टेस्ट हो बेस्ट तो पॉलीग्राफ से बदल जाता है अपराध का ग्राफ, नजर आने लगती है अपराधी की साफ तस्वीर
पॉलीग्राफ टेस्ट की रिपोर्ट कोर्ट में मान्य नहीं लेकिन पुलिस जांच में कर देती है सहयोग
पॉलीग्राफ परीक्षण तीन चरणों में होता है।
जयपुर। प्रदेश एफएसएल टीम दुष्कर्म, दरिंदगी और कू्ररता करने वाले अपराधियों को फांसी तक पहुंचा चुकी है, तो इधर पॉलीग्राफ टेस्ट की रिपोर्ट देकर पुलिस को उलझे केसों में भी नई दिशा दे चुकी है। यदि कोई सही है तो उसे पॉलीग्राफ टेस्ट करने से नहीं डरना चाहिए। पॉलीग्राफ टेस्ट (लाइ डिटेक्टर टेस्ट) से नहीं डरना चाहिए। पुलिस यदि किसी केस में उलझ जाती है तो पॉलीग्राफ टेस्ट करवाती है। इसके लिए जिसका पॉलीग्राफ टेस्ट होती है, उसकी सहमति और कोर्ट से अनुमति लेना होती है। इससे व्यक्ति के सच और झूठ बोलने का पता चल जाता है, एफएसएल में स्थित पॉलीग्राफ टेस्ट विंग हैड और एक्सपर्ट मुकेश जांच के दौरान व्यक्ति के दिल की धड़कन, ब्लड पे्रशर, सांस की दर, और अन्य शारीरिक गतिविधियों के बदलाव से पता लगा लेते हैं। इससे शराब पीने, नशा करने, ब्लड प्रेशर की बीमारी से ग्रसित लोगों की जांच नहीं की जाती है। पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए सबसे पहले जांच अधिकारी तथ्यात्मक रिपोर्ट के आधार पर संदिग्ध व्यक्तियों के बारे में केस में अपराधी बनाए जाने के साक्ष्य की जानकारी लेते हैं। उस विवरण के आधार पर सवाल तैयार किए जाते हैं। इसके बाद संदिग्ध या संक्षिप्त व्यक्ति का परीक्षण किया जाता है। पॉलीग्राफ परीक्षण तीन चरणों में होता है।
पहला चरण
प्रथम चरण में अपराधी या संदिग्ध व्यक्ति को पॉलीग्राफ परीक्षण के बारे में जानकारी दी जाती है। प्री-टेस्ट के लिए 10-15 सवाल तैयार करती है। जिसमें तीन तरह के प्रश्न होते हैं। तीन तरह के प्रश्नों में डायरेक्ट प्रकरण से संबंधित, सामान्य तथा व्यक्ति के निजी प्रश्नों को जोड़कर प्रश्नावली तैयार की जाती है। इसकी पूरी रिकॉर्डिंग होती है।
दूसरा चरण
प्रथम चरण के आधा घंटे के ब्रेक के बाद संदिग्ध व्यक्ति को मशीन की सहायता से तैयार की गई प्रश्नावली के आधार पर प्रश्न उत्तर किए जाते हैं जिसे कम से कम तीन बार या अधिक से अधिक पांच बार परीक्षण कर ग्राफ रिकॉर्ड किया जाता है। यह ग्राफ संदिग्ध व्यक्ति के हार्टबीट, पल्स, ब्लड पे्रशर तथा केल्विनिक इलेक्ट्रोग्राम के आधार पर रिकॉर्ड होता है।
तीसरा चरण
तृतीय चरण में संदिग्ध व्यक्तिको सामान्य कर सिर्फ मशीन पर ग्राउंड रिकॉर्डिंग या शून्य ग्राफ प्राप्त किए जाते हैं, जिसमें किसी तरह का प्रश्न नहीं पूछा जाता है। पूर्व में पूछे गए परीक्षण के पर बयानों की सत्यता का मिलान कर रिपोर्ट दी जाती है।
पॉलीग्राफ टेस्ट
गंगानगर जिले के सदर थाने में वर्ष 2019 में एक व्यक्ति की मौत होने का केस दर्ज हुआ। आरोप लगा कि पत्नी ने हत्या की है। पत्नी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। महिला एक माह जेल में रही। पुलिस ने पॉलीग्राफ टेस्ट करवाया तो एक नई दिशा मिली और महिला पॉलीग्राफ टेस्ट में बेकसूर निकली। तीन फीट जमीन को लेकर हुए विवाद में भरतपुर के मथुरा गेट थाने में एक वृद्ध महिला और उसके नाती पर एसिड फेंकने का केस दर्ज हुआ। पड़ोसी की ओर से दर्ज कराए केस की जांच तीन बार बदली। जब पुलिस को अपराधियों के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिले तो पुलिस ने दोनों पक्षों का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की बात कही। इसमें पड़ोसी रिपोर्टकर्ता ने पॉलीग्राफ टेस्ट कराने से मना कर दिया जबकि वृद्धा और उसका नाती तैयार हो गया। पुलिस ने इसके बाद केस को सुलझा दिया और वृद्धा और नाती का दोषी नहीं होना पाया। चौमूं में एक नाबालिग के अपहरण के केस में पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया। इन सभी की 19 दिन में रिमाण्ड ली गई लेकिन फिर भी सच सामने नहीं आया तो पॉलीग्राफ टेस्ट कराया तो ये सही पाए गए और पुलिस ने अलग दिशा पर काम किया तो मामला सुलझ गया।
एफएसएल में पॉलीग्राफ टेस्ट भी किया जाता है। पुलिस को जांच कराने के लिए संबंधित व्यक्ति और कोर्ट की परमीशन लेनी होती है। इससे कई केसों में पुलिस को नई दिशा मिली है।
डॉ.अजय शर्मा, एफएसएल निदेशक राजस्थान
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