महाराजा सूरजमल पानीपत की लड़ाई के रणनीतिकार
भरतपुर राज्य के महाराजा सूरजमल अग्रणी थे
अठारहवी शताब्दी में मुगल साम्राज्य के पतन के साथ दक्षिण भारत में मराठा, पंजाब मे सिक्ख और उत्तर भारत में जाट शक्ति का अभ्युदय अपने चरम पर था।
वर्तमान राजस्थान के पूर्वी सिंहद्वार तत्कालीन भरतपुर राज्य को भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने वाले महानायक महाराजा सूरजमल 25 दिसम्बर 1763 को दिल्ली के निकट शाहदरा इलाके में नवाब नजीबुद्दोल्ला के खिलाफ युद्व मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए। भारत के इतिहास में मुख्यत: दो अवसरों पर भरतपुर की निर्णायक भूमिका रही। मार्च 1727 में खानवा के मैदान में बाबर एवं राणा सांगा के बीच हुए युद्व में सांगा की पराजय ने मुगल शासन की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। सांगा का भाला बाबर से एक इंच की दूरी से निकल गया, जिसने भारत की तकदीर बदल दी। इसी प्रकार पानीपत की तीसरी लड़ाई में यदि मराठाओं ने महाराजा सूरजमल की रणनीति का अनुसरण किया होता तो भारत के इतिहास का स्वरूप अलग होता। इतिहास का विचित्र संयोग यह है कि 1707 में मुगल शासक औरगंजेब का निधन हुआ और इसी साल भरतपुर की पुरानी राजधानी डीग के राजा बदन सिंह की पटरानी देवकी के गर्भ से फरवरी 1707 को सूरजमल का जन्म हुआ। अठारहवी शताब्दी में मुगल साम्राज्य के पतन के साथ दक्षिण भारत में मराठा, पंजाब मे सिक्ख और उत्तर भारत में जाट शक्ति का अभ्युदय अपने चरम पर था। इनमें भरतपुर राज्य के महाराजा सूरजमल अग्रणी थे, जिन्होंने अपने असाधारण व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बलबूते सियासत तथा साहसिक संघर्ष की महागाथा लिखी। विडम्बना यह है कि ऐसे महापराक्रमी का अपेक्षित ऐतिहासिक मूल्यांकन नहीं हो पाया। उन्हें व्यावहारिक समझबूझ, रचनात्मक दृष्टिकोण, दूरदर्षिता, साहस एवं धैर्य, राजनीतिक परिपक्वता,नजरिया, कूटनीतिक चातुर्य, युद्ध रणनीति के विशेषज्ञ को गुणों का प्रतीक माना जाता है। अपने नाम के अनुरूप सूरजमल ने सूर्य के समान प्रचण्ड तेज से अपने युग को आलोकित किया। जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने भरतपुर के जाट राज्य के संस्थापक राजा बदनसिंह और उनके यशस्वी पुत्र सूरजमल को समुचित संरक्षण दिया। पानीपत की तीसरी लड़ाई जनवरी 1761 में हुई। इससे पूर्व युद्ध की रणनीति पर सदाशिव भाऊ की उपस्थिति में उच्चस्तरीय चर्चा के दौरान मराठा नेताओं की समझाईश के बावजूद भाऊ ने सूरजमल की बुद्विमतापूर्ण एवं व्यावहारिक सलाह को अनदेखा किया। नतीजतन युद्व में मराठा सेना परास्त हुई। पानीपत की तीसरी लड़ाई में पेशवा बाजीराव की प्रेयसी मस्तानी से उत्पन्न पुत्र शमशेर बहादुर घायल हो गया था।
भरतपुर में मथुरा गेट के पास मस्तानी की सराय के सामने उसे दफनाया गया। बाद में वहां मकबरा बनाया गया। भरतपुर स्थापना दिवस 19 फरवरी पर लोहागढ़ विकास परिषद द्वारा प्रकाशित स्मारिका में प्रकाशित लेख के अनुसार पेशवा बाजीराव की प्रेयसी मस्तानी को पूना से जिस गुप्त स्थान पर भिजवया गया था वह स्थान सम्भवत: भरतपुर था। बाजीराव की मृत्यु से आहत मस्तानी ने भी प्राण त्याग दिए उसकी याद मे मथुरा गेट पर रियासत कालीन सराय बनी हुई है जिसे अब पक्की सराय के नाम से जाना जाता है। अपनी घोर उपेक्षा के बावजूद सूरजमल की मराठों के प्रति सहानुभूति बनी रही। युद्व में पराजित मराठा सेना को जाट रियासत में ससम्मान आश्रय मिला और आगे की यात्रा के लिए सक्षम होने पर उन्हे भावपूर्ण विदाई दी गई। पानीपत की तीसरी लड़ाई से सात वर्ष पूर्व जनवरी से मई 1754 के दौरान भरतपुर डीग के मध्य कुम्हेर में मराठा-मुगल की सम्मिलित लगभग 80 हजार सेना का सूरजमल ने मुकाबला किया। पानीपत की तीसरी लड़ाई में विजयी होने पर अहमदशाह अब्दाली का दिल्ली पर आधिपत्य हो गया। विभिन्न युद्वों तथा अन्य अवसरों पर अर्जित अतुल धन सम्पत्ति की सूचना मिलने पर अब्दाली ने भरतपुर की तरफ कूच करने का मानस बनाया। सूरजमल ने इस गंभीर खतरे को अपनी बुद्धमता से टाल दिया। सम्राट मुहम्मद शाह के 1748 के निधन के बाद सिंहासन के संघर्ष में दिल्ली पहुंचकर सूरजमल ने अहमदशाह के शीर्ष पर ताज रखकर सम्राट निर्माता की भूमिका निभाई और सफदरजंग को वजीर बनाया। सूरजमल ने मुगलों के सेनापति बख्शी मीर सलावत को आत्मसमर्पण के लिए बाध्य कर दिया। पथरी की प्रसिद्ध लड़ाई में रोहलो के सेनाध्यक्ष का सिर काटने तथा रोहेलों को शक्तिहीन करने पर दिल्ली सम्राट से राजेन्द्र की उपाधि मिली। घसेरा की लड़ाई जीतने के बाद सूरजमल ने जून 1761 को आगरा पर अधिकार किया। किसी जमाने में मुगलों की शक्ति एवं समृद्वि का प्रतीक लाल किला जाटों के कब्जे में था। फर्रूखनगर विजय और मसावी खां को भरतपुर में कैद करने से महाराज सूरजमल और नजीबुद्वौला के बीच दुष्मनी बढ़ गई। 25 दिसम्बर को अपरान्ह में सूरजमल ने लगभग छ: हजार घुड़सवारों के साथ शत्रु सेना पर हमला बोला। इस युद्व में महाराज सूरजमल वीर गति को प्राप्त हुए। उनकी मृत्यु तथा शव की पहचान को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत है। मथुरा जिले के गोवर्धन तीर्थ पर सूरजमल की प्रतीकात्मक अंत्येष्टि की गई। बाद में वहां कुसुम सरोवर ताल खोदा गया, जिसके पूर्वी किनारे पर महाराज सूरजमल की स्मृति में भव्य कलात्मक छतरी का निर्माण कराया गया।
-गुलाब बत्रा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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