सतरंगी सियासत
आम चुनाव संपन्न होने के बाद संसद सत्र में पीएम मोदी का पहला संबोधन
भाजपा नेतृत्व ने दो दर्जन राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में संगठन प्रभारी एवं सहप्रभारी नियुक्त कर दिए। इसमें अपने राजस्थान से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया भी।
पहली तकरीर..
राहुल गांधी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपने पहले ही भाषण में गर्माहट पैदा कर दी। हालत यह हो गई कि पीएम मोदी को भी बीच में बोलना पड़ा। आखिर राहुल गांधी ने बोला ही ऐसा। फिर अमित शाह भी बोले। खैर, राहुल गांधी वही बोले जैसी उम्मीद थी। लेकिन अब वह नेता प्रतिपक्ष। और वह भी संसद के निचले सदन में। जो बहुत महत्वपूर्ण। पूरा देश देखा-सुन रहा होता। भाजपा की प्रतिक्रिया भी वैसी ही। जैसी कि अपेक्षित। लेकिन बोले तो यूपी के सीएम योगी भी। उन्होंने कहा, हिन्दू इस देश की आत्मा। लग रहा, मानो दोनों ही ओर से मुद्दा मिल गया। जो आगे तक चलेगा। मतलब काम की बात न हो। और ऐसे मुद्दों पर संसद के भीतर और बाहर बवाल होता रहे। जिनका आम जनता के हितों से कोई सरोकार नहीं हो। तो फिर यह किसके हित में?
खड़गे की जिजीविषा...
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जन खड़गे करीब 82 साल के। लेकिन उनके परिश्रम और सक्रियता में कोई कमी नहीं। करीब पांच दशकों से ज्यादा समय से राजनीति में। वह कांग्रेस अध्यक्ष भी। बीते सोमवार को जब राज्यसभा में खड़गे राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलने के लिए खड़े हुए। तो शुरूआत में ही उन्होंने सभापति जगदीप धनखड़ से कहा कि उन्हें पैर में तकलीफ। सो, बीच में रूकावट संभव। जिस पर सभापति ने कहा, आप अपनी सुविधा से खड़े होकर या बैठकर बोलें। तो खड़गे बोले, बैठकर बोलने में वह जोश नहीं आता। सो, घंटेभर से ज्यादा जमकर बोले। एनडीए सरकार, भाजपा और आरएसएस की खूब मजम्मत की। लेकिन खड़गे एक बार भी थककर अपनी सीट पर नहीं बैठे! ऐसे में बाकी सांसदों का अचम्भित होना लाजमी। खड़गे सदन की वेल में भी आ चुके। उन्होंने पूरे जोश से सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज करवाया था।
पीएम का जवाब
आम चुनाव संपन्न होने के बाद संसद सत्र में पीएम मोदी का पहला संबोधन। वैसा ही बोले। जैसा उन्हें जाना जाता। जो अपेक्षा विपक्ष पाले हुआ था। वैसा कुछ भी नहीं हुआ। मतलब गठबंधन साथियों का दबाव या भाजपा को 272 पार नहीं होने का कोई असर नहीं दिखा। विपक्ष और खासकर राहुल गांधी की एक-एक बात का जवाब दिया। उसी चिरपरिचित अंदाज में। हां, इस बार राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनके सामने थे। तो हंगामा, शोरगुल, टोका टाकी नारेबाजी आपत्ति, वार, प्रतिवार अपेक्षित था। वह जमकर हुआ। इन सबमें स्पीकर को कई बार सांसदों को डाटना डपटना पड़ा। नाराज भी हुए। सदन की परंपराओं को याद भी दिलाया। साथ में अनुशासन और नैतिकता की दुहाई भी। लेकिन इस बार असर कहां होना था। दोनों ओर के सांसद भी पूरे जोश में थे। आखिर अपने नेता के सामने निष्ठावान भी तो दिखाना।
दोनों ओर खुशी...
संसद सत्र समाप्त हो गया। सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच खुशी का माहौल। विपक्ष इसलिए खुश कि उसकी संख्या बढ़ गई। सरकार के खिलाफ ज्यादा आक्रामक हो पाएगा। खासकर कांग्रेस। फिर नेता विपक्ष राहुल गांधी बन गए। इस बीच, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा में राहुल गांधी जिस अंदाज में बोले। उससे उनके समर्थक खासे खुश। उनको ऐसी ही उम्मीद थी। लेकिन दूसरी ओर, पीएम मोदी ने भी उसी आक्रामक और हमलावर अंदाज में जवाब दिया। जिसकी उम्मीद कम से कम विपक्ष को नहीं थी। क्योंकि वह संख्या बल के कारण मोदी के ढीला पड़ जाने की आस लगाए बैठे थे। लेकिन उन्हें निराशा मिली। मोदी समर्थक एवं भाजपा कार्यकर्ता भी खुश। क्योंकि मोदी 3.0 में उन्हें कुछ नया होने की उम्मीद। और मोदी ने कहा भी। दस सालों में मैने बहुत बर्दाश्त कर लिया। अब जो जैसे समझेगा। उसी भाषा में समझाया जाएगा।
संशय, असमंजस!
बाबा किरोड़ी जी ने मंत्री पद छोड़ दिया। लेकिन जो कारण बताया जा रहा। वह उथला और सतही। कारण कुछ और संभव। जो अभी सामने आया नहीं। जो डा. किरोड़ीलाल को करीब से जानते। या जो उनकी राजनीति को करीब से समझते। उनके लिए शायद कुछ और ही होने वाला! बात चाहे भाजपा नेतृत्व की हो या राज्य सरकार की। बाबा को कोई मना नहीं पाया। इसीलिए संशय और असमंजस। आखिर जो नेता चार दशकों से ज्यादा सार्वजनिक जीवन में हो। और परंपरागत राजनीति करता हो। उसे समझ पाना इतना आसान भी नहीं। आज के दौर के नेताओं के तो यह बस की बात नहीं। शायद बाबा की यही पीड़ा। वह इशारों में कई बार कह चुके। लेकिन जिनको निर्णय लेना। शायद हालात उनके लिए अनुकूल नहीं हो। लेकिन पांच विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव भी। जो लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के लिए ज्यादा चुनौतिपूर्ण।
आहट या जल्दबाजी?
भाजपा नेतृत्व ने दो दर्जन राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में संगठन प्रभारी एवं सहप्रभारी नियुक्त कर दिए। इसमें अपने राजस्थान से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया भी। जिन्हें हरियाणा की जिम्मेदारी सौंपी गई। इधर, हाल ही में संपन्न आम चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन आशानुुरूप नहीं रहा। जिससे पार्टी नेतृत्व चिंतित। लेकिन अब सतर्क भी। इसीलिए नए अध्यक्ष की नियुक्ति की आहट के बीच बिना देरी किए चुनावी राज्यों हरियाणा, जम्मू-कश्मीर एवं झारखंड समेत 24 प्रदेशों में संगठनात्मक नियुक्ति कर दी गई। मतलब, ढिलाई की गुंजाइश नहीं। अब भाजपा में यह बदलाव की आहट या जल्दबाजी? वैसे भाजपा की पहचान कैडर बेस पार्टी की। लेकिन जब भी पार्टी केन्द्र की सत्ता में रहती। पार्टी नेतृत्व कैडर के बजाए सरकार चलाने में ज्यादा व्यस्त रहता। जिसे अब दुरूस्त करने की कोशिश की जा रही। इसीलिए समय, परिस्थितियों एवं जरूरत के हिसाब से निर्णय हो रहे।
दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Comment List