बदलते मौसम और प्रदूषण ने बढ़ाया अस्थमा-एलर्जी के मरीजों का मर्ज, आंखों में जलन, खांसी और सांस संबंधी परेशानियों से हर दूसरा व्यक्ति पीड़ित
दवाइयां लेने के बावजूद एक महीने बाद भी ठीक नहीं हो रही खांसी, प्रदूषण से कैंसर का भी है खतरा
इसके साथ एसएमएस अस्पताल सहित निजी और अन्य सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में अब अस्थमा, एलर्जी, खांसी, आंखों में जलन और सांस संबंधी बीमारियों से ग्रसित मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है।
जयपुर। मौसम में हो रहा बदलाव और वातावरण में फैला प्रदूषण इन दिनों आम आदमी की जान का दुश्मन बना हुआ है। हर घर में कोई ना कोई व्यक्ति अस्थमा, एलर्जी, खांसी-जुकाम और सांस संबंधी परेशानियों से जूझ रहा है। राजधानी जयपुर में सर्दी की शुरुआत के साथ ही वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके साथ एसएमएस अस्पताल सहित निजी और अन्य सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में अब अस्थमा, एलर्जी, खांसी, आंखों में जलन और सांस संबंधी बीमारियों से ग्रसित मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। अकेले एसएमएस अस्पताल की ओपीडी में ही करीब 30 का इजाफा हो चुका है और आने वाले दिनों में इसमें और बढ़ोतरी हो सकती है। वहीं कैंसर विशेषज्ञों ने वायु प्रदूषण से होने वाले विभिन्न प्रकार के कैंसर के खतरे की आशंका भी जताई है। प्रदूषित हवा के कारण फेफड़े, त्वचा, गर्दन, मुंह और सिर के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है क्योंकि ये अंग सीधे तौर पर इस जहरीली हवा के संपर्क में आते हैं।
जिन्हें एलर्जी की हिस्ट्री नहीं, उन्हें भी हो रही
बढ़ते प्रदूषण के कारण लोग एलर्जी का शिकार हो रहे हैं और यह समस्या अब उन लोगों में भी देखने को मिल रही है, जिनकी एलर्जी की कोई पिछली हिस्ट्री नहीं थी। एक बार एलर्जी होने के बाद यह समस्या जीवनभर बनी रहती है। इसके अलावा प्रदूषण से साइनस का कैंसर भी होने का खतरा बढ़ गया है, जो हाल ही कुछ मामलों में देखा गया है। खासकर बच्चे और बुजुर्गों को प्रदूषण से बचाना बेहद जरूरी हो गया है। कई मरीज एलर्जी और जुकाम में अंतर समझ नहीं पाते हैं। वे जुकाम की एंटीबायोटिक दवाइयां लेते रहते हैं। जिनका उनके शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। मजबूरन उन्हें एलर्जी की ही दवा लेनी पड़ती हैं। ऐसे में बिना चिकित्सकीय परामर्श के कोई भी दवा नहीं लेनी चाहिए।
त्वचा पर भी पड़ रहा असर
चिकित्सकों के अनुसार सल्फर, कार्बन धूल और धुएं के कण बढ़ने से एयर क्वालिटी इंडेक्स में इजाफा होता है। इससे त्वचा संबंधी विकार जैसे खुजली, रैशेज आदि हो जाते हैं। इतना ही नहीं कैंसर रोग विशेषज्ञों का तो ये भी मानना है कि प्रदूषण के कारण त्वचा का कैंसर होने का भी खतरा रहता है।
ऐसे करें बचाव
एलर्जी के मरीज धूल, धुएं आदि से बचें। मास्क लगाएं। भीड़ में न जाएं।
घर से बाहर निकलने पर मुंह या नाक पर कपड़ा या रूमाल बांधें।
पूरी आस्तीन के कपड़े पहनें। ठंडे खानपान से भी बचें।
जलन होने पर आंखों को ठंडे पानी से धोते रहें।
साफ -सफाई का खयाल रखें, बाहर से आते ही मुंह धो लें।
बदलते मौसम और पॉल्यूशन के वातावरण में खासकर अस्थमा, एलर्जी और श्वासं रोगियों की परेशानी काफी बढ़ जाती है। ऐसे में ऐसे मरीजों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है। अपनी दवाईयां नियमित रूप से लेते रहें, मास्क लगाएं और परेशानी बढ़ने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।
-डॉ. शीतू सिंह, वरिष्ठ अस्थमा एवं श्वांस रोग विशेषज्ञ।
पॉ ल्यूशन के कारण त्वचा को भी काफी नुकसान होता है। स्किन ड्राई हो जाती है। खुजली, रैशेज, अर्टिकेरिया आदि की समस्या बढ़ जाती है। इसलिए नहाते समय मास्च्युराइजर सोप का इस्तेमाल करें और नहाने के बाद बॉडी पर मास्च्युराइजर लगाएं।
-डॉ. मोहित पंजाबी, त्वचा रोग विशेषज्ञ।
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