जानें राज-काज में क्या है खास
एवरी थिंग इज वेल
सूबे में सात में से पांच सीटों पर भाजपा की जीत ने कई भाई लोगों के मुंह पर ताला लगा दिया। भाई लोग भी और कोई नहीं, बल्कि भगवा से ताल्लुकात रखते हैं।
एवरी थिंग इज वेल
सूबे में सात में से पांच सीटों पर भाजपा की जीत ने कई भाई लोगों के मुंह पर ताला लगा दिया। भाई लोग भी और कोई नहीं, बल्कि भगवा से ताल्लुकात रखते हैं। बेचारे भाई लोगों ने पिछले 11 महीने कई तरह के चैलेंज पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अटारी वाले भाई साहब भी कम नहीं हैं, पूंछरी के बालाजी के भजन कर चुपचाप सबकुछ देखते रहे। अब रिजल्ट से कद बढ़ा तो भाई साहब ने शनि को ही अपनी टीम को मैसेज दे दिया कि एवरी थिंग इज वेल। राज का काज करने वाले बतियाते हैं कि अब बेचारे उन भाई लोगों का मुंह देखने लायक है, जिन्होंने चौकड़ी के सहारे कोई कसर नहीं छोड़ी।
ये पब्लिक है
सूबे में दो दिन से 50 साल पहले बनी रोटी फिल्म का गाना जोरों से गुनगुनाया जा रहा है। विधानसभा उपचुनावों के नतीजों के बाद तो दोनों दलों के ठिकानों पर आने वाला हर कोई वर्कर गुनगुनाए बिना नहीं रहता। दौसा, खींवसर, रामगढ और झुंझुनूं में तो हर गली और चौराहे पर हर डीजे में यही गाना चल रहा है। राज का काज करने वाले भी लंच केबिन में बतियाते हैं कि अब इन नेताओं को कौन समझाए कि जब हार्ड कोर वर्कर्स को नजरअंदाज कर वंशवाद को तवज्जो मिलेगी, तो पब्लिक का ही आसरा होता है। चूंकि यह पब्लिक है, सब जानती है, सब पहचानती है कि उसे क्या करना है।
अहमियत मास्टर साहब की
मास्टर साहब ने राज को समझा ही दिया कि आखिर वे भी कम नहीं होते। पढ़ाई-लिखाई करा कर कईयों को नेता और अफसर बनवा दिया। कुछ दिनों पहले तक राज के एक बड़े अफसर की कुर्सी पर बैठे साहब की पेंशन में रोड़ा अटकाने के साथ ही महकमे के अफसरों से जमकर चापलूसी करवाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जिन अफसरों ने मास्टर साहब को पन्द्रह साल तक एड़ियां घिसवाईं, वो अब नाक रगड़ रहे हैं। शेखावाटी वाले मास्टर साहब ने अदालत की चौखट पर गुहार लगाई और न्याय की कुर्सी पर बैठे साहब ने राज को घुड़की लगाई। घुड़की भी ऐसी कि तीन महीने पहले घर जा चुके साहब को पेंशन तक के लाले पड़ गए। साहब भी कम नहीं, सो अदालत से वादा कर बैठे कि मास्टर साहब को न्याय नहीं मिलने तक वह भी पेंशन नहीं लेंगे। साहब तो घर चले गए, लेकिन पीछे वालों के माथे बोझ छोड़ गए। अब राज का काज करने वालों ने भी नाक बचाई और मास्टर साहब को दण्डवत प्रणाम कर असल के साथ सूद भी देकर राजी किया। अब राज ने उन बीडीओ से वसूली का फरमान जारी कर दिया, जिनकी वजह से यह सब कुछ झेलना पड़ा।
धन्य हो काले कोट वाले
आजकल काले कोट वाले कुछ भाई लोग बहस के साथ दो-दो हाथ करने में भी माहिर हैं। उनकी स्टाइल देखकर अहसास होता है कि कईयों ने तो कोर्ट में जाने से पहले जूडो- कराटे और पहलवानी के गुर भी सीखे होंगे। उनको पहले से आभास था कि धंधा तो चलने वाला नहीं, सो काले कोट की आड़ में दादागीरी तो चल जाएगी। सो पहले खाकी वाले और अखबारनवीसों पर हाथों की खुजली मिटाते थे और अब न्याय की सबसे ऊंची कुर्सी के सामने अपने ही भाई लोगों का मुंह सुजा कर बता दिया कि हमारा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। राज का काज करने वाले पहले ही इनसे दूरियां बनाकर चलते हैं। अब न्याय की आस में अदालतों में आने वाले फरियादी भी सहमे रहते हैं। पता नहीं काले कोट वाले भाई साहब का हाथ कब उठ जाए। दूसरों की खैर खबर लेने वाले मी-लॉर्ड भी सब कुछ देख रहे हैं, लेकिन कार्रवाई करने में बेबस हैं। ऐसे कुछ लोग धन्य हैं, जो काले कोट पहनकर भी कानून से खिलवाड़ कर बैठते हैं।
निराशा के निशान
पिछले दिनों भगवा वाली पार्टी के एक बड़े नेता ने कार्यकर्ताओं के मन को क्या टटोला, कईयों की नींद हराम कर दी। तीस साल से ऐड़ियां रगड़ने वाले भाइयों ने रो-रोकर अपनी दुर्दशा का बखान किया। अगल-बगल में बैठे सत्ता और संगठन के कर्ताधर्ता समझ नहीं पाए कि कहानी को कैसे यू टर्न दिया जाए। उन्होंने कोशिश भी की, लेकिन नेताजी उनके मन की बात भांप चुके थे। भारी कसमसाहट के बाद आखिर भगवा के एक स्थानीय युवा नेता से नहीं रहा गया। आखिरकार वे फट ही पड़े। इसके लिए उन्हें रोना भी पड़ा। नेताजी के दिल्ली जाने के बाद खुसर- फुसर भी खूब हुई। कहने वालों ने इसे निराशा के निशान तक करार दे दिया। बोले यह युवाओं की आवाज नहीं, बल्कि विधानसभा उप चुनावों में टिकट लेने से वंचित रहे एक प्रत्याशी का खेल है। दुखड़ा सुनाने वाले भैया उनके कट्टर समर्थकों में से एक हैं।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
Comment List