भारत की विदेश नीति के लिए कहीं मुश्किल न बन जाए अडानी विवाद

बांग्लादेश से अफ्रीका तक ड्रैगन ने गड़ा रखी है नजर

भारत की विदेश नीति के लिए कहीं मुश्किल न बन जाए अडानी विवाद

सरकारें अपने देश की कंपनियों के हितों को बढ़ावा देती हैं। लेकिन अडानी समूह से जुड़े विवाद बढ़ते जा रहे हैं। यह भारत सरकार के साथ इसके घनिष्ठ संबंध भारतीय विदेश नीति के लिए समस्या बन सकता है।

वॉशिंगटन। भारतीय अरबपति गौतम अडानी पर अमेरिकी एजेंसियों ने रिश्वतखोरी के मामले में आरोपों की घोषणा की है। इन आरोपों के बाद भारत की राजनीति में बवाल मचा हुआ है। अडानी का मामला भारत की विदेश नीति के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारत के सबसे शक्तिशाली घरानों में एक अडानी का प्रभाव दुनिया भर में फैला हुआ है। अडानी की वैश्विक पहुंच भारत के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकती है। खासतौर पर जब वह अपने वैश्विक आर्थिक प्रभाव का विस्तार करना चाहता है। लेकिन यहां एक समस्या भी है। विशेषज्ञों के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में कई लोगों ने अडानी और भारत की मोदी सरकार के संबंधों को मामला सामने लाने की कोशिश की है। इन संबंधों के कारण आरोप लगे हैं कि मोदी सरकार ने विदेश में अडानी की मदद के लिए प्रभाव का इस्तेमाल किया है। हालांकि, कई सरकारें अपने देश की कंपनियों के हितों को बढ़ावा देती हैं। लेकिन अडानी समूह से जुड़े विवाद बढ़ते जा रहे हैं। यह भारत सरकार के साथ इसके घनिष्ठ संबंध भारतीय विदेश नीति के लिए समस्या बन सकता है।

श्रीलंका का मामला
साल 2022 में सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के एमएमसी फर्डिनेंडो ने श्रीलंका की संसद को बताया कि श्रीलंका सरकार पर भारत सरकार की ओर से अक्षय ऊर्जा परियोजना के टेंडर अडानी को देने का दबाव है। श्रीलंका विपक्ष ने मुद्दे को जोर से उठाया, जिसके बाद भारत और श्रीलंका दोनों की सरकारों ने आरोपों से इनकार किया। अधिकारी ने अपना बयान वापस ले लिया, लेकिन नुकसान हो चुका था। पिछले साल अडानी को श्रीलंका में 440 मिलियन डॉलर का पवन ऊर्जा अनुबंध दिया गया था, लेकिन श्रीलंका की नई सरकार इस पर पुनर्विचार कर रही है। इन परियोजनाओं को पारदर्शिता की कमी, बिजली के लिए अधिक शुल्क लेने और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण सवालों का सामना करना पड़ रहा है। श्रीलंका में अडानी विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं और यह भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है।

बांग्लादेश को बिजली की सप्लाई 
अडानी की बिजली परियोजना बांग्लादेश को बिजली की आपूर्ति करती है। बांग्लादेश में कई लोगों का तर्क है कि अडानी बिजली के लिए जो कीमत वसूल रहे हैं, वह बहुत ज्यादा है। बांग्लादेश की सरकार ने कीमत में कमी की मांग की है। बांग्लादेश में अडानी को कॉन्ट्रैक्ट दिए जाने पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। देश के प्रमुख अखबार प्रोथोम अलो के संपादक मतिउर रहमान कहते हैं, बांग्लादेश में सभी जानकार लोग जानते थे कि शेख हसीना ने मोदी के दोस्त की मदद करने के लिए इस समझौते पर सहमति जताई थी।

चीन पहले से बनाए हुए है नजर
शेख हसीना के जाने के बाद अवामी लीग परिदृश्य से गायब है और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी अब सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। बीएनपी के महासचिव ने अडानी को प्रोजेक्ट दिए जाने के मूल्याकंन की मांग की है। बांग्लादेश और श्रीलंका में अडानी की ये असफलताएं भारत के लिए एक समस्या हैं। अगर इन देशों को लगता है कि भारतीय कंपनियां भ्रष्टाचार और सरकारी मदद से सौदा हासिल कर रही हैं, तो यह भारतीय निवेश के लिए जोखिम होगा। चीन दक्षिण एशिया में तेजी से अपना पैर पसार रहा है, ऐसे में ये आरोप भारत की रणनीति को नुकसान पहुंचाएंगे।

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सिर्फ पड़ोस की समस्या नहीं

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अफ्रीका के केन्या में भी अडानी समूह का निवेश फंस गया है। अडानी समूह को केन्या के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार के लिए 1.8 बिलियन डॉलर का ठेका दिया गया। अमेरिका में आरोप सामने आने के बाद केन्या ने इस सौदे को रद्द कर दिया है। केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो ने गुरुवार को कहा कि उन्होंने देश के मुख्य हवाई अड्डे के विस्तार के लिए खरीद प्रक्रिया को रद्द करने का आदेश दिया है, जिसमें सरकार अडानी समूह के प्रस्ताव पर विचार कर रही थी। केन्या के पूर्व प्रधानमंत्री रैला ओडिंगा ने अडानी समूह के साथ डील साइन की थी। इन मामलों से यह धारणा बनती है कि भारत सरकार कंपनी से करीब से जुड़ी हुई है। अमेरिका में रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोप लगाए जाने के बाद यह समस्या गंभीर हो सकती है। सरकार के साथ अडानी के संबंध नई दिल्ली के लिए एक भार के रूप में देखे जा सकते हैं।

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