कर्नाटक सीएम सिद्दारमैया पर चलेगा केस, हाईकोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को बरकरार रखा
एमयूडीए की 14 साइटों के आवंटन में कथित अनियमितताओं का मामला
बेंगलुरु। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के खिलाफ मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) की 14 साइटों के आवंटन में कथित अनियमितताओं की जांच की मंजूरी देने के फैसले को बरकरार रखा। न्यायालय ने सिद्दारमैया की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने राज्यपाल थावरचंद गहलोत के सिद्दारमैया की पत्नी को एमयूडीए की 14 साइटों के आवंटन में कथित अनियमितताओं की जांच की मंजूरी देने के फैसले को चुनौती दी थी। इस बीच, सिद्दारमैया ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय जाने का फैसला किया है।
कोर्ट ने कहा राज्यपाल के फैसले में कोई दोष नहीं
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने कहा कि इस मामले में राज्यपाल के फैसले में कोई दोष नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने ‘विचार-विमर्श’ के बाद अपने विवेक का इस्तेमाल करके आदेश पारित किया था। न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ताओं द्वारा शिकायत दर्ज कराना और राज्यपाल से मंजूरी मांगना उचित था और इस संदर्भ में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत मंजूरी अनिवार्य है।
असाधारण हालात में राज्यपाल ले सकते हैं स्वतंत्र फैसला
न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने स्पष्ट किया कि धारा 17 ए में कहा गया है कि किसी पुलिस अधिकारी को अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों के लिए किसी लोक सेवक के खिलाफ धारा 200 या 203 के तहत दर्ज निजी शिकायत के लिए अनुमोदन लेने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि इस तरह की स्वीकृति लेना शिकायतकर्ता का कर्तव्य है। उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्यपाल आमतौर पर संविधान के अनुच्छेद 163 में उल्लेखित प्रावधानों के तहत मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करते हैं, लेकिन वे असाधारण परिस्थितियों में स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं। वर्तमान मामला ऐसे अपवाद का उदाहरण है।
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