Small Scale Industry Day: विकसित राजस्थान के लिए लघु उद्योगों पर फोकस जरूरी

जीडीपी में लघु उद्योगों की 65% हिस्सेदारी

Small Scale Industry Day: विकसित राजस्थान के लिए लघु उद्योगों पर फोकस जरूरी

औद्योगिक क्षेत्र में 80% रोजगार सृजन लघु उद्योगों से होता है।

जयपुर। राजस्थान की अर्थव्यवस्था लघु उद्योगों पर आधारित है, इसलिए यदि राजस्थान को विकसित राज्य बनाना है तो लघु उद्योगों के विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। राजस्थान की जीडीपी में 28% भागीदारी उद्योगों की है, इसमें 65% हिस्सा लघु उद्योगों का है यानी राजस्थान के औद्योगिक विकास में  मध्यम और भारी उद्योगों की भागीदारी केवल 35% है। इसी तरह रोजगार की दृष्टि से भी लघु उद्योग प्रदेश में सबसे ज्यादा उपयोगी हैं। औद्योगिक क्षेत्र में 80% रोजगार सृजन लघु उद्योगों से होता है। हालांकि राज्य सरकार के उद्योग विभाग में करीब 6 लाख लघु उद्योग इकाइयां रजिस्टर्ड हैं, लेकिन इनमें से 50 प्रतिशत यानी करीब 3  लाख इकाइयां ही वर्तमान में कार्यरत हैं। 

इंटरनेशनल मार्केट की तलाश
वर्तमान में गारमेंट, ज्वैलरी, फुटवियर और हस्तशिल्प में नए डिजाइन पर सबसे ज्यादा काम हो रहा है। देश और विदेश के मार्केट के ट्रेंड और फैशन का समझ कर लघु उद्योगों में उत्पाद बनाए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए बाजार तलाशे जा रहे हैं। नई तकनीक के माध्यम से लागत और समय को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। 

ऑनलाइन के नफे और नुकसान
डिजिटल ट्रांजेक्शन व्यवस्था ने लघु उद्योगों के विकास में काफी मदद की है। इससे लेन-देन आसान हुआ है। बी टू बी और बीटूसी दोनों बिजनेस में डिजिटल ट्रांजेक्शन सिस्टम से आसानी हुई है। ऑनलाइन मार्केट जिसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म भी कहते हैं, इससे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव रहे हैं, जिन लघु उद्यमियों ने शुरुआती दौर में ई-कॉमर्स को अपना लिया उनके लिए फायदे का सौदा साबित हुआ, लेकिन जो ऑफलाइन पर ही टिके रहे, उन्हें नुकसान हुआ। 

ये है प्रमुख उत्पाद
राजस्थान में गारमेंट समृद्ध और पारंपरिक लघु उद्योग है। जयपुर, जोधपुर, कोटा, बालोतरा, पाली इसके प्रमुख केंद्र हैं। जेम्स ज्वैलरी जयपुर इसका प्रमुख केंद्र है, यहां दुनिया भर में सबसे ज्यादा रत्नों की प्रोसेसिंग होती है। इसके अलावा, यहां मेटल, लकड़ी, लेदर के हस्तशिल्प, मसाले, मार्बल, ग्रेनाइट, दलहन, तिलहन और  खाद्य तेल उद्योग भी पारम्परिक भी श्रेणी में आते हैं। लघु उद्योग मूल रूप से महिला और युवाओं पर ही आधारित हैं। प्रदेश के वस्त्र उद्योग में 80% महिलाएं कारीगरों पर निर्भर है। 
सुरेश अग्रवाल, अध्यक्ष फोर्टी

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सांगानेरी प्रिंट को नई पहचान
कालाई स्टूडियों की संस्थापक विदुषी मित्तल ने कहा कि भामाशाह टेक्नो हब में कालाई स्टूडियो की संस्थापक विदुषी मित्तल ने बताया कि पिछले 14 सालों से देश के विभिन्न हिस्सों में कारीगरों के साथ काम कर रही हूं। उनके साथ जमीन पर बैठकर, उनके घरों में खाना खाकर और उनके जीवन को समझकर एक गहरा रिश्ता बना। लेकिन एक छोटे से ब्रेक के बाद जब मैं वापस आई, तो मैंने देखा कि एक कारीगर का बेटा मजदूरी कर रहा है। यह दृश्य मेरे दिल को छू गया। मशीन से बने सस्ते उत्पादों के कारण असली हस्तकला का स्थान छिनता जा रहा है और इसके साथ ही कारीगरों की कम मजदूरी भी इस पलायन का एक बड़ा कारण है। इस स्थिति ने मुझे एहसास दिलाया कि यदि यह पलायन नहीं रुका तो सांगानेरी ब्लॉक प्रिंटिंग का सजीव रूप खत्म हो जाएगा। यही वो पल था जब मैंन कलाई स्टूडियो शुरू करने का निर्णय लिया। कारीगरों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य देने के लिए प्रतिबद्ध है। हम उन्हें बाजार दर से लगभग दोगुना भुगतान करते हैं, ताकि उनकी कला को उसका सही सम्मान मिल सके। 

पार्सल भेजना बनाया आसान
कुयुरिइरो के संस्थापक भुवन रेलहन ने कहा कि एक बार मुझे कुछ बेहद जरूरी सामान भेजना था, और इसके लिए मैंने शहर भर में लगभग 8 किलोमीटर तक यात्रा की और 5 अलग-अलग कूरियर शॉप्स के चक्कर लगाए। लेकिन हर जगह से या तो दरें बहुत ज़्यादा थीं या फिर भरोसेमंद सेवा नहीं मिल रही थी। अंत में, जब मैंने कूरियर किया, तब भी मेरा सामान समय पर नहीं पहुंचा। यही वह विचार था जिसने कुयुरिइरो की नींव रखी।  संस्थापक भुवन रेलहन ने बताया कि हमारा मकसद सिर्फ एक कंपनी बनाना नहीं था, बल्कि छोटे व्यापारियों और आम लोगों के लिए एक ऐसी सुविधा देना था जो समय और पैसे दोनों की बचत करें। हमने कुयुरिइरो की शुरुआत महज 2 लाख रु. की पूंजी से की थी, हमने 60 लाख रु. का राजस्व हासिल कर लिया है। आने वाले 2 वर्षों में हम 5 करोड़ रु. के राजस्व का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।

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