग को कभी पानी खरीददने की जरूरत नहीं पड़ी, लेकिन भूमण्डलीकरण के बाद पानी भी इसे खरीदना पड़ रहा है। गांवों में किसान और शहरों में गरीब तमाम नई समस्याओं से जूझने लगा, इसमें पानी की समस्या भी एक है। शहर ही नहीं कस्बों और गांवों तक बोतलबंद पानी धड़ल्ले के साथ बिकने लगा। इतना ही नहीं पानी का कारोबार इतनी तेजी से बढा कि रातोंरात हजारों कारोबारी इसके धंधे में आ गए। आज पानी से बड़ा मुनाफे वाला व्यवसाय दूसरा कोई नहीं है। लागत एक पैसे की नहीं होने के कारण आज यह बाजार का सबसे बड़ा मुनाफे वाला व्यवसाय हो गया है। पानी हमारी संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। इस वजह से यह भारतीय जनजीवन के लिए बाजार की वस्तु नहीं हो सकता है। लेकिन इस धारणा और मान्यता को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने यह कह कर नकार दिया कि जिस तरह से धरती की हर वस्तु बाजार की वस्तु हो सकती है वैसे पानी भी। इतनी भी बात होती तब भी गनीमत थी। इसके अलावा उन्होंने यह कहना प्रारम्भ किया कि पानी की ठंठई से हमारी प्यास नहीं बुझ सकती बल्कि कोल्ड ड्रिंक्स इसके लिए जरूरी है। उन्होंने पानी का अकूत दोहन कोल्ड डिंक्स बनाने से लेकर दूसरे तमाम बाजारू उत्पादनों के लिए भी करना शुरू किया। इस वजह से पिछले बीस सालों में पाताल के पानी का स्तर 4 से लेकर 20  फिट तक देश के विभिन्न इलाकों का कम हो गया। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के इस अकूत दोहन को डब्ल्यूटीओ ने जायज यह कहकर ठहराया गया कि पानी लोगों को मुफ्त में मिलने की वजह से वे इसका ठीक से इस्तेमाल नहीं करते हैं। मतलब इसे बाजारू बनाना हर तरह से जायज है। देखा जाए तो यह ऐसा तर्क है कि किसी वस्तु का दुरुपयोग रोकने के लिए कार्य प्रणाली या तरीका दुरुस्त न कर उसे महंगा बना दिया जाना तर्कसंगत माना जाए। 

गांवों में जो किल्लत पानी को लेकर है सो है ही, शहरों में भी है। शहरों में अपनी सुविधानुसार समाज का हर तबका पानी बर्बाद करने में लगा हुआ है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और बंगलौर जैसे मेट्रो शहरों में ही नहीं छोटे शहरों में रहने वाले लोग भी पानी की बर्बादी करते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली भारत का ऐसा बड़ा शहर है जहां पानी की बर्बादी सबसे अधिक होती है। यहां रोजाना हर आदमी 200 लीटर पानी का इस्तेमाल करता है। लेकिन इसका आधा यानी 100 लीटर पानी यूं ही बहा दिया जाता है। 

इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि पानी की बर्बादी किस तरह से बढ़ती जा रही है। सरकार इस बर्बादी को रोकने की कोशिश करने की बात तो करती है, लेकिल हकीकत यह है सरकारी कार्यालयों में भी पानी की दिल खोलकर बर्बादी की जाती है। जरूरी है कि पानी का पानी रखने के लिए सभी आम और खास को आगे आना ही चाहिए। सरकारों को अपने स्वार्थ से ऊपर उठ इसके बेहतर इस्तेमाल के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाना चाहिए। 

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- अखिलेश आर्येन्दु  
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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