बिलों में फर्जीवाड़ा: जुलाई में पौधे लगाने के एक माह बाद अगस्त में खोदे 5500 गड्ढ़े ?

एपीसीसीएफ ने प्लांटेशन जनरल व बिलों में पकड़ी गड़बड़ी

बिलों में फर्जीवाड़ा: जुलाई में पौधे लगाने के एक माह बाद अगस्त में खोदे 5500 गड्ढ़े ?

वन अधिकारियों का कारनामा-न गड्ढ़े न मिट्टी हवा में कर दिया पौधरोपण।

कोटा। लखावा प्लांटेशन-8 में भ्रष्टाचार  के नित नए चौंकाने वाले मामले सामने आ रहे हैं। 50 हैक्टेयर के प्लांटेशन में वन मंडल के अधिकारियों ने गड्ढ़े किए बिना ही पौधे लगाने का कारनामा कर दिखाया। अधिकारियों ने जुलाई में एक साथ हजारों पौधे लगाए लेकिन उनके लिए खड्ढ़े एक महीने बाद अगस्त में किए। जब गड्ढ़े ही अगस्त में किए तो जुलाई में पौधे कैसे लग गए। बगैर गड्ढ़ों के पौधे लगाने का फर्जीवाड़ा एपीसीसीएफ के प्लांटेशन जनरल और बिलों के अवलोकन से हुआ।

एपीसीसीएफ ने यूं पकड़ा फर्जीवाड़ा
अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन सुरक्षा) केसी मीना ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि लखावा-8 प्लांटेशन में बहुत ही गड़बड़झाला है। प्लांटेशन जनरल में यहां वर्ष 2022 में 15 से 25 जुलाई के बीच 8000 पौधे लगाना बताया गया है। जबकि, इसी कार्य के बिल में 5500 खडढ़े ही 16 से 31 अगस्त के बीच खोदा जाना बताया है। जब खड्ढ़े ही अगस्त में खुदे हैं तो जुलाई में पौधे कैसे लग गए। इससे यह प्रतित होता है कि 5500 खडढ़े खुदे बिना ही 8000 पौधे लगा दिए गए।

निरीक्षण पथ बना नहीं, उठ गए 77 हजार
16 नवम्बर 2022 तक 2500 रनिंग मीटर लंबा और 3 मीटर चौड़ा निरीक्षण पथ बनाना बताकर 54 हजार 500 रुपए का बिल उठा। इसके बाद 2 अगस्त 2023 को 1 किमी निरीक्षण पथ के संधारण के नाम पर 22 हजार 400 का बिल बनाकर भुगतान उठा लिया। जबकि, मौके पर निरीक्षण पथ मिला ही नहीं। जब निरीक्षण पथ बना ही नहीं तो संधारण किसका कर रहे थे। 

न खडढ़े खुदे न थांवले बने, उठ गए 3.45 लाख
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में 16 अगस्त से 31 अक्टूबर की कार्य अवधि के बिलों में अधिकारियों ने 5500 खडढ़े खोदना बताया। प्रति खड्ढ़े के 54 रुपए चार्ज किए। जबकि, हकीकत में 5500 खडढ़े यहां खुदे ही नहीं। क्योंकि, यह चटटानी क्षेत्र है, जहां जेसीबी से भी एक फीट गहरा खड्ढ़ा नहीं खोदा जा सकता। वहां श्रमिकों द्वारा हाथों से खडढ़े खोदना बताकर 3 लाख 2 हजार 60 रुपए का भुगतान उठा लिया गया। इसी तरह यहां किसी भी पौधे के थांवले नहीं बने हुए हैं। जबकि, बिल में 5500 पौधों के जल संरक्षण के लिए प्रति थांवला 7 रुपए की दर से चार्ज किया गया। जिसका 42 हजार 900 रुपए का बिल उठाया गया। जबकि, निरीक्षण के दौरान मौके पर न खड्ढ़े मिले और न ही थांवले। 

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दीवारों की मरम्मत तो हुई नहीं, उठा लिए 95 हजार का भुगतान
एपीसीसीएफ ने रिपोर्ट में बताया कि वर्ष 2024 में 18 से 27 मार्च तक कार्य अवधि के बिल में 115 मीटर लंबी  दीवार की मरम्मत कार्य करना बताया गया, जबकि, 27 मई को निरीक्षण के दौरान मौके पर दीवार मरम्मत कार्य नजर आया। इसके बावजूद 27 मार्च को दीवार मरम्मत के नाम पर 95 हजार 734 रुपए का बिल पास कर भुगतान उठा लिया गया। अत: यह सभी बिल काफी हद तक फर्जी ही प्रतित होते हैं।

