सूरमा भी पानी भरते हैं पुष्पलता के सामने
मंगलेश्वर व्यायामशाला अखाड़े की महिला उस्ताद रोज सिखाती हैं हैंरतअंगेज करतब
80 से अधिक लड़कियों को हथियार संचालन की ट्रेनिंग देती हैं।
कोटा। अखाड़ों में पुरूषों द्वारा करतब दिखाने की बातें अब पुरानी हो चुकी हैं, आज के दौरान में महिलाओं ने आखाड़ों में अपनी प्रतिभा को इस तरह से निखारा है कि जो कार्य अच्छे अच्छे सूरमा नहीं कर पाते उन्हें ये महिलाएं पलक झपकते पूरा कर देती हैं। ऐसी महिलाएं तैयार होती हैं छावनी स्थित मंग्लेश्वर व्यायामशाला में जहां पांच साल की छोटी बच्ची से लेकर 67 साल की महिला तक कोई करतब दिखाने से नहीं घबराती हैं। बल्लम चलाना हो या चलाना हो लठ, तलवार घुमाना हो या घुमाना हो चक्कर ये महिलाएं हर उस करतब को इस तरह से अंजाम देती हैं जैसे अंंगुलियों पर माचिस की तिली घुमा रही हों।
पड़ोस की महिला को देखा तो मंजू रानी ने भी सीख लिया हथियार चलाना
छावनी स्थित मंग्लेश्वर व्यायामशाला की मंजू रानी भी शादी के बाद ही अखाड़े के मैदान में उतर गई थी, और आज तक अखाड़े में दांव पेंच दिखाने के साथ साथ सिखा भी रही हैं। मंजू राठौर बताती हैं कि पड़ोस में रहने वाली पुष्पलता सुमन को अखाड़ों में करतब करते हुए देखा तो उन्हें भी इसकी प्रेरणा मिली जिसके बाद उनके पति कैलाश चंद राठौर ने उनकी शादी के कुछ दिनों के बाद ही अखाड़े में दाखिल करा दिया था। मंजू बताती हैं कि जब वो पहली बार अखाड़े में गई तो वो उनकी जिंदगी का सबसे सुखद एहसास था क्योंकि अखाड़े में महिलाओं और बालिकाओं को पुरूषों के जैसे शस्त्र चलाते देख उनका पूरा शरीर उर्जा से भर गया। जिसके बाद वो हर दिन अखाड़े का अभ्यास करने लगी। धीरे धीरे मंजू वो सब सीखती गई जो एक पुरूष के लिए भी शारीरिक तौर पर बहुत मुश्किल होता है। आज करीब 20 साल बाद भी मंजू अनंत चर्तुदशी और नवरात्री से पहले रोज अखाड़े में जाती हैं। जहां हर रोज तलवार, बल्लम, चक्कर और लठ से हैरतंगेज करतब करती नजर आ जाती हैं।
डांडिया खेलने लगी तो प्रोत्साहित कर पति ने हाथ में लठ पकड़ाया
छावनी स्थित मगलेश्वर व्यायामशाला की महिला उस्ताद पुष्पतला सुमन करीब 40 साल से अखाड़ा खेल रही हैं। पुष्पलता बताती हैं कि उनकी शादी साल 1974 में नाथूलाल पहलवान से हुई थी। शादी के शुरू के दिनों में तो सबकुछ सामान्य रहा लेकिन कुछ साल बाद नवरात्रों के दौरान डांडिया खेलने शुरू किया तो पति नाथूलाल सुमन ने प्रोत्साहित करते हुए कहा कि डांडिया खेलने के स्थान पर अखाड़ा खेलना और शस्त्र चलाना सीखो जिससे तुम आत्मनिर्भर बन सको। पुष्पलता आगे बताती हैं कि अखाड़े की शुरूआत में तो काफी समस्या हुई। कई बार तलवार और बल्लम चलाते चलाते छूट जाते थे, चोट लग जाती थी। लेकिन पति नाथूलाल ने सिखाना जारी रखा और एक साल के अंदर सारे शस्त्र चलाने में माहिर हो गए। तब से हर साल अतंत चर्तुदशी और नवरात्रा के दौरान अखाड़े में जाने लगे जो अभी तक जारी है। पुष्पलता आज भी कई खतरनाक करतबों को पलक झपकते ही अंजाम दे देती हैं। पुष्पलता आज अपनी व्यायामशाला में 80 से ज्यादा लड़कियों और महिलाओं को अखाड़े की ट्रेनिंग देती हैं। पुष्पलता कहती हैं कि अखाड़ा और व्यायामशाला में प्रत्येक बालिका को आने चाहिए।
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