खुद से की महिलाओं और लड़कियों के अखाड़े में आने की शुरूआत
तलवार को ऐसे चलाती हैं मानो चाकू से खेल रही हो, करतब दिखाने आती है तो सब हो जाते हैं खड़े
हर अनंत चतुर्दशी और डोल एकादशी से पहले व्यायामशाला में मानो जश्न सा माहौल बन जाता है।
कोटा। अपने करतब में ऐसी धार की देखने वालों को सोचने पर मजबूर कर दे, तलवार को इस तरह से चलाना जैसे चाकू को घुमा रही हो। वो हर उस कलाबाजी को यूं दिखाती हो जैसे उसके बाएं हाथ का खेल हो। ऐसी महिलाएं और लड़कियां तैयार होती हैं छावनी स्थित हरदौल व्यायामशाला में जहां इन महिलाओं और लड़कियों एक से बढ़कर एक करतब दिखाने की हौड़ लगी रहती है। व्यायामशाला में जब ये लड़कियां शस्त्र लेकर उतरती हैं तो पुरूष और लड़के सिर्फ देखने के लिए ही खड़े रहते हैं। हर अनंत चतुर्दशी और डोल एकादशी से पहले व्यायामशाला में मानो जश्न सा माहौल बन जाता है हर शख्स इन लड़कियों के करतब देखने के लिए उमड़ पड़ता है।
खुद से की शुरूआत फिर लड़कियों को जोड़ा
हरदौल व्यायामशाला की खिलाड़ी और कलाबाज संगीता कश्यप ने ही इस अखाड़े में महिलाओं और लडकियों को आने की शुरूआत की थी। संगीता बताती हैं कि आज से आठ साल पहले इस व्यायामशाला में केवल लड़के और पुरूष ही अखाड़ा खेलते थे। जिसे देखकर हम भी खेलने को लेकर प्रेरित होने लगे, जिसके बाद सबसे पहले मैं मेरी दोस्तों के साथ इस अखाड़े में पहुंच गई। हालांकि शुरूआत में थोड़ा मुश्किल लगा लेकिन धीरे धीरे सबकुछ आसान लगने लगा। मौहल्ले और परिवार के लोग भी कई बार कहते थे कैसे करोगी। लेकिन मन में जुनून रखा और आगे बढ़ते रहे। संगीता बताती हैं कि अखाड़े में सबसे ज्यादा मजा तलवार बाजी में आता है क्योंकि उसे चलाने में इंसान को बहुत सावधानी रखनी होती है। उसी सावाधानी को चैलेंज बनाकर तलवारबाजी करने पर सब तालियां बजाने पर मजबूर हो जाते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के चलते कई समस्या आती है और सब कुछ अपने दम पर ही करना पड़ता है। संगीता बताती है कि वो तलवारबाजी में भविष्य बनाना चाहती हैं, और देश के लिए पदक जीतना चाहती हैं।
बच्चों को देखकर अखाड़ा सीखा, अब संचालक
हरदौल व्यायामशाला की संचालक मीना प्रजापति बताती हैं कि उन्होंने बच्चों को देखकर अखाड़ा खेलना सीखा इससे पहले वो केवल गृहिणी थी। करीब 8 साल से मीना प्रजापति अखाड़े में आती हैं। जहां लड़कियों को अखाड़ा सिखाने के साथ उन्हें खेलों में जाने के लिए भी प्रेरित करती हैं। शुरूआत में अखाड़े में आते समय करतब करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा कई बार चोटें लग जाती थी। लेकिन लड़कियों को सिखाने और उनके बीच जोश लाने के लिए हमेशा करतब करती रही। मीना बताती हैं कि अखाड़े के लिए उन्हें परिवार और समाज की ओर से हमेशा सहयोग रहा। व्यायामशाला में आने वाली हर लड़की आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आती हैं। ये सभी लड़कियां अपने बलबूते पर ही सभी प्रकार के खर्चे उठाती हैं। वहीं व्यायामशाला से कई लड़कियां राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में जीत दर्ज करा चुकी हैं।
आत्मनिर्भर और खुदकी सुरक्षा के लिए जरूरी अखाड़ा
अखाड़े के संचालक लोकेश बताते हैं कि आज से करीब आठ साल पहले संगीता और अन्य लड़कियां अखाड़ा सीखने को लेकर व्यायामशाला आई थी। जिसके बाद से ही यहां महिलाओं के लिए करतब सिखाना शुरू किया। इन्हें देखते हुए और भी लड़कियां आने लगी और आज करीब 100 लड़कियां व्यायामशाला में अपने करतब दिखाती हैं। कई बालिकाएं अखाड़े में ऐसी भी हैं जो दिन में अपनी जॉब करती हैं और शाम को यहां आकर अभ्यास करती हैं। क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से घर में भी सहायता देनी पड़ती है। व्यायामशाला से हर साल मलखंभ के लिए प्रतिभागी जाते हैं और हर बार जीतकर आते हैं। अखाड़ा और व्यायामशाला में अभ्यास लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही खुदकी सुरक्षा करने के काबिल बनाता है ताकि वो मुसीबत के समय खुदकी रक्षा खुद कर सके।
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