राज्यों को हर प्रकार की शराब पर कर लगाने का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट फैसले से राजस्व में होगी वृद्धि
राज्य इसे विनियमित कर सकते हैं
पीठ ने बहुमत के फैसले में कहा कि औद्योगिक शराब और उसे तैयार करने वाले कच्चे माल सहित सभी प्रकार की शराब पर कर लगाने का अधिकार राज्यों को है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के राजस्व की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए हर प्रकार की शराब पर कर लगाने के उनके अधिकार को बरकरार रखा है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में बुधवार को 8:1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया और सात न्यायाधीशों की पीठ के पहले के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें व्यवस्था दी गयी थी कि औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन के नियंत्रण का अधिकार केंद्र सरकार को है। इस मामले को नव न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष वर्ष 2010 में रखा गया था।
राज्यों के अधिकार के पक्ष में फैसला देने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति जे बी पार्दीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने कहा कि औद्योगिक कार्यों में इस्तेमाल होने वाली अल्कोहल राज्य सूची की प्रविष्टि 8 के तहत मादक स्प्रिट के अर्थ में आती है, इसलिए राज्य इसे विनियमित कर सकते हैं और कर लगा सकते हैं।
पीठ ने बहुमत के फैसले में कहा कि औद्योगिक शराब और उसे तैयार करने वाले कच्चे माल सहित सभी प्रकार की शराब पर कर लगाने का अधिकार राज्यों को है। शीर्ष अदालत का यह फैसला राज्य सरकारों के राजस्व में बड़ी वृद्धि करने वाला है। दूसरी ओर न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने पीठ के अन्य सदस्यों के फैसले से असहमतिपूर्ण निर्णय दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रविष्टि 8 के तहत मादक स्प्रिट (लिकर) को पीने योग्य शराब तक सीमित नहीं किया जा सकता। संविधान की सातवीं अनुसूची की 52वीं प्रविष्टि में संसद को उन उद्योगों के सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार दिया गया है जो लोक हित में उचित हो। पीठ ने कहा कि दोनों प्रविष्टियों के बीच कहीं-कहीं दोहराव (ओवरलैप) हो सकता है और इस तरह के परस्पर अतिक्रमण का समाधान यह है कि दोनों प्रविष्टियों को समायोजित किया जाए, ताकि दोनों अनुसूचियों की कोई भी प्रविष्टि निरर्थक न हो।
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