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कागजों में खुदी 5000 मीटर वी-डिच, मौके पर नदारद 
बिलों में 5000 रनिंग मीटर वी-डिच खोदना बताया है, जो मौके पर नजर नहीं आई। वहीं, प्लांटेशन जनरल में जानकारी आधी-अधूरी मिली। वर्ष 2022 में 1 अप्रेल से 15 अगस्त कार्य अवधि के बिल में 5000 मीटर वी-डिच पर बीजारोपण करने के 3100 रुपए तथा 16 अगस्त से 31 अक्टूबर के बिल में वी-डिच में पौधों की निराई गुडाई के लिए 11,900 रुपए का भुगतान उठाया गया। जबकि, निरीक्षण में वी-डिच नजर आई। 

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10.78 लाख से किसका किया संधारण 
जांच रिपोर्ट के अनुसार, लखावा प्लांटेशन-8 के प्रथम वर्ष 2022-23 में पौधे लगाने व संधारण के लिए सरकार से 12.76 लाख रुपए का बजट आवंटित हुआ था। जिसमें से 10.78 लाख रुपए खर्च किए गए। जबकि मौके पर पौधे न के बराबर मिले। ऐसे में उक्त अवधि में जब पौधे ही नहीं थे तो किनके संधारण पर लाखों रुपयों के बिल बनाकर भुगतान उठाया गया। वहीं, किसकी सुरक्षा निगरानी की जा रही थी। इस तरह गत 24 मई को दैनिक नवज्योति में छपी खबर के तथ्य बिलकुल सही है। 

क्या कहते हैं वाइल्ड लाइफर
डीएफओ के इशारे पर रेंजरों ने बनाए फर्जी बिल
पौधों के संधारण के नाम पर डीएफओ के इशारे पर लाडपुरा रेंजरों ने फर्जी बिल बनाकर भुगतान उठाया और सरकारी धन का गबन किया। 1 नवम्बर 2022 से जून 2024 तक लगातार बिल उठाते रहे, जबकि मौके पर काम हुए ही नहीं। नतीजन, 30% सरवाइवल रेट के साथ प्लांटेशन फेल हो गया। मेटिगेटिव मैजर्स में नेशनल हाइवे आॅथोरिटी आॅफ इंडिया ने हाइवे के सहारे हरितिमा पट्टी विकसित करने के लिए वन विभाग को लाखों रुपए कैम्पा के जरिए वन विभाग को दिया था, जिसमें इन अधिकारियों ने गबन कर लिया। तत्कालीन व वर्तमान डीएफओ एवं रेंजरों ने मिलीभगत से जमकर सरकारी धन का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार किया। ऐसे अधिकारियों व फिल्ड स्टाफ के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
- तपेश्वर सिंह भाटी, एडवोकेट एवं पर्यावरणविद् 

रिपोर्ट सौंपने के 5 माह बाद भी कार्रवाई नहीं
अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक केसी मीना ने गत 27 मई को मामले की जांच शुरू की थी, जो सवा महीने चली। गत 10 जुलाई को उन्होंने रिपोर्ट प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (हॉफ)को सौंप दी थी। इसके बावजूद फर्जी बिल बनाकर भुगतान उठाने वाले फिल्ड अधिकारियों व कर्मचारियां के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। जिससे न केवल वन अपराध को बढ़ावा मिल रहा बल्कि भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों में उच्चाधिकारियों का भय खत्म हो रहा है। साथ ही जवाबदारी व जिम्मेदारी खत्म हो रही है।  
- बाबूलाल जाजू, प्रदेशाध्यक्ष, पीपुल्स फॉर एनिमल 

कड़ा संदेश देने की जरूरत
जिन पर पर्यावरण संरक्षण,वन  रक्षा की जिम्मेदारी है, वहीं भक्षक बन भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए हैं। जांच में जब फर्जीवाड़े का खुलासा हो गया तो सरकार सख्त कार्रवाई कर कड़ा संदेश दें। 
- रवि कुमार, बायोलॉजिस्ट

डीएफओ ने नहीं दिया जवाब 
मामले की जांच रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट भेज चुके हैं, जिसमें जांच के सभी प्वाइंट कवर किए हैं।
- रामकरण खैरवा, संभागीय मुख्य वन संरक्षक एवं क्षेत्र निदेशक, वन विभाग 

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